सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को खत्म करना लोकतंत्र के लिए घातक, ऐसा करना एक अंधे युग में प्रवेश जैसा: पूर्व सीजेआई नरीमन

पूर्व सीजेआई ने कहा कि कॉलेजियम जब नामों की सिफारिश करता है तो उस पर केंद्र द्वारा अड़ंगा डालना लोकतंत्र के लिए घातक है।

Supreme Court Collegium: हाईकोर्ट्स में जजों की नियुक्तिायों के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम पर केंद्र सरकार लगातार हमलावर है। कॉलेजियम के खिलाफ केंद्र सरकार की आलोचना पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने खिंचाई की है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम लिए बगैर पूर्व सीजेआई ने दोनों को आड़े हाथों लेते हुए कॉलेजियम को खत्म करना लोकतंत्र के लिए खतरा बताया। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम जब नामों की सिफारिश करता है तो उस पर केंद्र द्वारा अड़ंगा डालना लोकतंत्र के लिए घातक है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर 30 दिनों के भीतर सरकार नामों को स्वीकृति नहीं देती तो वह ऑटोमेटिकली स्वीकृत हो जाए। बता दें कि जस्टिस नरीमन स्वयं कॉलेजियम का हिस्सा रह चुके हैं। अगस्त 2021 में वह रिटायर हुए थे।

पूर्व सीजेआई रोहिंटन फली नरीमन, भारत के सातवें मुख्य न्यायाधीश एमसी छागला मेमोरियल लेक्चर को मुंबई में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र और निडर न्यायाधीशों के बिना दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती है। अगर ऐसा हुआ तो हम नए अंधेरे युग की खाई में प्रवेश करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि "यदि आपके पास स्वतंत्र और निडर न्यायाधीश नहीं हैं तो अलविदा कहें। कुछ भी नहीं बचा है। मेरे अनुसार यदि यह गढ़ गिरता है, या गिरना होता है, तो हम एक नए रसातल में प्रवेश करेंगे।" उन्होंने कॉलेजियम की वकालत करते हुए कहा कि अगर कॉलेजियम खत्म हो जाएगा तो काला युग प्रारंभ होने से कोई नहीं रोक सकेगा। उन्होंने कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के एक कार्टून का जिक्र किया है जिसमें लक्ष्मण का आम आदमी खुद से एक ही सवाल पूछता- अगर नमक का स्वाद खत्म हो गया है, तो उसे नमकीन कहां से किया जाएगा?

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मामला संविधान पीठ में जाना चाहिए...

जस्टिस नरीमन ने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के सभी कमजोर सिरों को जोड़ने के लिए पांच-न्यायाधीशों की पीठ का गठन करना चाहिए। और उस संविधान पीठ को सभी के लिए यह निर्धारित करना चाहिए कि एक बार कॉलेजियम द्वारा सरकार को एक नाम भेजा जाता है, अगर सरकार के पास 30 दिनों की अवधि के भीतर कहने के लिए कुछ नहीं है, तो नियुक्ति स्वत: स्वीकृत मान ली जानी चाहिए। कॉलेजियम की संस्तुतियों को रोकना लोकतंत्र के लिए घातक है।

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