Republic Day परेड में कर्तव्यपथ पर विंटेज डकोटा ने भरी उड़ान, भारत-पाकिस्तान युद्ध में बेहद महत्वपूर्ण रोल निभाया

विंटेज डकोटा DC3 VP905 ने भारत के लिए कई बड़े युद्ध जीते। बड़े-बड़े तूफानों का सामना करते हुए देश की रक्षा में सहायता की है।

Dheerendra Gopal | Published : Jan 28, 2024 5:08 PM IST

Republic Day 2024: विंटेज डकोटा विमान इस बार गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ पर आकर्षण का केंद्र था। इंडियन एयरफोर्स का डकोटा, कर्तव्यपथ के ऊपर से उड़ान भरा तो सबकी निगाहें उस पर टिक गई। विंटेज विमान डकोटा के शौर्य का प्रदर्शन लोगों ने देखा। विंटेज डकोटा DC3 VP905 ने भारत के लिए कई बड़े युद्ध जीते। बड़े-बड़े तूफानों का सामना करते हुए देश की रक्षा में सहायता की है।

अपने पिता की ओर से केंद्रीय मंत्री ने वायुसेना को दिया गिफ्ट

डकोटा बेड़े के प्रसिद्ध दिग्गज सेवानिवृत्त एयर कोमोडोर एमके चंद्रशेखर की ओर से उनके बेटे देश के इलेक्ट्रॉनिक एवं आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मई 2018 में बतौर गिफ्ट भारतीय वायुसेना को दिया था। DC3 ने दशकों तक भारतीय गौरव के साथ आकाश को छुआ। राष्ट्र के लिए किए गए उत्कृष्ट योगदान की स्मृति में डकोटा को 2011 में स्क्रैप से प्राप्त किया गया था। फिर इसे यूनाइटेड किंगडम में रिफर्निश किया गया था। फिर इसका नाम पौराणिक योद्धा ऋषि 'परशुराम' कर दिया गया था। यह परियोजना चंद्रशेखर की भारतीय वायु सेना और उनके पिता, सेवानिवृत्त एयर कमोडोर एमके चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि थी।

पहला परिवहन विमान रहा है डकोटा

डकोटा, इंडियन एयरफोर्स में शामिल होने वाला पहला प्रमुख ट्रांसपोर्ट विमान था। भारत को स्वतंत्रता मिलने के ठीक बाद 1947-48 के भारत-पाक संघर्ष में डकोटा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब कश्मीर के महाराजा ने 26 अक्टूबर, 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, तो शहर और हवाई अड्डे को पाकिस्तान समर्थित कबायली उग्रवादियों के कब्जे से बचाने के लिए श्रीनगर में सशस्त्र बलों को शामिल करने की तत्काल आवश्यकता पैदा हुई। 27 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर में तीन डकोटा विमानों से पहली सिख रेजीमेंट के सैनिक पहुंचे थे। इसके बाद एक पूरी पैदल सेना ब्रिगेड को श्रीनगर ले जाया गया। डकोटा ने 1971 के भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश वायु सेना के गठन के दौरान बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन विमानों को युद्ध के दौरान बांग्लादेश के तंगेल में सैनिकों को एयरड्रॉप करने के लिए ट्रांसपोर्टर के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

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