IIMC का सर्वे: पश्चिमी मीडिया ने किया भारत में कोविड-19 महामारी का 'पक्षपातपूर्ण' कवरेज

सर्वेक्षण के दौरान एक रोचक तथ्य यह भी सामने आया कि लगभग 63 प्रतिशत लोगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने वाली पश्चिमी मीडिया की नकारात्मक खबरों को सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड नहीं किया।

नई दिल्ली.  भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 82 फीसदी भारतीय मीडियाकर्मियों की राय में पश्चिमी मीडिया द्वारा भारत में कोविड-19 महामारी की कवरेज ‘पक्षपातपूर्ण’ रही है। 69% मीडियाकर्मियों का मानना है कि इस कवरेज से विश्व स्तर पर भारत की छवि धूमिल हुई है, जबकि 56% लोगों का कहना है कि इस तरह की कवरेज से विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति नकारात्मक राय बनी है।

आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने बताया कि संस्थान के आउटरीच विभाग द्वारा यह सर्वेक्षण जून 2021 में किया गया। इस सर्वेक्षण में देशभर से कुल 529 पत्रकारों, मीडिया शिक्षकों और मीडिया स्कॉलर्स ने हिस्सा लिया। सर्वेक्षण में शामिल 60% मीडियाकर्मियों का मानना है कि पश्चिमी मीडिया द्वारा की गई कवरेज एक पूर्व निर्धारित एजेंडे के तहत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को खराब करने के लिए की गई। अध्ययन के तहत जब भारत में कोविड महामारी के दौरान पश्चिमी मीडिया की कवरेज पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो 71% लोगों का मानना था कि पश्चिमी मीडिया की कवरेज में संतुलन का अभाव था।
 
प्रो. द्विवेदी के अनुसार सर्वेक्षण में यह भी समझने की कोशिश की गई कि महामारी के दौरान पश्चिमी मीडिया में भारत के विरुद्ध यह नकारात्मक अभियान वास्तव में कब शुरू हुआ। इसके जवाब में 38% लोगों ने कहा कि यह अभियान दूसरी लहर के दौरान उस समय शुरू हुआ, जब भारत महामारी से लड़ने में व्यस्त था। जबकि 25% मीडियाकर्मियों का मानना है कि यह पहली लहर के साथ ही शुरू हो गया था। वहीं 21% लोगों का मानना है कि भारत के खिलाफ नकारात्मक अभियान तब शुरू हुआ, जब भारत ने कोविड-19 रोधी वैक्सीन के परीक्षण की घोषणा की। इस प्रश्न के उत्तर में 17% लोगों ने कहा कि यह नकारात्मकता तब शुरू हुई, जब भारत ने 'वैक्सीन डिप्लोमेसी' शुरू की।

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अध्ययन में पश्चिमी मीडिया द्वारा भारत में महामारी की पक्षपातपूर्ण कवरेज के संभावित कारणों को जानने का भी प्रयास किया गया। 51% लोगों ने इसका कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति को बताया, तो 47% लोगों ने भारत की आंतरिक राजनीति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। 34% लोगों ने फार्मा कंपनियों के निजी स्वार्थ और 21% लोगों ने एशिया की क्षेत्रीय राजनीति को इसका कारण बताया।

सर्वेक्षण में विभिन्न आयु समूहों के पत्रकारों, मीडिया शिक्षकों और मीडिया स्कॉलर्स से प्रतिक्रियाएं मिलीं—18 से 30 वर्ष (46%), 31 से 40 वर्ष (24%), और 41 और उससे अधिक आयु समूह में (30%)। सर्वेक्षण के प्रतिभागियों में 64 प्रतिशत पुरुष और 36 प्रतिशत महिला उत्तरदाता शामिल थीं। पत्रकार उत्तरदाता मुख्य रूप से प्रिंट से 97%, डिजिटल से 49% और ब्रॉडकास्ट मीडिया से 29% थे। इनमें से लगभग 29 प्रतिशत उत्तरदाता एक से अधिक मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़े थे। पत्रकारों में सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं हिंदी मीडिया (149) से जुड़े लोगों की थी। उसके बाद, अंग्रेजी मीडिया (31), द्विभाषी अंग्रेजी-हिंदी मीडिया (17), और भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं के समाचार संगठनों से (11) मीडियाकर्मी जुड़े थे।

