क्या कृषि कानून में MSP का जिक्र नहीं, जानिए कानून के बारे में मिथक और सच्चाई ?

कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का प्रदर्शन 8वें दिन भी जारी है। हालांकि, किसानों के मुद्दों को हल करने के लिए सरकार ने संगठनों को वार्ता के लिए भी बुलाया था। हालांकि, बताया जा रहा है कि यह बेनतीजा रही। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, विपक्ष किसानों में नए कानून को लेकर भ्रम फैला रहे हैं।

नई दिल्ली. कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का प्रदर्शन 8वें दिन भी जारी है। हालांकि, किसानों के मुद्दों को हल करने के लिए सरकार ने संगठनों को वार्ता के लिए भी बुलाया था। हालांकि, बताया जा रहा है कि यह बेनतीजा रही। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, विपक्ष किसानों में नए कानून को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। पीएम ने कहा, सरकार की नीतियों पर सवाल लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा है। लेकिन इन दिनों एक घातक ट्रेंड चल रहा है जो अच्छी नीतियों पर भी लोगों में अफवाह फैला कर भ्रमित करने का है। 

किसानों के प्रदर्शन को देखें तो यह साफ है कि किसानों को एमएसपी से लेकर तमाम मुद्दों पर भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ ऐसे झूठ फैलाए जा रहे हैं कि किसान सड़कों पर आ जाए और इसका फायदा उठाया जा सके। आईए जानते हैं ऐसे ही कुछ मिथक और उनके बारे में सत्य... 

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कृषि कानून : क्या सच, क्या झूठ ?

1- झूठ - कृषि कानून में एमएसपी का जिक्र नहीं।
सच- बिल में एमएसपी का जिक्र है। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 के 5वें पॉइंट में गारंटेड प्राइस अथवा उपयुक्त बेंच मार्क प्राइस का जिक्र है, यानी एमएसपी का।

क्या लिखा है 5वें पॉइंट में- 

खेती की उपज की खरीद के लिए भुगतान की जाने वाली कीमत का निर्धारण और कृषि समझौते में ही उल्लेख किया जा सकता है और अगर ऐसी कीमत भिन्नता के अधीन है, तो इस समझौते के तहत 

A- ऐसे उत्पाद का गारंटेड प्राइस 

B- गारंटेड प्राइस के अतिरिक्त राशि, जैसे बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट संदर्भ। यह संदर्भ मौजूदा मूल्यों या दूसरे निर्धारित मूल्यों से संबंधित हो सकता है। गारंटेड प्राइस सहित किसी अन्य मूल्य के निर्धारण के तरीके और अतिरिक्त राशि का उल्लेख भी कृषि समझैते में होगा। 

2- झूठ-  उद्योगपति किसानों की जमीन हड़प लेंगे

सच्चाई- यह असंभव है। किसान इस कानून के तहत संरक्षित हैं। कानून के 8वें पॉइंट के मुताबिक, 

8- कोई भी कृषि समझौता इन उद्देश्य से नहीं किया जाएगा
A- किसानों की भूमि या परिसर की बिक्री और बंधक समेत कोई भी हस्तांतरण


पंजाब में विरोध- क्या है सच्चाई?

शीर्ष 5 राज्यों में भारतीय खाद्य अनाज का उत्पादन

राज्यउत्पादन
हरियाणा18 लाख टन
राजस्थान23 लाख टन
पंजाब30 लाख टन
मध्यप्रदेश33 लाख टन
उत्तर प्रदेश55 ला

सोर्स- 2019-20 के आरबीआई सांख्यिकीय डाटा के मुताबिक

- उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में पंजाब से ज्यादा उत्पादन होता है। लेकिन इसके बावजूद इन राज्यों में प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं। 


यूपीए की तुलना में एनडीए सरकार में ज्यादा बढ़ी एमएसपी


धान की एमएसपी (प्रति क्विंटल)

2009-10950 रु
2013-141310 रु
2020-211868 रु

यूपीए-2 सरकार में धान का एमएसपी 360 रु बढ़ा, जबकि एनडीए में 568 रुपए।

गेहूं का एमएसपी (प्रति क्विंटल)

 

