4 अरब डॉलर में भारत रूस से खरीद रहा वोरोनिश रडार, जानें क्यों है यह खास

Published : Dec 09, 2024, 07:26 AM ISTUpdated : Dec 09, 2024, 07:27 AM IST
Voronezh radar

सार

भारत और रूस के बीच 4 अरब डॉलर के रक्षा समझौते के तहत भारत को अत्याधुनिक वोरोनिश रडार सिस्टम मिलेगा। यह रडार 8 हजार किमी तक के खतरों का पता लगा सकता है, जिससे भारत की मिसाइल पहचान और एयर डिफेंस क्षमता में जबरदस्त इजाफा होगा।

नई दिल्ली। भारत रूस के साथ 4 अरब डॉलर (33873 करोड़ रुपए) के ऐतिहासिक रक्षा समझौते को अंतिम रूप जा रहा है। इस डील के तहत रूस भारत को एडवांस रडार सिस्टम देगा। इससे भारती की मिसाइल पहचान और एयर डिफेंस क्षमता बढ़ेगी।

भारत रूस से वोरोनिश सीरीज का रडार खरीदने जा रहा है। यह 8 हजार किलोमीटर तक की दूरी पर बैलिस्टिक मिसाइलों और विमानों सहित कई खतरों की पहचान कर सकता है। इस तरह के कवरेज की क्षमता सिर्फ कुछ वैश्विक महाशक्तियों के पास ही है।

भारत के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियां बढ़ रहीं हैं। इसे देखते हुए एयर डिफेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाया जा रहा है। इसी क्रम में रूस से वोरोनिश रडार खरीदने जा रहा है। बहुत अधिक दूरी तक खतरों की पहचान करने की क्षमता के चलते यह समय रहते वायु सेना को हमले के बारे में सचेत कर देगा। इससे भारत की निगरानी क्षमता भी बढ़ेगी।

कर्नाटक के चित्रदुर्ग में लगाया जाएगा रडार

भारतीय रक्षा अधिकारियों और रडार सिस्टम के निर्माता अल्माज-एंटे के नेतृत्व में रूसी प्रतिनिधिमंडल के बीच चर्चा तेजी से आगे बढ़ी है। उम्मीद है कि भारत को मिलने वाले रडार में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा भारत में बना होगा। इस रडार सिस्टम को कर्नाटक के चित्रदुर्ग में स्थापित किए जाने की संभावना है। यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पहले से ही एडवांस डिफेंस और एयरोस्पेस सुविधाएं मौजूद हैं।

क्यों खास है वोरोनिश रडार सिस्टम?

वोरोनिश रडार सिस्टम का मुख्य काम बैलिस्टिक मिसाइलों का पता लगाना है। बैलिस्टिक मिसाइल की रफ्तार बहुत अधिक होती है इसके चलते जल्द से जल्द इसका पता लगाना जरूरी होता है ताकि बचाव के इंतजाम किए जा सकें। इससे स्पेस के करीब उड़ने वाली इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों का पता लगाया जा सकता है। इसके साथ ही यह रडार क्रूज मिसाइल और लड़ाकू विमान समेत दूसरे हवाई खतरे के बारे में भी जानकारी देता है। वोरोनिश रडार सिस्टम का एक स्टेशन 6 हजार किलोमीटर दूरी और 7 हजार किलोमीटर ऊंचाई तक मौजूद खतरे के बारे में बताता है। यह एक बार में 500 टारगेट को ट्रैक कर सकता है।

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