किसी को तीसरी बार मिली सत्ता, तो कोई 7वीं बार बैठा कुर्सी पर, जानिए राजनीतिक दलों के लिए कैसा रहा 2020

साल 2020 बीतने को है। यह साल आम लोगों की तरह ही राजनीतिक पार्टियों के लिए मिला जुला रहा। 2020 में दो राज्यों में चुनाव हुए। जबकि एक राज्य में बड़ा उलटफेर हुआ। इस साल की शुरुआत यानी फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। इसके बाद मार्च में मध्यप्रदेश में उलटफेर हुआ।

Asianet News Hindi | Published : Dec 7, 2020 11:08 AM IST / Updated: Dec 07 2020, 05:35 PM IST

नई दिल्ली. साल 2020 बीतने को है। यह साल आम लोगों की तरह ही राजनीतिक पार्टियों के लिए मिला जुला रहा। 2020 में दो राज्यों में चुनाव हुए। जबकि एक राज्य में बड़ा उलटफेर हुआ। इस साल की शुरुआत यानी फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। इसके बाद मार्च में मध्यप्रदेश में उलटफेर हुआ। वहीं, अक्टूबर नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी एक बार फिर सत्ता में वापिस आने में सफल हुई। वहीं, बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बनी। जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस को 2 साल बाद ही सत्ता से बेदखल होना पड़ा। आईए जानते हैं कि यह साल राजनीतिक पार्टियों के लिए कैसा रहा?

इन दो राज्यों में हुए चुनाव:

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दिल्ली- इस साल की शुरुआत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुआ। फरवरी में हुए इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का जलवा बरकरार रहा। 70 सीटों वाले राज्य में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, भाजपा ने 8 सीटें हासिल कीं। जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। केजरीवाल तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में शाहीन बाग का मुद्दा काफी छाया रहा। दरअसल, नागरिकता कानून के विरोध में शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।

<p><strong>- राजधानी दिल्ली में चुनाव- केजरीवाल का जलवा बरकरार</strong><br />इस साल की शुरुआत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुआ। फरवरी में हुए इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का जलवा बरकरार रहा। 70 सीटों वाले राज्य में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, भाजपा ने 8 सीटें हासिल कीं। जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। केजरीवाल तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में शाहीन बाग का मुद्दा काफी छाया रहा। दरअसल, नागरिकता कानून के विरोध में शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।</p>


बिहार- इस साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। जबकि लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद, कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा। एग्जिट पोल में इस बार राजद की सरकार बनती दिख रही थी। हालांकि, नतीजे आने के बाद साफ हो गया कि भाजपा नीतीश कुमार के लिए संकटमोचक बनी। नीतीश कुमार ने 7वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस चुनाव में राजद को सबसे ज्यादा 75, भाजपा को 74, जदयू को 43, कांग्रेस को 19 और अन्य को 20 सीटें मिलीं। एनडीए को 125 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला। 

मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने सत्ता गंवाई
मध्यप्रदेश में दिसंबर 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे। भाजपा को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। मप्र के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा ने सत्ता गंवा दी थी। लेकिन 2020 की साल भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुई। कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा। इतना ही नहीं उनके साथ कांग्रेस के बागी विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इसके चलते कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। शिवराज सिंह चौहान एक बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 

भाजपा या एनडीए की 17 राज्यों में सरकार

BJP NDA ruling states map after bihar election results KPP


इन राज्यों में कांग्रेस-यूपीए की सरकार
छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब और पुड्डुचेरी में कांग्रेस की सरकार है। जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस सरकार में सहयोगी है। 

हैदराबाद नगर निगम चुनाव रहा चर्चा में
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) के चुनाव नतीजों ने सभी को चौंका दिया। यह पहला मौका था, जब किसी नगर निगम चुनाव की राष्ट्रीय स्तर पर इतनी चर्चा हुई हो। साफ तौर पर कहें तो इसके पीछे प्रमुख वजह है भाजपा। भाजपा ने जिस तरह से ये चुनाव लड़ा, प्रचार में राष्ट्रीय नेताओं को उतारा और जिस तरह 4 से 46 सीटों तक का सफर तय किया। दरअसल, 150 सीटों वाले नगर निगम में भाजपा को कुल 46 सीटें मिली। हालांकि, इस बार भी सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) 55 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही। ओवैसी की पार्टी को 44 सीटें मिलीं। इसके बावजूद इन नतीजों में सबसे ज्यादा चर्चा भाजपा की रही। भाजपा ने पिछली बार चुनाव में सिर्फ 4 सीटें जीती थीं। ऐसे में भाजपा का ये प्रदर्शन दक्षिण भारत में पार्टी के लिए संजीवनी तो बन ही सकता है, साथ में प बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं के लिए जोश भर सकता है। 

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