2009-101080 रु
2013-141350 रु
2020-211925 रु

गेहूं का एमएसपी यूपीए- 2 सरकार में 270 जबकि एनडीए की सरकार में 575 बढ़ा
 


किसानों से सीधे खरीद में मोदी सरकार आगे


उपभोक्ता मूल्य सूचकांक - कृषि श्रम

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक Consumer Price Index एक व्यापक उपाय है जिसका इस्तेमाल वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य के माप के लिए किया जाता है। जिसकी गणना सामानों एवं सेवाओं के एक मानक समूह के औसत मूल्य की गणना करके की जाती है। आमतौर पर इसका उपयोग अर्थव्यवस्था में खुदरा मुद्रास्फीति को मापने के लिए किया जाता है। 

2008 - 09 : 450
2013 - 14 : 750
2019 - 20 : 980

यूपीए 2 के दौरान सीपीआई 11% बढ़ी थी। जबकि इसकी तुलना में एनडीए के दौरान यह सिर्फ 5.5% बढ़ी। यानी एनडीए के दौरान किसान के खर्च में महंगाई आधी है। 


फिर क्यों हो रहे प्रदर्शन?

सिर्फ पंजाब में किसानों के प्रदर्शन की क्या है वजह?


क्या बिचौलिए प्रदर्शन को भड़का रहे हैं?


क्या किसानों को नए कृषि बिल के तहत नुकसान होगा? नहीं!

- महाराष्ट्र में सोयाबीन किसानों को कृषि उपज मंडी समिति से बाहर निकलने पर फायदा हुआ है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सोयाबीन किसान कृषि बिलों के पारित होने के बाद एपीएमसी सौदों से अधिक प्राप्त करने में सफल रहे हैं। महाराष्ट्र में किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) की अम्ब्रेला संस्था MahaFPC के अनुसार, चार जिलों में FPCs ने तीन महीने पहले पारित हुए कानूनों के बाद मंडियों के बाहर व्यापार से लगभग 10 करोड़ रुपए कमाए हैं।


कैसे आम आदमी पार्टी इस आग से खेल रही?

पहले - केजरीवाल दिल्ली में प्रदूषण के लिए पंजाब के किसानों को पराली जलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे। 

अब- केजरीवाल ने उन्हीं किसानों के स्वागत के लिए दिल्ली में तैयारी की है। 

भविष्य में: केजरीवाल अमित शाह और पीएम मोदी को विरोध प्रदर्शनों के लिए जिम्मेदार ठहराएगें, जैसे उन्होंने नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों के दौरान किया था। वे 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाएंगे। 

- आप पर इस आंदोलन को उकसाने वाले खालिस्तानी तत्वों के साथ मिलीभगत का आरोप लगा है। जबकि दिल्ली में आप सरकार इसे पहले ही मंजूरी दे चुकी है। लेकिन अब राजनीतिक फायदे के चलते विरोध प्रदर्शनों का समर्थन दे रही है। 


कांग्रेस - पार्टी जिसके पास कोई स्टैंड ही नहीं

- कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला किसानों के पराली जलाने का समर्थन कर रहे हैं, जब सभी पार्टी इसका खुलकर विरोध कर रही हैं। कांग्रेस इसका सिर्फ इसलिए समर्थन कर रही है, ताकि राजनीतिक लाभ मिल सके और राहुल गांधी को एक बार फिर से लॉन्च किया जा सके। 


प्रदर्शनों का खालिस्तानी संबंध

- पंजाब में प्रदर्शनकारी खुले तौर पर पीएम मोदी को धमकी दे रहे हैं। एक चैनल से  बातचीत में एक किसान ने कहा, 'जब इंदिरा को ठोका तो मोदी क्या चीज हैं।' इसके अलावा कई जगहों पर प्रदर्शनकारी जनरैल सिंह भिंडरालवाले की तस्वीर के साथ भी नजर आए। 


एक और झूठ : मोदी उद्योपतियों को कृषि जमीन दे रहे 

- 2012 में एक ऑडिट किया गया था, इसमें पता चला था कि भंडारण की कमी के चलते 92000 करोड़ के खाद्य उत्पाद बेकार हो गए थे। 

- यह वही समय था, जब भारत में रिटेल चेन के विस्तार की शुरुआत हुई थी। उस वक्त इन्हें माध्यमिक भंडारण के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसलिए वे सीधे तौर पर किसान या एफसीआई से उत्पाद खरीदने लगे। 


'राजनीतिक एजेंडे का हुआ खुलासा' 

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