हिजाब को लेकर आज सातवें दिन सुनवाई, जानें पिछली 6 सुनवाई में कोर्ट में कैसे चले छात्राओं और सरकार के तर्क

Karnataka Hijab row : कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में ड्रेस कोड लागू करने से सकरार के आदेश को लेकर मचा हंगामा थमता नहीं दिख रहा है। हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को प्रवेश नहीं देने के बाद से मामला विवादों में है। हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच में सुनवाई चल रही है।10 फरवरी से अब तक 6 दिन सुनवाई हो चुकी है। पढ़ें, इस दौरान छात्राओं के वकीलों की दलीलों पर सरकार ने क्या तर्क दिया। 

बेंगलुरू। कर्नाटक में हिजाब बैन (Karnataka Hijab Ban) का मामला पूरे देश में तूल पकड़ रहा है। रविवार रात शिवमोगा जिले में बजरंग दल के एक कार्यकर्ता की हत्या (Bajrang Dal Activist Murder) के बाद वहां धारा 144 लागू कर दी गई है। इधर, हिजाब बैन (Hijab Ban) के मुद्दे पर कर्नाटक हाईकोर्ट में आज फिर सुनवाई होनी है। 31 जनवरी को सरकार की तरफ से एक आदेश जारी कर राज्य के शिक्षण संस्थानों में यूनिफॉर्म का पालन करने के आदेश दिए गए हैं। इसके बाद से हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है।

10 फरवरी से चल रही सुनवाई
राज्य के उडुपी और मांड्या समेत कई जिलों में इसे लेकर प्रदर्शन हुए। हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 10 फरवरी को सुनवाई शुरू हुई की और अंतरिम आदेश जारी कर फैसला होने तक स्कूल--कॉलेजों में धार्मिक कपड़े नहीं पहनने को कहा। इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चैलेंज किया गया, लेकिन शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही कोई सुनवाई करने की बात कही। 10 फरवरी से पांच दिनों तक लगातार छात्राओं के वकीलों ने अपनी दलीलें रखीं। शुक्रवार 18 फरवरी को महधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने अपनी दलीलें पेश कीं। आज भी नवदगी अपनी दलीलें रखेंगे। , पढ़ें…10 फरवरी से चल रही इस सुनवाई में अब तक क्या दलीलें और तर्क पेश किए गए!




पहला दिन : पहले दिन यानी 10 फरवरी को छात्राओं की तरफ से अधिवक्ता देवदत्त कामत और संजय हेगड़े ने अपनी दलीलें रखी थीं। छात्राओं के वकीलों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता बताते हुए कहा कि हिजाब पहनने का अधिकार अभिव्यक्ति, निजता और अंतःकरण की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है। इसलिए इस पर से रोक नहीं होनी चाहिए। हालांकि, हाईकोर्ट कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि जब तक इस मामले की सुनवाई जारी रहती है, तब तक किसी भी छात्र को धार्मिक कपड़े पहनने की जिद नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने साफ कहा कि फैसला आने तक तब तक कोई भी धार्मिक पोशाक न पहने।

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दूसरा दिन : छात्राओं के वकील ने तर्क किया कि  सरकार का आदेश कानून की जरूरतों को पूरा किए बिना प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि ये कानूनी रूप से टिकने वाला नहीं है। शासनादेश में कहा गया है कि हिजाब पहनना अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित नहीं है। वकील संजय हेगड़े (Sanjay Hegde) ने कहा कि यह केवल धार्मिक आस्था का मामला नहीं है, बल्कि इससे लड़कियों की शिक्षा का सवाल भी जुड़ा हुआ है। यूनिफॉर्म के नियम का उल्लंघन करने पर दंड का कोई प्रावधान नहीं है। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में जो भी दंड की व्यवस्था की गई है, वह ज्यादातर प्रबंधन से जुड़े मामलों के लिए है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा– हमने आपकी बात समझ ली है कि कर्नाटक एजुकेशन एक्ट में इसको लेकर प्रावधान नहीं है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी हिजाब मामले को राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनाने की नसीहत के साथ मामले का निपटारा कर्नाटक हाईकोर्ट से कराने की बात कही थी। मामला बढ़ा तो सरकार ने 16 फरवरी तक स्कूल--कॉलेज बंद कर दिए। 




