From the IAF Vault: इंडियन एयरफोर्स के पहले फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर की कहानी, मेडिकल की पढ़ाई छोड़ पूरा किया था उड़ने का सपना

Published : May 30, 2023, 03:22 PM ISTUpdated : May 30, 2023, 06:52 PM IST
Air Commodore Jagdev Chandra

सार

भारतीय वायु सेना के इतिहासकार अंचित गुप्ता ने एयर कमोडोर जगदेव चंद्र की कहानी सुनाई है। जगदेव चंद्र IAF के पहले फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। 

(अंचित गुप्ता) जगदेव चंद्र भारतीय वायु सेना के पहले फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। उनका जन्म गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) के एक पंजाबी परिवार में 6 अक्टूबर 1916 को हुआ था। उनके पिता डॉक्टर और भाई जग प्रवेश चंद्र नेता था। जगदेव ने मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर उड़ने का सपना पूरा किया था। उन्होंने मेडिकल स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी थी और JRD Tata को ज्वाइन कर लिया था। वह लाहौर में नॉर्दर्न इंडिया फ्लाइंग क्लब से सिविल फ्लाइंग लाइसेंस प्राप्त करने वाले पहले छात्रों में से एक थे।

जगदेव अगस्त 1940 में भारतीय वायु सेना में शामिल हुए थे। उन्हें स्वयंसेवी रिजर्व के रूप में चौथे पायलट कोर्स के साथ नियुक्त किया गया था। वायुसेना में शामिल होने के समय उनके पास एक हजार घंटे उड़ान का अनुभव था। ITS वाल्टन में शुरुआती ट्रेनिंग के बाद उन्हें इंटरमीडिएट ट्रेनिंग के लिए अंबाला में सर्विस फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल भेजा गया था। उस वक्त भारतीय वायु सेना में एक भी इंस्ट्रक्टर (प्रशिक्षक) भारतीय नहीं था। रॉयल एयर फोर्स (ब्रिटिश एयर फोर्स) के विंग कमांडर वुक्कुआन सिम्पसन सर्विस फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल के मुख्य प्रशिक्षक थे।

जगदेव की क्षमता से प्रभावित हुए थे सिम्पसन

सिम्पसन जगदेव की क्षमता से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने सिफारिश की कि भारतीय पायलटों को भी प्रशिक्षक बनाया जाए। जगदेव ने मई 1941 में अपनी फ्लाइंग ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद नंबर 2 स्क्वाड्रन ज्वाइन किया। इसमें वह अक्टूबर तक रहे। इसके बाद उन्हें फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर बनाया गया। वह पहले भारतीय फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर बने।

जगदेव को आजादी मिलने के बाद बनाया गया विंग कमांडर

जगदेव तीन अन्य पायलट के साथ चार सप्ताह की ट्रेनिंग के लिए SFTS गए। उनका पेशावर और बर्मा में 7 स्क्वाड्रन के साथ और फिर कमांडिंग ऑफिसर सहित 4 स्क्वाड्रन के साथ एक लंबा कार्यकाल था। रॉयल नेवी एयरक्राफ्ट कैरियर पर चंद्रा के 4 स्क्वाड्रन को तैनात किया गया था। इस स्क्वाड्रन जापान पर हमले के लिए चुना गया था। भारत को आजादी मिलने के बाद जगदेव को विंग कमांडर (प्रशिक्षण) बनाया गया था।

1955 में ग्रुप कैप्टन बने थे जगदेव

नवंबर 1955 में जगदेव को ग्रुप कैप्टन बनाया गया था। उन्हें जोधपुर में वायु सेना फ्लाइंग कॉलेज (AFFC) के कमांडेंट के रूप में नियुक्त किया गया। वह इस पद पर लगभग चार साल तक रहे। इसके बाद उन्होंने वायु सेना मुख्यालय में प्रशिक्षण निदेशक के रूप में कार्यभार संभाला। अंत में उन्हें ट्रेनिंग कमांड में सीनियर एयर स्टाफ ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने 1968 में भारतीय वायुसेना से समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली। 1991 में उनका निधन हो गया।

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