इसरो चीफ एस सोमनाथ के मुताबिक, जहां तक मिशन की लागत कम करने का सवाल है तो हमने अपने प्रोटोटाइपिंग को मिनिमाइज किया। इसके अलावा ज्यादातर डिजाइन आउटसोर्स नहीं किए बल्कि यहीं पर हमारे लोगों ने ही तैयार किए।
ISRO Chief S Somnath Exclusive Interview: चंद्रमा पर 14 दिनों तक रात रहने के बाद 22 सितंबर को इसके दक्षिण ध्रुव पर एक बार फिर सूर्य की रोशनी पहुंचेगी। ऐसे में ISRO को उम्मीद है कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर एक बार फिर एक्टिव होंगे। चंद्रयान-3 और फ्यूचर मिशन को लेकर Asianet News Network के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन राजेश कालरा ने ISRO चेयरमैन एस सोमनाथ से इसरो सेंटर में विस्तार से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने बताया कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) कैसे लो-कॉस्ट स्पेस प्रोग्राम तैयार कर रहा है, जिसका लोहा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने भी माना है।
जानें कैसे ISRO को लागत कम करने में मिली बड़ी कामयाबी?
इसरो चीफ एस सोमनाथ के मुताबिक, जहां तक लो कॉस्ट की बात है तो सबसे पहले ये जरूरी है कि हमारा एप्रोच कैसा है। इसके बाद हम मॉडल की बात करते हैं। ऐसा नहीं है कि चंद्रयान-3 के लिए हमने कई सारे प्रोटोटाइप तैयार किए, जिनमें काफी खर्च हुआ। हमने प्रोटोटाइपिंग को मिनिमाइज किया। इसके अलावा ज्यादातर डिजाइन आउटसोर्स नहीं किए बल्कि यहीं पर हमारे लोगों ने ही तैयार किए। हमने कोई भी डिजाइन आउटसोर्स नहीं किया है, जिसकी वजह से लागत कम करने में बड़ी सफलता मिली। एस सोमनाथ ने इसरो सेंटर में रखे एक फिक्सचर को दिखाते हुए बताया कि इसे यहीं पर डिजाइन और तैयार किया गया। ये देखने में भले ही बेहद सामान्य है लेकिन इन्हें अगर आउटसोर्स करेंगे तो इनकी कीमत काफी बढ़ जाएगी।
NASA ने भी की ISRO में बने पेलोड की तारीफ
इसरो चीफ एस सोमनाथ ने बताया कि हमने हाल ही में एक ऐसा ही फिक्सचर नासा (Nasa) को भेजा है। हम नासा के साथ मिलकर ज्वाइंट वेंचर चला रहे हैं। जब हमने ये पेलोड नासा को भेजा तो उन्हें बहुत पसंद आया। यह स्टील का स्ट्रक्चर है। नासा के लोग इसकी कम कीमत जानकर हैरान हुए और पसंद भी किया। यह मोटर से चलता है, रोटेट किया जा सकता, अप एंड डाउन कर सकता है। इसका सॉफ्टवेयर सिस्टम हो या ग्राउंड डिजाइन, सब कुछ हमारे लोगों ने तैयार किया है। ऐसी ही तकनीक स्पेस एक्स भी अपनाता है।
क्या है चंद्रयान-3 मिशन?
- 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 मिशन देश के सबसे भारी रॉकेट GSLV लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM-3) से लॉन्च किया गया।
- करीब 42 दिनों की यात्रा के बाद 23 अगस्त को विक्रम लैंडर ने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की। इस दौरान PM मोदी दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से वचुर्अल माध्यम के जरिए ISRO से जुड़े और पूरी प्रॉसेस देखी।
- इसके बाद विक्रम लैंडर के साथ गए प्रज्ञान रोवर ने चांद की सतह पर घूमकर पेलोड्स के जरिए नई जगहों की जांच-पड़ताल की।
- चांद की तस्वीरें भेजने और जांच-पड़ताल के बाद इसरो ने 2 सितंबर को प्रज्ञान रोवर को स्लीप मोड में डाला।
- हालांकि, 22 सितंबर को चांद पर एक बार फिर सूर्य की रोशनी पड़ने के बाद लैंडर और रोवर के दोबारा एक्टिव होने का इंतजार है।
- बता दें कि भारत का चंद्रयान-3 मिशन दुनिया का सबसे सस्ता मून मिशन है। इस पर महज 615 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। WATCH इसरो चीफ एस. सोमनाथ का सुपर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
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