उद्धवे ठाकरे सरकार: 31 महीने 1 दिन में कैसे पलट गई बाजी, क्यों बनना पड़ा CM से Ex CM, 10 प्वाइंट में जानें

महाराष्ट्र में 31 महीने 1 दिन पुरानी एमवीए सरकार का पतन हो गया। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद नई सरकार बनाने की प्रक्रिया भी चालू है। आखिर क्यों गिरी उद्धव सरकार, क्या है कारण।
 

Manoj Kumar | Published : Jun 30, 2022 10:31 AM IST / Updated: Jun 30 2022, 05:39 PM IST

मुंबई. महाराष्ट्र सरकार के संकट का समाधान हो चुका है और एकनाथ शिंदे राज्य के नये मुख्यमंत्री बनेंगे यह तय हो गया है। सीएम उद्धव ठाकरे का इस्तीफा हो चुका है और बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को पूरा सपोर्ट देने का वायदा किया है। पूर्व सीएम देवेंद्र फडणनवीस ने कहा कि भाजपा ने एकनाथ शिंदे को सपोर्ट देने का फैसला लिया है। लेकिन वे कौन से कारण हैं जिसकी वजह से 31 महीने पुरानी सरकार का पतन हो गया। बगावत भी ऐसी की विरोध में जाने वालों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती गई, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा। आइए 10 प्वाइंट में समझते हैं कैसे हुआ महाराष्ट्र सरकार का पतन...

1. अभी क्या चल रहा है
बागी विधायकों के मुखिया एकनाथ शिंदे मुंबई पहुंच चुके हैं। वे भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। संभव है कि 1-2 में ही सरकार बना ली जाएगी। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे चुके हैं। उन्होंने सीएम आवास बगावत के बाद की खाली कर दिया था। भाजपा और बागी विधायकों के बीच मंत्रालयों को लेकर भी चर्चाएं की जा रही हैं लेकिन अभी तक कोई आफिशियल अनाउंसमेंट नहीं किया गया है। शिवसेना के 8 मंत्रियों सहित कुल 35 विधायकों ने बगावत कर दी थी और गुवाहाटी के होटल में ठहरे। फिलहाल सभी विधायक गोवा में हैं और सरकार के गठन का इंतजार कर रहे हैं। 

2.क्या है गियों की नाराजगी का कारण
बागी नेता एकनाथ शिंदे गुट के प्रवक्त दीपक केसरकर ने कहा कि हम सभी उद्धव ठाकरे के इस्तीफा देने से दुखी हैं। हमें कोई खुशी नहीं है। सभी विधायक आज भी उद्धव ठाकरे का सम्मान करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि शिवसेना को बचाने के लिए उन्होंने बगावत की। बागी गुट के नेताओं का कहना है कि हम स्वाभाविक रुप से बीजेपी के साथ चुनाव लड़े हैं। बीजेपी के साथ हमारे मुद्दे व विचार मेल खाते हैं। लेकिन कुछ लोगों की वजह से ऐसे लोगों के साथ मिलकर सरकार बनाई गई, जो शिवसेना को खत्म करना चाहते हैं। 

3. संजय राउत व एनसीपी की मिलीभगत का आरोप
बागी गुट का यह भी कहना है कि इस सब के लिए काफी हद तक संजय राउत भी जिम्मेदार हैं। केंद्र सरकार व राज्य सरकार के बीच मतभेद पैदा करने काम किया गया। राज्य की भलाई इसमें होती है कि केंद्र के साथ मिलकर काम किया जाए। संजय राउत के धमकी वाले अंदाज में दिये बयानों के सवाल पर बागी गुट के एक विधायक ने कहा कि संजय राउत चुप रहते तो ज्यादा अच्छा होता। बागी विधायकों ने तो यहां तक कहा कि संजय राउत, एनसीपी के साथ मिलकर शिवसेना को खत्म करना चाहते हैं।

4. उद्धव ठाकरे को क्यों देना पड़ा इस्तीफा
शिवसेना में हुई बगावत के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बागी नेताओं से बातचीत करने का प्रयास किया। हालांकि बातचीत का कोई नतीजा सामने नहीं आया। बागी नेता जब गुजरात से गुवाहाटी पहुंचे, इसके बाद सरकार में खलबली मची। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि एकनाथ शिंदे से हमारी बात हो रही है और वे वापल आएंगे। वहीं मंत्री आदित्य ठाकरे भी अंत तक यह दावा करते रहे कि बागियों में 15 नेता उनके टच में हैं। जबकि इसका खंडन विधायकों ने बयान जारी कर दिया कि वे किसी के टच में नहीं हैं। अंत में शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट से फ्लोर टेस्ट रोकने की गुजारिश की। कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया। फिर 29 जून की रात करीब सवा 11 बजे सीएम ने इस्तीफा दे दिया। 

