सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 12वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 12वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
म्यूट बटन...
भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल की आवाज आखिर किसने बंद की? यतनाल अपने पार्टी सहयोगियों के अलावा बीएस येदियुरप्पा और मंत्री मुरुगेश निरानी जैसे सीनियर लीडर समेत विरोधियों पर कटाक्ष करने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन हाल ही में दिल्ली के एक गुप्त दौरे के बाद से यतनाल बेहद खामोश नजर आ रहे हैं। पहले तो लोगों को लगा कि हो सकता है उनकी खामोशी की वजह दिल्ली की ठंड हो, जिसने उनकी आवाज बंद कर दी है। लेकिन बाद में पता चला कि गृह मंत्री अमित शाह की कड़ी चेतावनी के बाद उनक म्यूट बटन दबा दिया गया है। अमित शाह की 'चुप रहने की सलाह' ने इस तेजतर्रार नेता को अपने भावनात्मक प्रकोप को शांत करने के लिए मजबूर कर दिया है। बता दें कि पिछले दिनों पंचमसालियों की एक विरोध रैली को संबोधित करते हुए यतनाल ने बिना नाम लिए अपनी ही पार्टी के एक मंत्री को 'दलाल' तक कह दिया था। इसके बाद ये विवाद और बढ़ गया। लेकिन सूत्रों का कहना है कि यतनाल, जिनके आरएसएस में भी बहुत कम दोस्त हैं, उनके लिए 'शाह-कॉज' नोटिस दूसरा यलो कार्ड है। उनको सांत्वना देने वाले पूर्व दिग्गज अनंत कुमार थे, जबकि यतनाल अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट के सदस्य थे। यहां तक कि कई बार उनके बचाव के लिए लालकृष्ण आडवाणी को भी रेफरी की भूमिका निभानी पड़ी थी।
दूसरे के कंधे से बंदूक चलाना...
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना करने के हरसंभव मौके तलाशती हैं। वो केंद्र सरकार पर जब भी हमला करती हैं, तो उनका दिमाग 'बिना किसी डर के' होता है। इस बार, उन्होंने केंद्र सरकार पर हमला बोलने के लिए कोई और नहीं बल्कि नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन का इस्तेमाल किया। दरअसल, विश्व भारती ने हाल ही में अर्मत्य सेन को (अन्य आश्रमियों की तरह) परिसर की जमीन खाली करने के लिए नोटिस दिया था। सेन उन कई प्रतिष्ठित हस्तियों में से एक हैं, जिन्हें जमीन खाली करने के लिए कहा गया। बता दें कि इन सभी को रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय के पूर्व संकाय सदस्यों के उत्तराधिकारियों के रूप में प्लॉट विरासत में दिए गए थे। अमर्त्य सेन ने अपने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में अपनी स्थिति का हवाला देते हुए जमीन छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद, ममता बनर्जी ने अमर्त्य सेन से शांति निकेतन स्थित उनके घर में मुलाकात की और उन्हें दस्तावेज सौंपे। इसके बाद ममता ने कहा- यह जमीन 1943 में सेन परिवार के नाम पर रजिस्टर्ड थी और इसे जब्त करने की कोई जरूरत नहीं थी। हालांकि, सेन ने इस नोटिस को केंद्र सरकार के खिलाफ अपने रुख का बदला लेने के लिए उठाया गया कदम बताया। वहीं, ममता बनर्जी ने भावनाओं के साथ खेलते हुए 'बदले' की राजनीति के लिए विश्वविद्यालय के अधिकारियों और केंद्र को भड़का दिया। वैसे, 'गैर-मुद्दे' को कैसे भड़काना है, इसकी कला दीदी से बेहतर कौन जान सकता है।
रॉन्ग साइड पार्किंग...
यूपी में एक बीजेपी लीडर की बेटी के भव्य विवाह कार्यक्रम के आयोजन ने उन्हें परेशानी में डाल दिया है। दरअसल, राजधानी लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित शादी समारोह में यूपी के कई नेताओं ने शिरकत की थी। इसके बाद ही समाजवादी पार्टी के सोशल मीडिया हैंडल में फौरन इस बात की चर्चाएं शुरू हो गईं कि उनके शासनकाल में बनाए गए विकास स्थल इस समय बीजेपी नेताओं के लिए सबसे पसंदीदा स्थान बन गए हैं। धीरे-धीरे ये मुद्दा उछलने के साथ ही बीजेपी नेताओं को भी ये लगने लगा है कि इस शादी की वजह से उन्हें जो शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है, उसे टाला जा सकता था। पार्टी के सीनियर लीडर अपनी बेटी का शादी समारोह कहीं और भी रख सकते थे।
पायलट विहीन गाड़ी...
