Indian Air Force के चार Ad-hoc स्क्वाड्रन्स के गौरवशाली इतिहास की कहानी...

भारतीय वायुसेना के इतिहासकार अंचित गुप्ता 120,121,122 और 123 स्क्वाड्रन के इतिहास को विस्तार से बता रहे जो प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों के विमानों और प्रशिक्षकों द्वारा संचालित किए गए थे।

Dheerendra Gopal | Published : Sep 18, 2023 7:30 PM IST

From the IAF Vault: सोलह वीर चक्र, तीन वायु सेना पदक, एक विशिष्ट सेवा पदक और पांच मेंशन-इन-डिस्पैच - ये चार Ad-hoc IAF लड़ाकू स्क्वाड्रन की कमाई हैं। भारतीय वायुसेना के इतिहासकार अंचित गुप्ता 120,121,122 और 123 स्क्वाड्रन के इतिहास को विस्तार से बता रहे जो प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों के विमानों और प्रशिक्षकों द्वारा संचालित किए गए थे।

120 स्क्वाड्रन का गौरवशाली इतिहास

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120 स्क्वाड्रन को 1965 में कंट्रोल एंड रिपोर्टिंग फ्लाइट स्कूल के वैम्पायर विमान का उपयोग करके जोधपुर में सक्रिय किया गया था। स्क्वाड्रन को वीर चक्र, वायु सेना पदक और विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया। 1971 के युद्ध में इसे टारगेट टो फ़्लाइट (टीटीएफ) के मिस्टेर विमान और टीटीएफ, 3 और 31 स्क्वाड्रन के पायलटों के साथ सक्रिय किया गया था। यह बीकानेर वायु सेना स्टेशन से संचालित होकर चार वीर चक्र और विशिष्ट सेवा पदक अर्जित कर रहे थे।

1965 में उन्हें दुश्मन के इलाके में आपूर्ति बाधित करने वाले लो-लेवल टैक्टिकल मिशन्स में नियोजित किया गया था। उन्होंने रात के समय सहित लड़ाकू हवाई गश्त भी उड़ाई और दुश्मन के हमलावरों को रोका, तब स्क्वाड्रन लीडर इंदर जीत सिंह परमार को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्होंने चार लड़ाकू उड़ानें भरीं और दुश्मन हमलावरों को खदेड़ दिया।

1971 में टारगेट टोइंग फ़्लाइट जामनगर के कमांडिंग ऑफिसर वीएन जौहरी और 6 पायलटों ने मिस्टेर एयरक्राफ्ट्स का संचालन किया। यह टैक्टिकल टोही का काम करने के साथ दुश्मन के इलाके में सप्लाई को बाधित करते हुए रेलयार्ड, ऑयल डंप और युद्ध सामग्री को नष्ट कर रहा था। इस साहसिक भूमिका के लिए उन्हें 4 वीर चक्र मिले।

5 दिसंबर 1971 को एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया (तत्कालीन फ्लाइट लेफ्टिनेंट) ने भावल नगर की ओर लगभग 15 टैंक ले जा रही एक ट्रेन देखी। दुश्मन की जमीनी गोलीबारी के बावजूद, उन्होंने दो हमले किए और दो ट्रेनों को नष्ट कर दिया। हालांकि, उनका विमान ज़मीनी आग की चपेट में आ गया और उन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया।

1971 के युद्ध में सक्रिय किया गया 121 स्क्वाड्रन

121 स्क्वाड्रन को 1971 के युद्ध में सक्रिय किया गया था। इसमें सी एंड आर स्कूल (जिसे बाद में एयर डिफेंस कॉलेज का नाम दिया गया), एयरक्रू ट्रेनिंग एंड टेस्टिंग टीम, आर्मामेंट ट्रेनिंग विंग और फाइटर ट्रेनिंग विंग के 15 वैम्पायर विमान शामिल थे। इनमें से नौ श्रीनगर से और अन्य छह हलवारा से संचालित होते थे। स्क्वाड्रन ने तीन वीर चक्र पदक, दो वायु सेना पदक और एक मेंशन-इन-डिस्पैच अर्जित किया।

