सद्गुरु पर युवतियों को संन्यासी बनाने का आरोप ? 10 Points में समझिए पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच के आदेश दिए गए थे। जानिए क्या है पूरा मामला और क्यों सुप्रीम कोर्ट ने सद्गुरु को दी बड़ी राहत।
Dheerendra Gopal | Published : Oct 3, 2024 12:18 PM IST / Updated: Oct 03 2024, 05:59 PM IST
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु को बड़ी राहत मिली है। मद्रास हाईकोर्ट द्वारा ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच के आदेश पर रोक लगा दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अपने यहां ट्रांसफर करते हुए यह आदेश दिया कि हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस को इस मामले में कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। आईए पूरे मामले को समझते हैं...
दरअसल, रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने यह दावा किया था कि ईशा फाउंडेशन में उनकी बेटियों को जबरिया रखा गया है।
कामराज ने आरोप लगाया कि आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु उनकी दो बेटियों को बहका कर शादी करने से रोक रहे और उन्हें संन्यास का मार्ग चुनने के लिए प्रेरित किया।
प्रो.कामराज ने बताया कि उनकी बेटियों गीता और लता को कोयंबटूर में ईशा योग केंद्र में रहने के लिए ब्रेनवॉश किया गया था। फाउंडेशन ने उन्हें अपने परिवार से संपर्क बनाए रखने की अनुमति नहीं दी।
रिटायर्ड प्रोफेसर ने अपनी बेटियों को ईशा फाउंडेशन में बंधक बनाए जाने का आरोप लगाते हुए मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को कार्रवाई का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद कोयम्बटूर में ईशा फाउंडेशन के कैंपस में सैकड़ों पुलिसवाले एंट्री किए और जांच शुरू कर दी।
हाईकोर्ट के आदेश को ईशा फाउंडेशन की ओर से सद्गुरु ने चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने गुरुवार को सुनवाई की।
ईशा फाउंडेशन ने बताया कि 42 और 39 साल की दो महिलाएं स्वेच्छा से उसके परिसर में रह रही थीं। दोनों महिलाओं को हाई कोर्ट में पेश किया गया जहां उन्होंने इसकी पुष्टि की।
सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि फाउंडेशन के आश्रम में एक डॉक्टर पर हाल ही में सख्त POCSO अधिनियम के तहत बाल शोषण का आरोप लगाया गया था। जांच जारी रहनी चाहिए। ईशा फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि कथित घटनाएं उसके परिसर में नहीं हुईं।
इस दौरान सीजेआई ने फाउंडेशन की ओर से पेश हुए मुकुल रोहतगी से दोनों युवतियों के ऑनलाइन होने के संबंध में पूछा। रोहतगी ने उनके ऑनलाइन होने की पुष्टि की ताकि सीजेआई और उनकी बेंच में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला बात कर सकें।
वर्चुअल पेश हुईं युवतियों ने सीजेआई को बताया कि वे स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। उसने आरोप लगाया कि उनके पिता पिछले आठ सालों से उन्हें परेशान कर रहे थे। सीजेआई ने अपने चैंबर में युवतियों से बातचीत की। मुख्य न्यायाधीश ने बाद में कहा कि दोनों ने बताया कि वे क्रमशः 24 और 27 वर्ष की उम्र में आश्रम में शामिल हुई थीं। अपनी इच्छा से वहां रह रही। दोनों की मां ने आठ साल पहले इसी तरह की याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कोर्ट में पेश होने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कैंपस में पुलिस फोर्स भेजने पर रोक लगाते हुए यह कहा कि हम एक न्यायिक अधिकारी को कैंपस में भेजेंगे। वहां वह दोनों से बात करेंगे।