पीएम मोदी बोले- सेकुलर सिविल कोड समय की मांग, धर्म के आधार पर भेदभाव की जगह नहीं

लाल किला से अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने कहा कि सेकुलर सिविल कोड समय की मांग है। धर्म के आधार पर भेदभाव की जगह नहीं होनी चाहिए। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा होनी चाहिए।

Vivek Kumar | Published : Aug 15, 2024 6:09 AM IST / Updated: Aug 15 2024, 11:49 AM IST

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को 78वें स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2024) के अवसर पर लाल किला से देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने सेकुलर सिविल कोड (Secular Civil Code) को समय की मांग बताया और कहा कि धर्म के आधार पर भेदभाव की जगह नहीं हो सकती।

नरेंद्र मोदी ने कहा, "हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर चर्चा की है। अनेक बार आदेश दिए हैं। देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है और उसमें सच्चाई भी है कि जिस सिविल कोड को लेकर हम जी रहे हैं। वो एक प्रकार का कम्युनल सिविल कोड है। भेदभाव करने वाला सिविल कोड है। संविधान निर्माताओं का सपना पूरा करना हम सबका दायित्व है।"

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धर्म के आधार पर बांटने वाले कानून की जगह नहीं

पीएम ने कहा, "मैं मानता हूं कि इस गंभीर विषय पर देश में चर्चा हो। व्यापक चर्चा हो। हर कोई अपने विचार लेकर आए। जो कानून धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं, जो ऊंच नीच का कारण बन जाते हैं, ऐसे कानूनों का आधुनिक भारत में कोई स्थान नहीं हो सकता। इसलिए मैं तो कहूंगा कि अब समय की मांग है कि देश में एक सेकुलर सिविल कोड हो। हमने कम्युनल सिविल कोड में 75 साल बिताए हैं। अब हमें सेकुलर सिविल कोड की ओर जाना होगा। तब जाकर देश में धर्म के आधार पर जो भेदभाव हो रहे हैं, सामान्य नागरिक को जो दूरी महसूस हो रही है उससे हमें मुक्ति मिलेगी।"

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) प्रस्तावित कानूनी है। इससे भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक कानून होगा, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। वर्तमान में भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं। जैसे-हिंदू कानून, मुस्लिम कानून, ईसाई कानून और पारसी कानून। UCC लागू होने से ये सभी खत्म हो जाएंगे।

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व्यक्तिगत कानून विवाह, तलाक, संपत्ति अधिकारों, उत्तराधिकार और अन्य व्यक्तिगत मामलों से संबंधित हैं। ये अक्सर धार्मिक प्रथाओं और परंपराओं पर आधारित होते हैं। धार्मिक आधार पर बने व्यक्तिगत कानूनों से अक्सर महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों के साथ भेदभाव होता है।

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