Explained: जानें क्यों मुक्ति संग्राम में बलिदान देने वाले भारतीय नायकों के लिए स्मारक बना रहा बांग्लादेश

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में बलिदान देने वाले भारतीय नायकों के लिए स्मारक बना रहा है। स्मारक का डिजाइन दोनों देशों के बीच स्थायी मित्रता का प्रतीक है।

 

नई दिल्ली। बांग्लादेश 1971 की लड़ाई में बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों के लिए युद्ध स्मारक बना रहा है। इसका निर्माण कार्य पूरा हो गया है। 1971 के युद्ध की सालगिरह पर इसका अनावरण किया जाएगा। इस स्मारक के माध्यम से बांग्लादेश आजादी दिलाने के लिए भारत के प्रति गहरा आभार व्यक्त कर रहा है। भारतीय सेना ने 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इस युद्ध स्मारक की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना ने मार्च 2021 में रखी थी। तब पीएम मोदी बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे। इसे आशूगंज में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास तैयार किया गया है। 4 एकड़ में फैले इस विशाल स्मारक का ऐतिहासिक महत्व है। इसकी दीवारों पर युद्ध में शहीद हुए 1,600 से अधिक भारतीय सैनिकों के नाम उकेरे जाएंगे।

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भारत और बांग्लादेश मित्रता का प्रतीक है स्मारक

लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर ने स्मारक की डिजाइन के बारे में जानकारी दी। स्वाधीनता पदक, बीर प्रोतिक और पद्म श्री पदक पाने वाले सज्जाद अली जहीर ने कहा कि स्मारक का डिजाइन भारत और बांग्लादेश की स्थायी मित्रता का प्रतीक है। इसमें जीवन और मृत्यु में दोस्ती के मूल विषय का प्रतिनिधित्व करने वाली संरचना है। यह पसली पिंजर की सुरक्षात्मक भूमिका, दिल और आत्मा की सुरक्षा का प्रतीक है। इस अवधारणा में उड़ने वाले कबूतरों को भी शामिल किया गया है जो बहादुर सैनिकों के बलिदान के माध्यम से प्राप्त शांति का प्रतीक है।

स्मारक का डिजाइन आसिफुर रहमान भुइयां ने तैयार किया है। बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध मामलों के मंत्री एकेएम मोजम्मेल हक और 1971 के युद्ध के दौरान स्वतंत्रता सेनानी और मुक्ति युद्ध मंत्रालय के सचिव इशरत जहां ने इसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

स्मारक के मैदान को इस तरह तैयार किया गया है कि यह आने वालों को शांति का अहसास कराए। इसके साथ ही उन्हें 1971 के युद्ध के बारे में जानकारियां भी मिले। स्मारक में शहीदों के सम्मान में ध्वजारोहण समारोह किया जाएगा। यहां एक संग्रहालय, एक किताबों की दुकान, एक चिल्ड्रेन पार्क और एक फूड कोर्ट भी बनाया गया है। इस स्मारक की अवधारणा लेफ्टिनेंट कर्नल जहीर ने तैयार की थी। उन्होंने इसका प्रस्ताव बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के सामने रखा।

1971 की जंग के बाद बना बांग्लादेश

बता दें कि 1971 से पहले बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। भारत को आजादी मिलने के साथ ही विभाजन का दर्द भी झेलना पड़ा था। भारत से होकर पाकिस्तान बना था। इसके दो हिस्से थे पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान। सत्ता से लेकर सेना तक पाकिस्तान की सत्ता पर पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का कंट्रोल था। पूर्वी पाकिस्तान के साथ भेदभाव होता था। इसके खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने आवाज उठाई तो उनपर अत्याचार किया जाने लगा। इसके चलते पूर्वी पाकिस्तान में सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था। इस दौरान मुक्ति संग्राम शुरू हुआ। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का साथ दिया।

स्थिति तब बिगड़ गई जब पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया और नरसंहार करने लगी। आगे चलकर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई शुरू हो गई। इस लड़ाई में पाकिस्तान को भारत के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा और बांग्लादेश आजाद देश के रूप में अस्तित्व में आया। इस लड़ाई में बड़ी संख्या में भारतीय जवान शहीद हुए थे।

1971 की जंग 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुई थी। इसका समापन 16 दिसंबर को हुआ। भारत में इस जीत को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह न केवल सैनिकों के बलिदान को दर्शाता है, बल्कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच गहरे साझा इतिहास और दोस्ती को भी दर्शाता है।

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