5. मुख्यमंत्री ने की थी भावुक अपील
बगावत के बाद शिवसेना नेता काफी नाराजगी भरे बयान दे रहे थे। संजय राउत ने तो कई बयान ऐसे दिए जिस पर बवाल मचा। हालांकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बागी विधायकों से भावुक अपील जरूर की। उन्होंने कहा कि सीएम पद लेना है ले लो, पार्टी प्रमुख का पद चाहिए, कोई ऐतराज नहीं लेकिन सामने आकर बात करो। वहीं यह भी खबर आई कि उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे ने भी बागी नेताओं की पत्नियों को फोन कर मनाने की कोशिश की। लेकिन बगावत करने वालों ने मानों ठान लिया था कि वापसी नहीं करनी है और नई सरकार बनानी है।

6. किसकी क्या रही भूमिका
माना जा रहा है कि इस पूरे प्रकरण के सूत्रधार बीजेपी के कुछ बड़े नेता हैं। हालांकि बगावत की मशाल एकनाथ शिंदे ने थामी जो शिवसेना के दिग्गज नेता माने जाते हैं। वे मुख्यमंत्री के करीबियों में भी गिने जाते थे, इसलिए जब बगावत में उनका नाम सामने आया तो शिवसेना के भी कुछ नेताओं को विश्वास नहीं हुआ। बगावत के बाद एकनाथ शिंदे ने कमान संभाली और बिना कुछ बोले अपने होने का अहसास कराते रहे। बाद में बीजेपी नेता व पूर्व सीएम देवेंद्र फड़नवीस सीन में आए और अब सरकार बनाने में उनकी प्रमुख भूमिका दिख रही है। 

7. उद्धव कार्यकाल के ये मामले भी नाराजगी का कारण
शिवसेना ने चुनाव के बाद सीएम के मुद्दे पर बीजेपी से नाता तोड़ लिया। फिर एनसीपी व कांग्रेस की मदद से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। हालांकि उद्धव के कार्यकाल में कई मामले ऐसे आए जिसमें सरकार की भी किरकिरी हुई, ऐसा ही एक मामला था सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामला। यह मामला सुर्खियों में रहा और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का नाम भी उछाला गया। फिर अनिल देखमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, इस्तीफा देना पड़ा। उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर लावारिस कार का मामला भी राज्य सरकार की छवि को धूमिल करने वाला रहा। 

8. कंगना रनौत और नवनीत राणा
उद्धव सरकार व अभिनेत्री कंगना रनौत के बीच विवाद इतना बढ़ा कि अभिनेत्री को केंद्र सरकार को सुरक्षा मुहैया करानी पड़ी। तब कंगना रनौत के खिलाफ शिवसेना की बयानबाजी सुर्खियां बनती थीं। कंगना के घर पर बुलडोजर चलाने का मामला भी सुर्खियों में रहा। हाल फिलहाल में सांसद नवनीत राणा के साथ सरकार सीधे भिड़ गई और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि सरकार गिरने के बाद कंगना रनौत ने भी कमेंट किया है। हनुमान चालीसा प्रकरण को लेकर मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने भी उद्धव सरकार पर निशाना साधा है। 

9. कैसे बने थे मुख्यमंत्री
महाराष्ट्र के सीएम पद से इस्तीफा देने वाले उद्धन ठाकरे मुख्यमंत्री कैसे बने यह भी कम नाटकीय नहीं है। महाराष्ट्र में चुनाव के बाद सीएम बनने की बारी आई तो शिवसेना इस बात पर अड़ गई कि मुख्यमंत्री उनके कोटे का होगा। फिर आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने की बात सामने आई, जिसे बीजेपी ने नहीं माना। फिर सत्ता के लिए महाविकास अघाड़ी बनाया गया। जिसमें शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने गठबंधन किया और सीएम की कुर्सी उद्धव ठाकरे को मिली 

10.शिवसेना को एकजुट रखना चुनौती
राजनीति के जानकार बताते हैं कि सीएम की कुर्सी जाने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने पार्टी बचाने और एकजुट रखने की बड़ी चुनौती है। हालांकि उद्धव ठाकरे ऐसे मुश्किलों से गुजर चुके हैं और उन्होंने पार्टी को एकजुट रखा। बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु के बाद उद्धव ने यह काम बखूबी किया। फिर राज ठाकरे को पार्टी से निकालने तक का बड़ा निर्णय भी उन्होंने किया है। लेकिन इस बार की चुनौती इसलिए मुश्किल है कि बागियों की संख्या 40 के आसपास है और उनका दावा है कि असली शिवसेना वे हैं। उन्होंने पार्टी का नाम भी घोषित किया था, जिस पर शिवसेना ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।

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