Farmers Protest Row: किसान आंदोलन के बीच चौथे दौरे के बातचीत में मोदी सरकार ने लिए थे बड़े फैसले, जानें क्या थे वो
पंजाब के किसानों को 5 फसलों पर MSP लागू करने की बात की गई थी। इन फसलों में कपास, मक्का, अरहर, उड़द और मसूर दाल शामिल है। इसका उद्देश्य किसानों को गेहूं और धान, दोनों ही जल-गहन फसलों से अलग विविधता लाने में मदद करना था।
sourav kumar | Published : Feb 22, 2024 9:05 AM IST
किसान आंदोलन। केंद्र और पंजाब के किसान संघों के बीच बीते रविवार (18 फरवरी) को चौथे दौर की बातचीत हुई थी। उस दौरान नरेंद्र मोदी सरकार ने एक अनोखा समाधान पेश किया था। इसके मुताबिक पंजाब के किसानों को 5 फसलों पर MSP लागू करने की बात की गई थी। इन फसलों में कपास, मक्का, अरहर, उड़द और मसूर दाल शामिल है। इसका उद्देश्य किसानों को गेहूं और धान, दोनों ही जल-गहन फसलों से अलग विविधता लाने में मदद करना था।
इसके लिए अगले 5 सालों के लिए उनकी स्थिति को सुधारना है और आर्थिक रूप से सुरक्षित करना था। यह समझौता सरकारी एजेंसियों (CCI, NAFED, आदि) के माध्यम से किया जाना था। खरीदी जाने वाली फसलों की मात्रा की कोई ऊपरी सीमा नहीं थी। हालांकि, इसको किसान समूह ने नमंजूर कर दिया था और बुधवार (21 फरवरी) से आंदोलन शुरू कर दिया था।
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पंजाब में फसल और जल की स्थिति
पंजाब में भूजल की भी स्थिति सामान्य है। डायनेमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट ऑफ इंडिया-2017 रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में 138 मूल्यांकन किए गए ब्लॉकों में से 109 ब्लॉक अत्यधिक दोहन वाले, दो गंभीर, पांच अर्ध-महत्वपूर्ण है और केवल 22 सुरक्षित हैं।
राज्य का कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 23.93 बीसीएम (अरब घन मीटर) आंका गया, वार्षिक निकालने योग्य भूजल संसाधन 21.59 बीसीएम था। फिर भी, वार्षिक भूजल निकासी 35.78 बीसीएम थी, जो निकासी 166 प्रतिशत थी। ये भारत के किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक थी। वही राजस्थान के लिए भी ये 140 प्रतिशत से कम है।
पंजाब के छोटे किसान का भूजल निकालने की लागत बढ़ गई है इसलिए केंद्र सरकार ने उनके लागत को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाए।
पंजाब के अधिकांश क्षेत्र में गेहूं और धान की खेती होती है। ये आंकड़ा 85 फीसदी है, इसलिए किसानों को कपास, दालों और मक्का के लिए सरकारी समर्थन की आवश्यकता है। इस वजह से भी सरकार ने ऐसे फसलों पर MSP को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर लागू करने की बात की थी।
हालांकि, केंद्र के प्रस्ताव को अस्वीकार करके कृषि संघों ने अपने अल्पकालिक हितों के लिए पंजाब के किसानों के दीर्घकालिक हितों को दांव पर लगा दिया है। गेहूं और धान से दूर जाने की अनुमति न देकर, ये यूनियनें न केवल किसानों को नए बाजार तलाशने से रोक रही हैं, बल्कि भूजल तनाव भी बढ़ा रही हैं।