Hijab Controversy: जजों में 'मतभेद' के चलते SC नहीं सुना सका फैसला, कोई दूसरी या बड़ी बेंच को सौंपा जाएगा

सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। जस्टिस हेमंत गुप्ता इस सप्ताह रिटायर होने वाले हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने 10 दिनों तक सुनवाई के बाद 22 सितंबर को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

नई दिल्ली. स्कूल-कॉलेजों मे हिजाब पर बैन (Karnataka hijab case) के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज(13 अक्टूबर) अपना फैसला सुनाने वाली थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट के दोनों ही जजों की राय इस मामले पर अलग-अलग रही। इसके बाद मामले को बड़ी बेंच को सौंपने की सिफारिश कर दी गई। यानी अब सुनवाई तीन या इससे ज्यादा जजों की बेंच में होगी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गुप्ता ने कहा कि मामला चीफ जस्टिस के पास भेज रहे हैं, ताकि वे बड़ी बेंच का गठन कर सकें। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। जस्टिस हेमंत गुप्ता इस सप्ताह रिटायर होने वाले हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाने के पहले संकेत दिए थे। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने 10 दिनों तक सुनवाई के बाद 22 सितंबर को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

यह थी जजों की राय
जस्टिस गुप्ता ने इस याचिका के खिलाफ अपना फैसला दिया, जबकि जस्टिस धूलिया इसे लेकर अलग राय रखते थे। जस्टिस धूलिया का तर्क कि उनका दिमाग में सबसे बड़ा सवाल लड़कियों की शिक्षा का है। वे इसे बच्चियों की मर्जी पर छोड़ना चाहते थे। लिहाजा याचिकाओं को मंजूरी दी। लेकिन जस्टिस गुप्ता कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से सहमत थे। याचिकाकर्ता के वकील एजाज मकबूल ने बताया कि CJI तय करेंगे कि मामले पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच गठित की जाए या फिर कोई अन्य बेंच। याचिकाकर्ता की दलीलें हैं कि छात्राएं स्टूडेंट्स के साथ भारत की नागरिक भी हैं। इसलिए ड्रेस कोड का नियम लागू करना उनके संवैधानिक अधिकार का हनन कहलाएगा। सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई के दौरान इन तीन सवालों- क्या हिजाब इस्लाम का हिस्सा है, अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा निजता के अधिकार की सीमा क्या है? के जवाब खोजेगी।

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जानिए किसने क्या कहा?
हम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हैं। हमने बेहतर फैसले की उम्मीद की थी क्योंकि दुनिया भर की महिलाएं हिजाब और बुर्का नहीं पहनने की मांग कर रही हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश अंतरिम समय में लागू रहेगा। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश बेंगलुरु में बोले

अभी हाईकोर्ट का फैसला लागू रहेगा, क्योंकि एक जज ने याचिका को खारिज किया है और दूसरे ने उसे खारिज नहीं किया है। अब हाई कोर्ट का फैसला तब तक जारी रहेगा जब तक किसी बड़े बेंच का फैसला नहीं आ जाता है। वकील वरूण सिन्हा

आज का फैसला एक खंडित फैसला है। जिसे देखते हुए बेंच ने इसे बड़ी बेंच को रेफर कर दिया है। याचिकाकर्ता पक्ष के वकील आफताब अली खान

जानिए पूरा मामला...
कर्नाटक में हिजाब (Karnataka Hijab controversy) को लेकर जारी विवाद में 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट की तीन मेंबर वाली बेंच ने साफ कहा था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। यानी हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने की इजाजत देने से मना कर दिया। हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी को दिए आदेश को भी निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था। यह भी पढ़ें-Hijab controversy:भारतीय मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने के फेवर में थी मलाला, पर ईरान में नहीं चाहतीं, क्यों?‌

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता एसएस नागानंद ने तर्क दिया था कि 2004 से प्रदेश में यूनिफॉर्म लागू है, लेकिन 2021 से पहले किसी ने इस मामले में विरोध नहीं किया। 2021 के अंत में छात्राओं और उनके अभिभावकों को हिजाब के लिए भड़काया गया। 

विवाद की शुरुआत उडुपी गवर्नमेंट कॉलेज से 27 दिसंबर, 2021 को शुरू हुई थी, जब कुछ लड़कियों को हिजाब पहनकर क्लास आने से रोका गया था। यहां के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा के मुताबिक, 31 दिसंबर को अचानक कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनकर क्लास में आने की इजाजत मांगी। अनुमति नहीं मिलने पर विरोध शुरू हो गया।

उडुपी के गवर्नमेंट गर्ल्स पीयू कॉलेज की छह छात्राओं ने आरोप लगाया था कि उन्हें हेडस्कार्फ़ पहनने पर जोर देने के लिए कक्षाओं से रोक दिया गया था। इस पर उडुपी और चिक्कमगलुरु में दक्षिणपंथी समूहों ने आपत्ति जताई थी। इस तरह यह विवाद देशभर में फैल गया। 

इस मामल में सीएफआई (Campus front of India) सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) समर्थित संगठन पर हिंसा फैलाने के आरोप लगे थे। सीएफआई 7 नवंबर 2009 को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( Popular Front of India ) के मार्गदर्शन में शुरू किया गया था। तमिलनाडु के मोहम्मद यूसुफ इसके पहले अध्यक्ष थे। दावा था कि यह संगठन साम्राज्यवाद और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष करेगा, लेकिन इस पर धार्मिक कट्‌टरपंथ फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया ने एंटी सीएए जैसे प्रदर्शनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। हाल में PFI पर बैन लगा दिया गया है।

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