सात पायलटों, आठ विमानों और 29 वायुसैनिकों के साथ श्रीनगर टुकड़ी की कमान एमएस सेखों ने संभाली थी। उन्होंने पुंछ, उरी, तिथवाल और कारगिल सेक्टरों में मिशन उड़ाए और दुश्मन के कई बंकरों, वाहनों, मोर्टार पोजिशन्स, पेट्रोल, तेल, लुब्रिकेंट्स और गोला-बारूद के भंडार को तबाह कर दिया। कारगिल युद्ध ने उस तबाही को एक बार फिर याद दिलाया था।

विंग कमांडर वाल्टर मार्शल के नेतृत्व में हलवारा टुकड़ी को एक दिलचस्प पेंट जॉब के लिए 'ग्रीन बेरेट' फ्लाइट कहा जाता था। विमान को नीले-काले और भूरे रंग के मिक्चर से रंगा गया था। जबड़े सफेद रंग के थे और दांत लाल रंग के थे, जो पेंटिंग को 'भयानक रूप' दे रहे थे। उन्होंने रात में ब्लैक-आउट परिस्थितियों में उड़ान भरी और दुश्मन के इलाके के अंदर रेलीयार्ड, पेट्रोल, तेल, लुब्रिकेंट्स, और गोला-बारूद के भंडार पर हमला किया।

इतिहास की सबसे बड़ी टैक तबाही को 122 स्क्वाड्रन ने दिया अंजाम

1971 में 122 स्क्वाड्रन में जामनगर स्थित हंटर (ऑपरेशनल ट्रेनिंग यूनिट) से पायलट और विमान जैसलमेर भेजे गए थे। उनके पास छह विमान थे। यूनिट ने लोंगेवाला की लड़ाई में असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया। सात वीर चक्र और तीन मेंशन-इन-डिस्पैच अर्जित किए। एमएस 'मिन्ही' बावा, सीआई जामनगर, जैसलमेर कमांडिंग ऑफिसर के रूप में अति विशिष्ट सेवा पदक अर्जित किया।

लोंगेवाला इतिहास में सबसे बड़ी टैंक हानियों में से एक साबित हुई। गोला-बारूद, वाहन, कारखाने और डंप के अलावा लगभग 80 टैक्स नष्ट या क्षतिग्रस्त हो गए। फिल्म 'बॉर्डर' में इस लड़ाई के नाटकीय चित्रण ने भारतीय वायुसेना की भूमिका को काफी कम कर दिया।

लेकिन इतना ही नहीं, ऑपरेशनल ट्रेनिंग यूनिट के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर डोनाल्ड मेल्विन कॉन्क्वेस्ट ने एक ऐसी टीम का नेतृत्व किया जिसने कराची बंदरगाह के थोक तेल प्रतिष्ठान पर हमला किया और उसमें आग लगा दी। अगले दिन उन्होंने मौरीपुर हवाई क्षेत्र पर एक साहसी हमला किया और वीर चक्र अर्जित करते हुए जमीन पर दुश्मन के कम से कम छह विमानों को नष्ट कर दिया।

नागालैंड ऑपरेशन में 123 स्क्वाड्रन सक्रिय

123 स्क्वाड्रन को पहली बार 1962 में तेजपुर में निगरानी के लिए मशीन गन और एक F24 हवाई कैमरे से लैस हार्वर्ड के साथ नागालैंड में ऑपरेशन के लिए सक्रिय किया गया था। स्क्वाड्रन को 1971 के युद्ध के दौरान पांच टी -6 जी / हार्वर्ड विमानों के साथ वायु सेना अकादमी और फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर स्कूल से फिर से सक्रिय किया गया था।। यह 6 दिसंबर 1971 तक सिरसा से और उसके बाद राजौरी एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड में संचालित हुआ। विमान को सतह पर गहरा हरा और नीचे काला रंग दिया गया था। उनमें हंटर इलेक्ट्रिक बक्से लगाए गए। इसने छह टी-10 रॉकेट कैरी किया और युद्ध के दौरान 13 ऑपरेशनल उड़ानें भरीं। स्क्वाड्रन ने एक वीर चक्र अर्जित किया।

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