तीसरा दिन : छात्राओं के वकील ने कोर्ट में आरोप लगाए कि लड़कियों को स्कूल से निकाल दिया गया है। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या उन्हें निष्कासित कर दिया गया है?  वकील ने कहा कि  उन्हें कक्षा में जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। दोनों का प्रभाव एक सा है। इस पर कोर्ट ने कहा कि निष्कासन एक बात है, प्रवेश की अनुमति नहीं देना दूसरी बात। अगर किसी यात्री के पास टिकट नहीं होने की वजह से ट्रेन में अंदर जाने की अनुमति नहीं है, तो यह निष्कासन नहीं है। ढाई घंटे चली दलीलों के बाद भी इस दिन कोई बात नहीं बनी। चीफ जस्टिस ने सुनवाई को अगले दिन के लिए आगे बढ़ा दिया। 

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चौथा दिन : छात्राओं के वकील ने सिखों की पगड़ी के साथ – सथ घूंघट, चूड़ियों और इसाइयों के क्रूस पर भी सवाल उठाया। कहा – नियम केवल एक विशेष वर्ग के लिए है। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या हिजाब कभी यूनिफॉर्म का हिस्सा था, क्या पहले यूनिफॉर्म में कोई हिजाब निर्धारित किया गया था? हालांकि, छात्राओं के वकील इस सवाल का जवाब नहीं दे सके। उन्होंने कहा कि दूसरे समुदाय की लड़की छूट का दावा कर सकती है। हम नहीं कर सकते, हमें सुना भी नहीं जाता। हमें तुरंत सजा दी जाती है। क्या इससे अधिक कठोर उपाय हो सकता है?
इस पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि आपके प्रस्ताव के तहत क्या यूनिफॉर्म बिल्कुल नहीं होनी चाहिए? हालांकि, छात्राओं के वकील ने कहा कि ऐसा नहीं है, लेकिन विषमता को बनाए रखा जाना चाहिए। अनेकता में एकता होना चाहिए आदर्श वाक्य, बहुलता बनी रहे। अगर पगड़ी पहनने वाले सेना में हो सकते हैं, तो उनके धार्मिक चिन्ह वाले व्यक्ति को कक्षाओं में जाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती?  

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पांचवा दिन : छात्राओं के वकील कुलकर्णी ने कहा-- हिजाब पर प्रतिबंध कुरान पर प्रतिबंध के समान है। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछ– आपके लिए हिजाब और कुरान एक ही चीज हैं? कुलकर्णी ने कहा-- मेरे लिए नहीं। पूरी दुनिया के लिए। मैं एक भक्त ब्राह्मण हिंदू हूं। कुरान दुनिया भर में पूरे मुस्लिम समुदाय पर लागू होता है। चीफ जस्टिस ने उन्हें बताया कि हिजाब पर कोई बैन नहीं है। कुलकर्णी ने मांग की कि अदालत हिजाब की अनुमति नहीं देती है, तो यह कुरान पर प्रतिबंध लगाने के समान हो सकता है, अनावश्यक मुद्दे पैदा कर सकता है। कृपया आज अंतरिम आदेश पारित करें। यह बहुत सारी अशांति को रोकेगा। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कुरान में यह कहां लिखा है कि हिजाब मुस्लिम छात्राओं के लिए जरूरी है।   




छठवां दिन : छात्राओं के वकीलों ने हिजाब पर प्रतिबंध को मुस्लिम छात्राओं के साथ भेदभाव बताया है। इस पर महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा– मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव के आरोप निराधार और तर्कहीन है। ड्रेस कोड किसी के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है। उन्होंने कहा कि यूनिफॉर्म सीडीसी ने तय किया है। इसमें स्थानीय विधायक, माता-पिता, छात्र प्रतिनिधि, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य आदि। यह विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करता है। ड्रेस कोड का आदेश कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की धारा 133 के तहत लागू किया गया है। कोई भी कॉलेज इस पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, जबकि छात्राएं सवाल उठा रही हैं। उन्हें तो सवाल उठाने का अधिकार ही नहीं है। महाधिवक्ता ने बताया कि लड़कियों ने अनुशासन तोड़ा,इसलिए यूनिफॉर्म लागू करना पड़ा। वे प्रिंसिपल के पास जाकर उन्हें चेतावनी देकर आई थीं कि हिजाब पहनकर ही कॉलेज आएंगी। 

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