धार्मिक, ऐतिहासिक व पौराणिक माधवपुर का मेला गुजरात की संस्कृति व विरासत का एक प्रमुख हिस्सा है। प्रतिवर्ष लोग यहां पर लगने वाले इस विशाल मेले में भाग लेते हैं, साथ ही मेले में होने वाले धार्मिंक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेते हैं।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात (Pm Modi mann ki batt) में गुजरात के पोरबंदर के प्रसिद्ध माधवपुर मेले (Madhavpur mela) का जिक्र किया। गुजरात में लगने वाला माधवपुर मेला गुजरात की संस्कृति व परंपरा की पहचान है। यह मेला हर साल आयोजित होता है। इसमें 8 राज्य शामिल होते हैं, जिससे इस मेले की भव्यता देखते ही बनती है। मेले में तमाम प्रकार के झूलों के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम इस मेले की शोभा को बढ़ाने का काम करते हैं।
भगवान कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह का प्रतीक है माधवपुर मेला
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण - रुक्मिणी को उनके महल से स्वयंर के दौरान हरण कर लाए थे। इसके बाद गुजरात के पोरबंदर जिले के माधवपुर गढ़ में रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण ने विवाह किया था। तबसे यह स्थान श्रीकृष्ण- रुक्मिणी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। प्रतिवर्ष यहां पर भगवान के प्रतीक रूप की पूजा के अवसर पर विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार इस मेले को भव्य रूप देने की अपील की है, जिससे गुजरात की यह परंपरा का देश के साथ विदेशों में भी प्रचार-प्रसार हो सके।
राम नवमी से लेकर पांच दिनों तक चलता है मेला
गुजरात में माधवपुर मेले की शुरुआत चैत्र नवरात्रि की रामनवमी से होती है। इसके बाद यह अगले पांच दिनों तक चलता है। यह मेला माधवपुर के माधवराज जी के मध्यकालीन मंदिरों से जुड़ा हुआ है। मेले में रंगबिरंगे रथों को बहुत ही आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। रथ पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा रखी जाती है। इसके बाद इस रथ को पूरे गांव में घुमाया जाता है। इसके बाद रुक्मिणी-श्रीकृष्ण का विवाह सम्पन्न कराया जाता है। इस मेले को देखने के लिए देश के दूरदराज से बड़ी संख्या में लोग आते हैं और इस भव्य मेले के गवाह बनते हैं।
अरुणाचल प्रदेश की मिश्मी जनजाति से भी संबंध रखता है माधवपुर मेला
गुजरात का माधवपुर मेला अरुण्लाचल प्रदेश के मिश्मी जनजाति से संबंध रखता है। इसमें मणिपुरी लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है। मणिपुर की प्रसिद्ध संगीत मंडली खुल्लोंग रुक्मिणी संबंधी गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण व रुक्मिणी के प्रतीक स्वरूप भव्य झांकी का सजीव मंचन करते हुए भगवान की लीला को याद करते हैं। मिश्मी जनजाति के लोग पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भीष्मक और बेटी रुक्मिणी- कृष्ण के वंश से संबंधित है।
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अरुणाचल प्रदेश व गुजरात के बीच अमर यात्रा के नाम से प्रसिद्ध है कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रूक्मिणी अपने पिता भीष्मक के साथ अरुणाचल प्रदेश में रहती थीं। जब उन्होंने बेटी के स्वयंवर का आयोजन किया तो रुक्मिणी के भाई रुक्मण ने बहन की शादी श्री कृष्ण के साथ होने का विरोध किया। इसके फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण अरुणाचल प्रदेश में चल रहे स्वयंवर से रुक्मिणी को गुजरात ले आये थे। रुक्मिणी हरण की इस यात्रा को अमर यात्रा के नाम से ख्याति मिली। आज भी इसका उल्लेख कालिका पुराण में मिलता है।
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