गलवान की घटना के बाद LAC पर बदले हालात, प्रमुख पहाड़ी दर्रों तक चीनी सैनिकों से पहले पहुंच सकते हैं हमारे जवान

गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद भारत की ओर से एलएसी (Line of Actual Control) के मध्य क्षेत्र में भी आधारभूत संरचनाओं को विकसित किया जा रहा है। यहां के कई प्रमुख पहाड़ी दर्रों तक चीनी सैनिकों से पहले इंडियन आर्मी के जवान पहुंच सकते हैं। 
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 3, 2022 6:34 AM IST

नई दिल्ली। एलएसी (Line of Actual Control) पर चीन और भारत के सैनिक आमने-सामने हैं। दो साल पहले गलवान घाटी में हुए संघर्ष ( Galwan Valley face off) के बाद तनाव चरम पर पहुंच गया था। सेना के स्तर पर कई दौर की बातचीत के बाद कम हुआ है और कई क्षेत्रों में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटे हैं। 

चीन की ओर से एलएसी पर शेल्टर बनाए गए हैं ताकि ठंड के मौसम में भी सैनिकों को तैनात रखा जा सके। दूसरी ओर भारत की ओर से एलएसी के करीब आधारभूत संरचनाओं को विकसित किया जा रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर सैनिकों को तेजी से मोर्चे तक पहुंचाया जा सके। 

बदल गई है LAC पर स्थिति
गलवान की घटना के बाद एलएसी पर स्थिति काफी बदल गई है। कई प्रमुख पहाड़ी दर्रों तक चीनी सैनिकों से पहले भारतीय सेना के जवान पहुंच सकते हैं। एलएसी के मध्य क्षेत्र में सड़कों और पुलों के निर्माण सहित कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम हो रहा है। इससे भारतीय जवानों को पेट्रोलिंग करने में भी काफी मदद मिल रही है।

चीन ने हाल के वर्षों में उत्तरी क्षेत्र से लेकर पूर्वी क्षेत्र तक एलएसी पर आक्रामक रुख अपनाया है। चीन की ओर से कई बार सीमा का उल्लंघन किया गया। चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है। इसके साथ ही चीन एलएसी के अपने हिस्से में बड़ी तेजी से सड़क, पुल और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। इसे देखते हुए भारत भी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अपनी सैन्य तैयारियों और बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है। 

सीमावर्ती क्षेत्रों में मजबूत है भारत की स्थिति
चीन ने उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र में कई बार सीमा का उल्लंघन किया है। इसके अलावा पिछले कुछ समय में मध्य क्षेत्र में चीन की ओर से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश नहीं हुई है। रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा है कि गलवान घाटी में आमना-सामना होने के बाद जमीन पर सब कुछ बदल गया है। चीन के साथ सीमाओं पर संवेदनशीलता बहुत अधिक है। भारत ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।

एलएसी के मध्य क्षेत्र को हमेशा से तयशुदा सीमा माना जाता रहा है। मई 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में हुई घटना के बाद चीजें बदल गईं हैं। अग्रिम मोर्चे पर सैनिकों को तेजी से पहुंचाने के लिए सरकार ने मध्य क्षेत्र में भी सड़क और पुल जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर फोकस किया है। विशेष रूप से उत्तराखंड के हर्षिल, माणा, नीती और बाराहोती घाटियों में काम किया गया है। इस क्षेत्र में सड़कों और पुलों का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही कई अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा किया जा रहा है। इस क्षेत्र के कई महत्वपूर्ण पहाड़ी दर्रे में चीनी सैनिकों के आने से पहले ही भारतीय सैनिक पहुंच सकते हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में एलएसी पर 20 से अधिक ऐसे दर्रे हैं जहां सड़कें बनाई गईं हैं। 

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3,488 किलोमीटर लंबा है LAC
गौरतलब है कि भारत और चीन की सीमा 3,488 किलोमीटर लंबी है। यह सीमा दूसरे अंतरराष्ट्रीय सीमा की तरह निर्धारित नहीं है। इसके चलते इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा कहते हैं। एलएसी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक है। लद्दाख को उत्तरी क्षेत्र, अरुणाचल प्रदेश को पूर्वी क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में पड़ने वाली सीमा को मध्य क्षेत्र कहा जाता है। मध्य क्षेत्र के एलएसी की लंबाई 545 किलोमीटर है। चीन के साथ तनातनी के बाद भारत ने पूर्वी लद्दाख में टैंकों को तैनात कर दिया था। चीन की सेना को उम्मीद नहीं थी कि भारत इतने ऊंचे इलाके में टैंक तैनात कर देगा। मध्य क्षेत्र में भी एलएसी के पास बख्तरबंद वाहनों की तैनाती की गई है।

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