Explainer: बेंगलुरू कैसे पहुंचा ISRO हेडक्वार्टर, इंदिरा गांधी के सामने प्रोफेसर धवन ने कौन सी 2 शर्तें रखी थीं

इसरो के फाउंडर चेयरमैन विक्रम साराभाई के निधन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर सतीश धवन को चेयरमैन पद का आग्रह किया। तब उन्होंने दो बड़ी शर्तें सामने रख दीं।

ISRO Bengaluru Office. चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम का नाम इसरो के संस्थापक चेयरमैन विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। अब आपको बताते हैं कि इसरो का मुख्यालय बेंगलुरू में कैसे स्थापित किया गया। यह उस वक्त की बात है, जब विक्रम साराभाई के निधन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर सतीश धवन से चेयरमैन बनने का आग्रह किया। तब प्रोफेसर धवन ने उनके सामने दो बड़ी शर्तें रख दीं।

1969 में हुई इसरो की शुरूआत

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यह सच है कि विक्रम साराभाई ने 1962 में स्पेस रिसर्च की स्थापना की थी लेकिन वह 1969 का वक्त था जब पहली बार इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानि इसरो का आइडिया सामने आया। लेकिन इसरो के बेंगलुरू पहुंचने की कहना बेंगलुरियन सतीश धवन से जुड़ा है, जिनके नाम पर ही श्री हरिकोटा के स्पेस सेंटर का नाम रखा गया है। धवन का जन्म श्रीनगर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश लाहौर में हुई। वे 1951 में बेंगुलुरू लौटे और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में सीनियर साइंटिस्ट के तौर पर ज्वाइन किया। वे 17 वर्षों तक आईआईएससी के डायरेक्टर रहे।

सतीश धवन ने दो शर्तें इंदिरा गांधी के सामने रखीं

विक्रम साराभाई के निधन के बाद जब तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर धवन से इसरो चेयरमैन बनने का आग्रह किया तो उन्होंने दो शर्तें रखीं। जिसमें पहली शर्त थी कि इसरो का हेडक्वार्टर बेंगलुरू में होगा और दूसरा यह कि उन्हें आईआईएससी के डायरेक्टर पद पर भी रहने दिया जाएगा। दोनों शर्तों को इंदिरा गांधी ने माना और इसरो का हेडक्वार्टर बेंगलुरू में बनाया गया। प्रोफेसर धवन ने इसरो के लिए बेंगलुरू का चयन इसलिए किया क्योंकि वहां पर वह इको सिस्टम मौजूद था, जिसकी जरूरत उन्हें पड़ती। बेंगलुरू में ही हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट जिसे अब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स कहा जाता है और आईआईएससी का एयरोनॉटिक्स डिपार्टमेंट मौजूद था। सतीश धवन 1984 में इसरो से रिटायर हुए और निधन तक वे इंडियन स्पेस कमीशन के चेयरमैन बने रहे।

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