राजस्थान की 40 विधानसभा सीटों पर महत्वपूर्ण पकड़ रखने वाला गुर्जर समुदाय इस वक्त उस झुंड की तरह है, जो अपने लिए चरवाहे की तलाश कर रहा है। अब तक, अधिकांश गुर्जर नेता एक कांग्रेसी नेता के पीछे चल रहे थे, जो उन्हें राजनीतिक परिदृश्य के माध्यम से चला रहा था। लेकिन उस नेता के आंतरिक राजनीति में उलझने के साथ ही गुर्जरों को लगने लगा है कि उसे राजनीतिक ग्रहण लग चुका है। यही वजह है कि गुर्जर नेताओं को अब एहसास हो गया है कि उन्हें एक नए नेता की जरूरत है। हालांकि, अब तक उनकी तलाश बेकार ही रही है। राजनीतिक रूप से महत्वहीन होने की भावना उनके अंदर उस वक्त कई गुना बढ़ गई, जब उस समारोह में उनमें से किसी को भी न्योता नहीं दिया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुर्जर समुदाय को संबोधित किया। इसके बाद गुर्जर समुदाय के नेताओं को ये एहसास हो गया कि वे एक चौराहे पर खड़े हैं और अगर जल्द किसी नए नेता की तलाश नहीं की, तो उनका समुदाय राजनीति के अंतिम छोर पर पहुंच सकता है।
पार्टी का दोहरा रुख...
राजनीतिक सीढ़ी चढ़ना किसी भी पार्टी के पदाधिकारी की महत्वाकांक्षा होती है। लेकिन ऐसा लगता है कि IUML (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) पार्टी में विद्रोही आवाजों को दबाने के लिए अपने स्तर पर कोशिश कर रही है। खासकर उन लोगों को हटाने के लिए, जो पार्टी के ऑल इंडिया जनरल सेक्रेटरी पीके कुन्हालिकुट्टी का विरोध कर रहे हैं। IUML के मार्च में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन से पहले नई कमेटी का गठन किया जाना है। हालांकि, इस लिस्ट में कुन्हालीकुट्टी का विरोध करने वाले नेताओं में शामिल केएस हमजा, केएम शाजी, और पीएम सादिकाली का नाम नहीं है। इससे पार्टी का दोहरा रुख एक बार फिर उजागर होता है, जो हमेशा विपक्षी वर्ग में बराबरी के हक की बात करती है। साथ ही ये भी साफ हो गया है कि पीएमए सलाम पार्टी के सचिव बने रहेंगे। आधिकारिक गुट अपनी जिला इकाइयों में भी समान विचारधारा वाले पार्टी सदस्यों को शामिल करना सुनिश्चित कर रहा है। इसी अभियान के तहत हाल ही में तिरुवनंतपुरम में एक फिल्म स्टार को अपने पाले में लाने की कोशिश की गई थी। लेकिन दूसरी श्रेणी के नेता इस पूरी कवायद से खुश नहीं हैं। कई लोगों को लगता है कि लीग में जगह बनाने की उनकी संभावना अब एक अधूरी महत्वाकांक्षा बनकर रह जाएगी।
पिता-पुत्र की उम्मीदें...
'आम' के चुनाव चिह्न वाली पार्टी तमिलनाडु की राजनीति के चटपटे सीरप में कूदने को तैयार है। वो इस कोशिश में है कि राजनीतिक थाली में थोड़ी जगह तलाशी जाए। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को खुश करने के लिए पिता और पुत्र, जो पार्टी का नेतृत्व करते हैं उन्होंने राज्यपाल पर हमला करने का एक आसान रास्ता खोज निकाला है। दरअसल, पार्टी ऑनलाइन गैंबलिंग बिल को मंजूरी देने में हो रही देरी की कड़ी निंदा करते हुए बेवजह शोर मचा रही है। लेकिन इसके साथ ही एक स्वीकार्य नुस्खा पार्टी से दूर होता दिख रहा है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल के सहयोगी पिता-पुत्र की इस जोड़ी को प्रमुखता देने के किसी भी कदम का विरोध कर रहे हैं। 'आम' को डीएमके की टोकरी में शामिल करने के किसी भी प्रयास को धमकाने के लिए घटक दल के नेता ने अपनी मूंछें टेढ़ी कर ली हैं। 2024 के चुनावों के लिए पिता-पुत्र की उम्मीदें क्या समय पर पकेंगी या फिर खट्टी हो जाएंगी, ये देखना बेहद दिलचस्प होगा।
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