दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में शुक्रवार की शाम से शांति है। लेकिन रविवार से लेकर गुरुवार तक वहां जो कुछ हुआ, वह अपने साथ कई कहानियां छोड़ गया। उसी में से एक कहानी एसीपी अनुज कुमार (आईपीएस) की है।
नई दिल्ली. दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में शुक्रवार की शाम से शांति है। लेकिन रविवार से लेकर गुरुवार तक वहां जो कुछ हुआ, वह अपने साथ कई कहानियां छोड़ गया। उसी में से एक कहानी एसीपी अनुज कुमार (आईपीएस) की है। अनुज कुमार वही पुलिस अधिकारी हैं, जिन्होंने शाहदरा के डीसीपी अमित शर्मा की जान बचाई। यह वही अधिकारी हैं, जिनके साथ तैनात हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की हिंसा के दौरान मौत हो गई। एसीपी अनुज कुमार ने बताया कि 24 तारीख की सुबह क्या-क्या हुआ था। भीड़ ने कैसे उनके ऊपर हमला कर दिया? कैसे उन्होंने डीसीपी अमित शर्मा को बचाया?
"हम चांदबाग मजार पर तैनात थे"
एसीपी अनुज कुमार ने बताया, 24 तारीख की सुबह मेरी ड्यूटी चांदबाग मजार के पास थी। मैं डीसीपी शाहदरा और मेरा पूरा ऑफिस स्टाफ दो कंपनी फोर्स के साथ वहां तैनात थे।
"सड़क पर किसी के न बैठके के आदेश थे"
अनुज कुमार ने बताया, हमें निर्देश थे कि सड़क पर कोई न बैठे। हमारे पास में ही एक जगह पर विरोध प्रदर्शन हो रहा था। हमारा उद्देश्य यही था कि यातायात व्यवस्था सही रहे।
"भीड़ धीरे-धीरे सर्विस रोड की तरफ बढ़ रही थी"
अनुज कुमार ने बताया, भीड़ ने धीरे-धीरे सर्विस रोड पर बढ़ना शुरू किया। एक दिन पहले उन्होंने वजीराबाद रोड को घेर लिया था। इसलिए उन्हें लगा कि यहां भी वह ऐसा कर लेंगे। उन्हें रोड पर आने दिया जाएगा।
"महिलाएं बच्चों को गोली मारने की अफवाह फैली"
अनुज कुमार ने बताया, मुझे बाद में पता चला कि उन लोगों में अफवाह फैल गई थी कि पुलिस ने फायरिंग कर दी है और कुछ महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं। कुछ दूरी पर कंस्ट्रक्शन का काम भी चल रहा था। पास में पत्थर वगैरह भी पड़े हुए थे।
"लोगों के हाथ में कुदाल, बेलचा और फावड़े थे"
अनुज कुमार ने बताया, कुछ देर में भीड़ उग्र हो गई। उन्होंने वहां पड़े पत्थर, कुदाल और फावड़े उठा लिए। अचानक पत्थरबाजी होने लगी। हम बीच में फंस गए थे। तीन तरफ से भीड़ और पीछे ग्रिल।
"डिवाइडर के पास सर बेहोश पड़े थे"
"हंगामे के बीच मैंने देखा कि डीसीपी सर कहां हैं। वह डिवाइडर के पास बेहोश पड़े थे। उनके मुंह से खून आ रहा था। मैं यही कोशिश कर रहा था कि डीसीपी सर को यहां से लेकर निकलूं। कुछ देर बाद मेरे साथ सर का कमांडो और एक कांन्स्टेबल आ गए थे।"
"प्राइवेट गाड़ी से मदद मांगी, वहां से निकले"
"हम सर को वहां से लेकर कुछ दूर तक भागे, फिर एक प्राइवेट गाड़ी से मदद मांगी। हम सर को लेकर मैक्स अस्पताल पहुंचे। दंगे के वक्त रतन लाल भी घायल हो गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उसे चोट लगी है।