भारतीय कार्टून आर्ट के पितामह माने जाते थे के शंकर पिल्लई, बच्चों से था खास लगाव

आजादी के बाद 1948 में के शंकर पिल्लई ने खुद की वीकली मैगजीन शुरू की। जिसका नाम था 'शंकर्ज वीकली'। इसी पत्रिका ने अबू अब्राहम, रंगा और कुट्टी जैसे कार्टूनिस्टों को पहचान दी।  लेकिन 25 जून, 1975 को जब देश में आपातकाल लगाया गया, तब उन्होंने इस पत्रिका को बंद कर दिया।

Asianet News Hindi | Published : Aug 8, 2022 7:16 AM IST

Best of Bharat : देश में आजादी के 75 साल होने के अवसर पर अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) का सेलीब्रेशन चल रहा है। इसकी शुरुआज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 75 हफ्ते पहले मार्च 2021 में की थी। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं देश के उन मशहूर कार्टूनिस्ट के बारें में, जिनकी कागजों पर खींची लकीरों ने एक बदलाव की नींव रखी। उनके बनाए कार्टून आज भी जीवंत हैं। 'Best of Bharat'सीरीज में बात भारतीय कार्टून आर्ट के पितामह के शंकर पिल्लई (K Shankar Pillai) की...

सोते हुए अध्यापक का पहला कार्टून बनाया
भारतीय कार्टून आर्ट के पितामह माने जाने वाले कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई  का जन्म 31 जुलाई, 1902 को केरल (Kerala) के कायमकुलम में हुआ था। यहीं से उनकी स्कूलिंग भी हुई। उनका पूरा नाम केशवा शंकर पिल्लई था। अपनी लाइफ का पहला कार्टून उन्होंने स्कूल में ही बनाया था। तब सोते हुए अध्यापक का उन्होंने ऐसा कार्टून बनाया था। जिसे देख उनके चाचा ने उन्हें कार्टून बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने मावेलिकारा में रवि वर्मा स्कूल ऑफ पेंटिंग में पेंटिंग का स्टडी की। नाटक, स्काउटिंग, साहित्यिक गतिविधियों में उनका गजब का इंट्रेस्ट था। 26 दिसंबर 1989 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

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गरीबी पर कार्टून बना आवाज बने
पढ़ाई करने के दौरान ही उनके कार्टून अखबारों में आवाज बनने लगे थे। एक न्यूज पेपर के एडिटर पोथन जोसेफ ने 1932 में शंकर को स्टाफ कार्टूनिस्ट के तौर पर दिल्ली लेकर आए, जहां वे 1946 तक रहे लेकिन बाद में यहीं बस गए। शंकर के कटाक्ष करते कार्टून अंग्रेज वायसराय को भी खूब भाते थे। वे हमेशा ही गरीबों की आवाज बने रहे। गरीबी और गरीबों की समस्याओं पर उन्होंने कई ऐसे कार्टून बनाए जो चर्चा का विषय बने रहे। उन्हें भारत में राजनीतिक कार्टूनिंग का जनक भी माना जाता है। 

बच्चों से खास लगाव
के शंकर पिल्लई को बच्चों से खास लगाा था। उन्होंने बच्चों के लिए कई ऐसे काम किए, जिससे पता चलता है कि उन्हें बच्चे कितने प्यारे थे। 1957 में उन्होंने नई दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर नेहरू हाउस में चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट की स्थापना की। इसके बाद 1965 में इंटरनेशन डॉल म्यूजियम (International Doll Museum) की स्थापना की। यहां बच्चों के लिए लाइब्रेरी भी है। इसे डॉ. बीसी राय मेमोरियल चिल्ड्रन लाइब्रेरी और रीडिंग रूम के नाम से भी जाना जाता है।साल 1978 में केशवा पिल्लई ने बच्चों के लेखकों के लिए एक सालाना प्रतियोगिता की शुरुआत की। पहले यह प्रतियोगिता सिर्फ इंग्लिश में होती थी लेकिन अब हिंदी में भी इसका आयोजन होता है। 

के शंकर पिल्लई का 'सम्मान' 
अपने कार्टून के दुनियाभर में पहचान बनाने वाले के शंकर पिल्लई को 1956 में पद्म श्री से नावाजा गया। 1966 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। 1976 में पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया। इसके एक साल बाद 1977 में 'ऑर्डर ऑफ द स्माइल' सम्मान और दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. (मानद) की उपाधि दी। उनके निधन के बाद साल 1991 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में दो डाक टिकट जारी किए। इन टिकटों में उनके कार्टून को दिखाया गया  है। साल 2002 में उनकी जन्म शताब्दी के मौके पर दिल्ली में 'अ सिंफनी ऑफ ड्रीम्स' के नाम से एग्जीबिशन लगाया गया। केरल सरकार की तरफ से उनके गृहनगर कायमकुलम के कृष्णापुरम में पहला नेशनल कार्टून म्यूजियम और एक आर्ट गैलरी की स्थापना करवाया।

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