वर्चुअल कॉन्फ्रेंस या वेबीनार में नहीं आ सकेगा कोई Unwanted, फेक-बस्टर पल भर में कर लेगा डिटेक्ट

फेक-न्यूज को फैलाने में मीडिया के कंटेंट में हेरफेर की जाती है. यही हेरफेर पोर्नोग्राफी और अन्य ऑनलाइन कंटेंट के साथ भी की जाती है. इस तरह का हेरफेर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी होने लगा है.

Asianet News Hindi | Published : May 19, 2021 1:24 PM IST / Updated: May 19 2021, 06:57 PM IST

नई दिल्ली। महामारी ने पूरी जीवनशैली में बदलाव ला दिया है। सरकार हो या प्राइवेट कंपनियां, सब अपनी महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण बैठकें वर्चुअल ही कर रहे। लेकिन कई बार ऐसा सामने आता है कि गोपनीय या महत्वपूर्ण बैठकों में अनजाने लोग चुपके से ऑनलाइन शामिल हो जाते हैं और गोपनीय सूचनाएं तक लीक हो जा रही। ऑनलाइन घुसपैठियों से निपटने के लिए आईआईटी रोपड़ आर आस्ट्रेलिया की माॅनाश यूनिवर्सिटी ने एक ‘डिटेक्टर’ बनाया है। ‘फेक-बस्टर’ नाम के इस डिटेक्टर की मदद से किसी भी वर्चुअल कांफ्रेंस में अवैध रूप से शामिल लोगों को डिटेक्ट किया जा सकेगा। 
  
घुसपैठ कर वीडियो के साथ करते हैं छेड़छाड़ 
 
इस अनोखी तकनीक से पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति के वीडियो के साथ छेड़छाड़ की जा रही है या वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान कौन घुसपैठ कर रहा है। डिटेक्टर पता लगा लेगा कि कौन बिना आमंत्रण के ही वेबीनार या वर्चुअल बैठक में घुसा है। ऐसी घुसपैठ अक्सर आपके सहकर्मी या वाजिब सदस्य की फोटो के साथ खिलवाड़ करके की जाती है।
 
डीपफेक्स’ के जरिए करते हैं घुसपैठ
 
दरअसल, फेक-न्यूज को फैलाने में मीडिया के कंटेंट में हेरफेर की जाती है। यही हेरफेर पोर्नोग्राफी और अन्य ऑनलाइन कंटेंट के साथ भी की जाती है। इस तरह का हेरफेर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी होने लगा है, जहां घुसपैठ करने वाले उपकरणों के जरिये चेहरे के हाव भाव बदलकर घुसपैठ करते हैं। यह फ्राड लोगों को रीयल लगता है। वीडियो या विजुअल हेरफेर करने को ‘डीपफेक्स’कहा जाता है। ऑनलाइन परीक्षा या नौकरी के लिये होने वाले साक्षात्कार के दौरान भी इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।
 
‘फेक-बस्टर' 90% कारगर
 
‘फेक-बस्टर’ का विकास करने वाली चार सदस्यीय टीम है। इस टीम में डॉ. अभिनव धाल, एसोसिएट प्रोफेसर रामनाथन सुब्रमण्यन और दो छात्र विनीत मेहता तथा पारुल गुप्ता हैं। डॉ. अभिनव धाल ने कहा, ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टेक्निक से मीडिया कंटेंट के साथ फेरबदल करने की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है। इन तकनीकों से सही-गलत का पता लगाना मुश्किल हो गया है। इससे सुरक्षा पर काफी असर पड़ सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘इस टूल की एफीसेंसी 90 प्रतिशत से अधिक है। यह सॉफ्टवेयर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉल्यूशन से अलग है और इसे जूम और स्काइप एप्लीकेशन पर परखा जा चुका है।’

ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से करता है काम
 
डीपफेक डिटेक्शन टूल ‘फेक-बस्टर ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरीके से काम करता है। इसे मौजूदा समय में लैपटॉप और डेस्कटॉप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बारे में एसोसिएट प्रोफेसर सुब्रमण्यम का कहना है, ‘हमारा उद्देश्य है कि नेटवर्क को छोटा और हल्का रखा जाये, ताकि इसे मोबाइल फोन और अन्य डिवाइस पर इस्तेमाल किया जा सके।’ उन्होंने कहा कि उनकी टीम इस वक्त फर्जी ऑडियो को पकड़ने की डिवाइस पर भी काम कर रही है।

लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान भी करता है काम

टीम का दावा है कि ‘फेक-बस्टर’ सॉफ्टवेयर ऐसा पहला टूल है, जो डीपफेक डिटेक्शन टेक्नोलाॅजी का इस्तेमाल करके लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान घुसपैठियों को पकड़ता है। इस डिवाइस का परीक्षण हो चुका है और जल्द ही इसे बाजार में उतार दिया जायेगा। इस तकनीक पर एक पेपर ‘फेक-बस्टरः ए डीपफेक्स डिटेक्शन टूल फॉर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सीनेरियोज’को पिछले महीने अमेरिका में आयोजित इंटेलीजेंट यूजर इंटरफेस के 26वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पेश किया गया था।

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