हिजाब विवाद : HC में तुर्की की धर्मनिरपेक्षता, अफ्रीका की कोर्ट के फैसले का जिक्र, रुद्राक्ष को लेकर भी तर्क

Hijab row : मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील देवदत्त कामत ने अपनी दलील में कहा कि मैं भी कॉलेज में था तब रुद्राक्ष पहनता था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपनी धार्मिक आस्था प्रदर्शित करता था। कामत ने कहा कि राज्य सरकार घृणित प्रथाओं को रोक सकती है, लेकिन हिजाब किसी भी तरह से घृणित या हानिकारक नहीं है। अनुच्छेद 25 का सार यह है कि आस्था की किसी भी प्रथा की रक्षा करनी चाहिए।

Asianet News Hindi | Published : Feb 15, 2022 12:10 PM IST

बेंगलुरू। हिजाब को लेकर उठे विवाद (Hijab row) के बीच मंगलवार को एक बार फिर कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka Highcourt) में मामले की सुनवाई हुई। करीब दो घंटे से अधिक चली सुनवाई में ज्यादातर समय याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील देवदत्त कामत दलीलें पेश करते रहे। इससे नाराज चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने नाराजगी जताते हुए कहा- आपने कल कहा था कि सिर्फ 10 मिनट में पूरी दलीलें पेश कर देंगे। इसके बाद कामत ने दो-तीन दलीलें पेश कीं। लेकिन उनके बाद बहस के लिए खड़े हुए रविवर्मा कुमार ने कर्नाटक के कॉलेजों में चल रही कॉलेज डवलपमेंट कमेटियों पर ही सवाल उठा दिए। इसके बाद चीफ जस्टिस ने कल फिर से मामले को सुनवाई के लिए लिस्ट कर दिया। 

मैं भी कॉलेज में रुद्राक्ष पहनता था... 
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील देवदत्त कामत ने अपनी दलील में कहा कि मैं भी कॉलेज में था तब रुद्राक्ष पहनता था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपनी धार्मिक आस्था प्रदर्शित करता था। कामत ने कहा कि राज्य सरकार घृणित प्रथाओं को रोक सकती है, लेकिन हिजाब किसी भी तरह से घृणित या हानिकारक नहीं है। अनुच्छेद 25 का सार यह है कि आस्था की किसी भी प्रथा की रक्षा करनी चाहिए। कामत ने सुप्रीम कोर्ट से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक की अदालतों के फैसलों का जिक्र किया। दक्षिण अफ्रीका में एक हिंदू लड़की को नाक में अंगूठी (नथ) पहनने पर स्कूल ने प्रवेश से रोक दिया था, लेकिन वहां की अदालत ने लड़की को यह पहनकर स्कूल में प्रवेश दिलवाया। स्कूल का तर्क था कि इससे दूसरे छात्रों को अलग-अलग तरह के भयावह प्रदर्शन करने को बल मिलेगा, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया। 
कामत ने कहा कि ऐसा संदेश नहीं दें कि आप किसी समुदाय के धर्म  या संस्कृति का स्वागत नहीं कर रहे। 

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दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट ने कहा- धर्म संस्कृति का प्रदर्शन भयानक नहीं 
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने पूछा कि दक्षिण अफ्रीका की अदालत ने फैसले में क्या कहा। इस पर कामत ने बताया कि इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि धर्म और संस्कृति का प्रदर्शन भयानक नहीं, बल्कि विविधता की सुगंध है, जो हमारे देश को समृद्ध बनाएगी। उन्होंने इसी फैसले के आधार पर यूनिफॉर्म के रंग के हिजाब को मान्यता देने की मांग की। कामत ने कहा- हमारी धर्मनिरपेक्षता तुर्की की धर्मनिरपेक्षता नहीं, जहां सभी समुदायों को धार्मिक स्वतंत्रता का प्रयोग नहीं करने दिया जाए। 

ट्रेन का टिकट नहीं तो प्रवेश की अनुमति न मिलना निष्कासन नहीं
कामत के तर्कों पर चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने पूछा- क्या छात्रों को निष्कासित किया गया। इस पर कामत ने जवाब दिया कि निष्कासित नहीं किया गया, लेकिन उन्हें कक्षाओं में नहीं जाने दिया जा रहा। दोनों का प्रभाव एक ही है। इस पर जस्टिस दीक्षित ने कहा -  निष्कासन एक बात है, प्रवेश की अनुमति नहीं देना दूसरी बात। अगर किसी यात्री के पास टिकट नहीं होने की वजह से ट्रेन में अंदर जाने की अनुमति नहीं है, तो यह निष्कासन नहीं है। कामत ने कहा- यह ट्रेन में यात्री का मामला नहीं है। यह छात्र के शिक्षा का उपयोग करने का मामला है और राज्य कह रहा है कि हम आपको अनुमति नहीं देंगे। कृपया यूनिफॉर्म के रंग का हिजाब पहनने की छूट दें। कृपया अंतरिम आदेश जारी न रखें। 

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हिजाब पर कोई प्रतिबंध नहीं है : कुमार
कामत के बाद एक याची के वकील रविवर्मा कुमार ने सरकारी आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि वह (सरकार)'सुव्यवस्ते' में नहीं जाना चाहते। यह निश्चित रूप से अव्यवस्थ है। सरकार ने आदेश में खुद कहा है कि उन्होंने यूनिफॉर्म पर फैसला नहीं किया है, लेकिन इस मसले को लेकर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। आदेश में कहा गया है कि कर्नाटक प्री-यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले महाविद्यालयों में यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट कमेटी द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म का पालन करना होगा। कुमार ने कहा कि सार यह है कि हिजाब पर कोई प्रतिबंध नहीं है। कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी ही यूनिफॉर्म तय करेगी। लेकिन कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के तहत कॉलेज विकास समिति नियमों के विपरीत एक अतिरिक्त कानूनी समिति है। लेकिन कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की धारा 2 (7) के तहत इसे ड्रेस निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इस पर चीफ जस्टिस अवस्थी ने पूछा - आप कह रहे हैं कि कॉलेज विकास समिति अधिनियम के तहत परिभाषित नहीं है। कुमार: यह अधिनियम के तहत एक प्राधिकरण नहीं है। इसके बाद चीफ जस्टिस ने मामले को कल तक के लिए टाल दिया। 

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