कश्मीर के रहने वाले दृष्टिबाधिता डॉ. इशाक अहमद मागरी ने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री कंप्लीट की है। डॉ. मागरी का कहना है कि एक-दूसरे के प्रति सहयोग और समावेशी नजरिया ही हमें महाशक्ति बनाती है।
Who Is Dr. Ishaq Ahmad Magri. कश्मीर के रहने वाले दृष्टिबाधिता डॉ. इशाक अहमद मागरी ने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री कंप्लीट की है। डॉ. मागरी का कहना है कि एक-दूसरे के प्रति सहयोग और समावेशी नजरिया ही हमें महाशक्ति बनाती है। डॉ. मागरी ने देश के मुस्लियम युवाओं को भी संदेश दिया है कि सरकार की पहल का इंतजार किए बिना प्रत्येक मुस्लिम को उपलब्ध अवसरों का फायदा उठाना चाहिए। साथ ही उन नैरेटिव से दूरी बनानी चाहिए जिसमें कहा जाता है कि मुसलमानों को आगे बढ़ने के अवसर नहीं मिलते हैं।
अपने सपनों को पूरा करना चाहिए
मुस्लिम समुदाय के स्कॉलर डॉ. मागरी ने अपने समुदाय के युवाओं को सलाह दी है कि उन्हें अपने सपने पूरे करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। भारत विभिन्न धर्मों और विविधताओं वाला देश है। युवाओं को किसी भी तरह की नकारात्मकता को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। जो भी अवसर मौजूद हैं, जो मौके सामने हैं, उनकी तलाश करें और अपने सपने पूरे करें।
प्रेरणा हैं डॉ. मागरी की उपलब्धियां
कश्मीर के दृष्टिबाधित स्कॉलर डॉ.मागरी की उपलब्धियां युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके सोचने का तरीका और दृष्टिकोण समावेशी भारत का प्रतीक है। हमारे देश में कई धर्मों और समुदाय के लोग एक साथ मिल जुलकर साथ रहते हैं। एक-दूसरे की मदद से सफलताएं भी हासिल करते हैं। कश्मीर के दृष्टिबाधित स्कॉलर ने कहा कि पूरी दुनिया में भारत की यही पहचान है और इसी की देन है कि उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिली है। डॉ. मागरी की छवि ऐसे व्यक्ति की है जो किसी भी कीमत पर धैर्य, दृढ़ संकल्प के साथ अपने सपने पूरे करते हैं। जम्मू कश्मीर के हिंदवाड़ा से निकलकर दृष्टिबाधित होते हुए भी नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरी की।
क्या कहते हैं डॉ मागरी
डॉ मागरी समावेशी भारत के उदाहरण हैं क्योंकि एक दृष्टिबाधित मुस्लिम लड़का कश्मीर से निकलता है और तमाम दूसरे धर्मों और पृष्ठभूमि के लोगों के साथ आगे बढ़ते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ता है। डॉ. मागरी कहते हैं कि यह समावेश ही हमें महाशक्ति बनाएगा। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ विजुअली हैंडीकैप्ड के छात्र मागरी 2005 में इतिहास में ग्रेजेएशन करने दिल्ली पहुंचे और हिंदू कॉलेज से स्नातक पूरा किया। फिर जेएनयू में दाखिला लिया और प्रोफेसर हीरामन तिवारी के अंडर में पीएचडी पूरी की। डॉ मैगरी की सफलता की कहानी उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो सोचते हैं कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। वे कहते हैं कि भारत में मुसलमानों को हाशिए पर रखने की धारणा पूरी तरह से गलत है। मैं इस बात का जीता-जागता उदाहरण हूं कि इस देश में मुसलमानों को अवसरों से वंचित नहीं किया जाता है।
दिल्ली में लोगों ने की मदद
दिल्ली में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए डॉ. मैगरी कहते हैं कि वह हमेशा उन लोगों के आभारी हैं जिन्होंने उनकी मदद की। उन्हें इस अनजान शहर में सहज महसूस कराया। किसी ने भी मेरे धर्म या इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि मैं दृष्टिबाधित हूं या मुसलमान हूं। मुझे दिशा दिखाने के लिए हर कोई आगे आया।
साभार- आवाज द वॉयस
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