106 साल पुराना है भारत चीन विवाद; जानिए क्या है मैकमोहन रेखा; जिसे चीन ने मानने से इनकार कर दिया

पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से भारत और चीन विवाद अपने चरम पर है। भारत और चीन के बीच सीमा का यह विवाद ताजा नहीं है। विवाद के इस मोड़ तक पहुंचने में दशकों लगे हैं। भारत और चीन की सीमा का विवाद 106 साल पुराना है।

Asianet News Hindi | Published : Jun 18, 2020 11:48 AM IST

नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से भारत और चीन विवाद अपने चरम पर है। भारत और चीन के बीच सीमा का यह विवाद ताजा नहीं है। विवाद के इस मोड़ तक पहुंचने में दशकों लगे हैं। भारत और चीन की सीमा का विवाद 106 साल पुराना है। सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच कई बार झड़पें हुई हैं तो कई बार युद्ध जैसी स्थिति भी बनी है। आईए जानते हैं कि दोनों देशों के बीच क्या विवाद है?

1- भारत चीन विवाद क्या है?
भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद दशकों पुराना है। 1914 में शिमला में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। यहां तिब्बत को दर्जा देने और ब्रिटिश इंडिया-चीन की सीमा को लेकर संधि होनी थी। चीन ने तिब्बत को स्वायत्ता देने से इनकार कर दिया। लेकिन चीन ने मैकमोहन रेखा पर जरूर समझौता किया। यह लाइन भारत और चीन की आधिकारिक सीमा है। हालांकि, चीन ने बाद में इसे मानने से इनकार कर दिया। भारत इसे ही सीमा मानता रहा। यही दोनों के बीच विवाद का कारण बनता रहा।
 


  फोटो- 1967 की है। नाथूला पास पर निगरानी करता चीनी सैनिक

चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। दरअसल, तिब्बत पर चीन का कब्जा है, इसलिए वह अरुणाचल पर भी अपना दावा करता है। अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को चीन ने यह कहकर मानने से इनकार कर दिया था कि शिमला समझौते के वक्त चीन का कोई प्रतिनिधि वहां नहीं था। वहीं, भारत ब्रिटिश समय में बनाई गई सीमा पर अपना हक बताता है। 

2- क्या है मैकमोहन रेखा?
1914 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच मैकमोहन लाइन तय हुई थी। तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खीची थी। मैकमोहन रेखा में अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा बताया गया था। चीनी राष्ट्रपति झोऊ इन लाई ने 1959 में जवाहर लाल नेहरू को लिखे पत्र में कहा कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता।

3- क्या है वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) ?
एलएसी भारत और चीन के नियंत्रित क्षेत्र को अलग अलग करती है। भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। ये तीन सेक्टरों में बंटी हुई है। पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। भारत इस पूरे क्षेत्र को मानता है लेकिन चीन इनमें से सिर्फ 2000 किमी क्षेत्र को मानता है। हालांकि, इसका कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं है। इसलिए विवाद होता है। 


1967 में दोनों देशों के बीच गोलीबारी हई थी। इसमें भारत के 80 जबकि चीन के करीब 400 सैनिक मारे गए थे।


4- भारत ने कब मानी एलएसी?

1991 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली ​पेंग भारत भारत आए थे। इस दौरान भारत के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के बीच एलएसी को लेकर बात हुई थी। इसके बाद जब 1993 में जब राव चीन यात्रा पर गए तो उन्होंने सीमा पर शांति बनाने के लिए औपचारिक तौर पर एलएसी की अवधारणा को मंजूरी दी। लेकिन भारत ने यह कभी नहीं कहा कि एलएसी भारत की सीमा की रेखा है। भारत के नक्शे में चीन को जो सीमा दिखती है, उसमें 1962 में चीन द्वारा कब्जे में लिया गया अक्साई चीन और गिलगिट बा​ल्टिस्तान का क्षेत्र शामिल है।

5-  लद्दाख में क्या विवाद है?
मैकमोहन रेखा में अक्साई चीन को लद्दाख का हिस्सा बताया गया था। यह हिस्सा जम्मू कश्मीर की राजशाही की सीमा में रहा है। हालांकि, 1914 में भी सीमा समझौते पूर्वी लद्दाख का तो सही तरह से सीमांकन हो गया, लेकिन लद्दाख वाला पश्चिमी हिस्सा नहीं हुआ। यही विवाद की वजह है। भारत चीन के कब्जाए हिस्से अक्साई चीन पर अपना दावा बताता है और चीन इस हिस्से को कब्जाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता।




6- दोनों देशों के नक्शे में सीमाएं कैसे तय हुईं?
बताया जाता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1948 और 1950 में दो श्वेत पत्र जारी किए थे। इनमें विवादित क्षेत्र को 'सीमा अपरिभाषित' करार दिया। लेकिन 1954 में नेहरू ने आदेश जारी किया कि सीमाओं को नक्शे में बिना किसी टिप्पणी के प्रकाशित करने के लिए कहा। 

वहीं, 1954 में चीन की एक किताब अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना में छपे नक्शे में लद्दाख को अपना हिस्सा बताया गया। इसके बाद 1958 में चीन से निकलने वाली दो मैगजीन चाइना पिक्टोरियल' और 'सोवियत वीकली' में भी भारत के कुछ हिस्सों को चीन के नक्शे में दिखाया गया। जब भारत ने इसका विरोध किया तो चीन ने कहा, ये नक्शे पुराने हैं। अभी सरकार के पास इन्हें ठीक कराने का वक्त नहीं है। 

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