कवरेज से आश्वस्त नहीं
सर्वे में शामिल 82% उत्तरदाता पश्चिमी मीडिया द्वारा भारत में कोविड महामारी की कवरेज से आश्वस्त नहीं थे। वहीँ 18% का मानना था कि विदेशी मीडिया की रिपोर्टिंग प्रामाणिक थी (ग्राफ-1)। उत्तरदाताओं से पूछा गया था कि क्या वे पश्चिमी मीडिया द्वारा भारत में कोविड-19 महामारी की कवरेज को प्रामाणिक मानते हैं। इस पर 82% उत्तरदाताओं में से 46% ने इसे केवल 'आंशिक रूप से प्रामाणिक' माना; 15% ने इसे या तो इसे 'पूरी तरह से पक्षपाती' या 'अप्रमाणिक' कहा, जबकि 7% ने इसे 'आंशिक रूप से पक्षपाती' करार दिया। 

देश-विदेश में भारत की छवि धूमिल
अधिकांश उत्तरदाताओं के मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि पश्चिमी मीडिया द्वारा की गयी ‘पक्षपातपूर्ण’ कवरेज ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है। कम से कम 69% उत्तरदाताओं का मानना है कि इस तरह की कवरेज से भारत की छवि धूमिल हुई, जबकि 11% ऐसा नहीं मानते। शेष उत्तरदाताओं ने इस बिन्दु पर कोई राय नहीं दी।

प्रवासी भारतीयों पर विपरीत प्रभाव 
पश्चिमी मीडिया में भारत के बारे में छपी कोई भी खबर विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों के मानसपटल को प्रभावित करने की संभावना रखती है। यदि विदेशी मीडिया अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से एक अच्छी तस्वीर पेश करते हैं, तो प्रवासी भारतीय अपने देश के बारे में खुश होंगे। लेकिन यदि भारत के विरुद्ध लगातार, ‘एजेंडा-संचालित रिपोर्टिंग’ होती है तो वह विदेशों में बसे भारतीय-मूल के नागरिकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। जैसाकि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुआ। स्वाभाविक है कि पश्चिमी मीडिया की नकारात्मक कवरेज ने प्रवासी भारतीयों को अपनी मातृभूमि में रहने वाले अपने प्रियजनों को लेकर चिंतित किया होगा। सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं से जब यह पूछा गया कि क्या पश्चिमी मीडिया द्वारा की गयी नकारात्मक कवरेज विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों की राय को प्रभावित कर सकती है, तो आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने 'हाँ' में जवाब दिया। लगभग 56% उत्तरदाताओं ने कहा कि इस तरह की नकारात्मक कवरेज से विदेशों में बसे भारतीयों की राय प्रभावित हो सकती है, जबकि लगभग 12% उत्तरदाताओं  ने कहा कि ऐसा नहीं है। लगभग 32 प्रतिशत ने अपनी राय व्यक्त नहीं की। 

कवरेज के पीछे का मकसद
अध्ययन में पश्चिमी मीडिया द्वारा भारत में महामारी की पक्षपातपूर्ण कवरेज के संभावित कारणों को जानने का भी प्रयास किया गया। उत्तरदाताओं द्वारा इसके कई कारण बताए गए। उनमें कुछ मुख्य कारण है अंतर्राष्ट्रीय राजनीति (51%), भारत की आंतरिक राजनीति (47%), फार्मा कंपनियों के निजी स्वार्थ (34%), और एशिया की क्षेत्रीय राजनीति (21%)।

सोशल पर वोकल नहीं
सर्वेक्षण में एक रोचक बात यह भी सामने आई कि अधिकांश उत्तरदाताओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने वाली पश्चिमी मीडिया की नकारात्मक ख़बरों को सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड या साझा नहीं किया। लगभग 63 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने ऐसे समाचार किसी भी सोशल मीडिया या मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर साझा नहीं किये। हालाँकि, 37 प्रतिशत ने माना कि उन्होंने पिछले एक साल में ऐसी खबरों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किया। जिन लोगों ने ऐसी खबरों को साझा किया उन्होंने व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम अथवा अपने निजी ब्लॉग के माध्यम से साझा किया।

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