हेलो ऑर्बिट में स्थापित हुआ Aditya-L1, 5 साल तक सूर्य का करेगा अध्ययन, कई रहस्यों से उठाएगा पर्दा

आदित्य एल 1 ने 2 सितंबर 2023 को अपनी यात्रा शुरू की थी। इसे इसरो ने अपने रॉकेट PSLV-C57 से लॉन्च किया था। इसरो की योजना के अनुसार यह पांच साल तक सूर्य का अध्ययन करेगा।

 

Vivek Kumar | Published : Jan 6, 2024 11:22 AM IST / Updated: Jan 06 2024, 06:18 PM IST

नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation) द्वारा लॉन्च किए गए पहले सूर्य मिशन आदित्य एल 1 (Aditya-L1) को शनिवार को बड़ी कामयाबी मिली। आदित्य एल 1 धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंज प्वाइंट 1 के हेलो ऑर्बिट में पहुंच गया है। इसे ऑर्बिट में स्थापित कर दिया गया है।

इसरो की योजना के अनुसार आदित्य एल वन पांच साल तक काम करेगा और सूर्य का अध्ययन करेगा। यह सूर्य के कई रहस्यों से पर्दा उठा सकता है। आदित्य एल वन को हेलो ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए इसरो ने शनिवार शाम चार बजे इसके इंजनों को चालू किया था। इसके बाद बेहद सावधानी से इसे ऑर्बिट में स्थापित किया गया।

 

 

लैग्रेंज प्वाइंट 1 पर स्थापित हुआ आदित्य एल 1

आदित्य एल 1 को सूर्य और धरती के बीच स्थित लैग्रेंज प्वाइंट 1 (L1) पर स्थापित किया गया है। यह ऐसी जगह है जहां धरती और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल एक दूसरे के खिलाफ समान ताकत के काम करता है। यहां किसी चीज को रखने पर लंबे समय तक बिना अधिक ऊर्जा खर्च किए बना रह सकता है। इसी वजह से आदित्य एल 1 को लैग्रेंज प्वाइंट 1 पर स्थापित किया गया। यहां से लैग्रेंज प्वाइंट 1 लंबे समय तक सूर्य का अध्ययन करेगा। यह धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर है।

 

 

2 सितंबर 2023 को आदित्य एल वन ने शुरू की थी यात्रा

आदित्य एल वन को इसरो ने अपने रॉकेट PSLV-C57 से दो सितंबर 2023 को लॉन्च किया था। इसे धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंज प्वाइंट 1 तक पहुंचने में 126 दिन लगे। सूर्य के अध्ययन के लिए लैग्रेंज प्वाइंट 1 का हेलो ऑर्बिट महत्वपूर्ण है। यहां से सूर्य को लगातार बिना किसी बाधा के देखा जा सकता है। यहां पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से हस्तक्षेप नहीं होता।

क्या है भारत के पहले सूर्य मिशन का उद्देश्य?

भारत के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल वन का मुख्य उद्देश्य सूर्य के वायुमंडल, विशेष रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना का अध्ययन करना है। इसके साथ ही यह कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सौर फ्लेयर्स और सौर कोरोना की रहस्यमय हीटिंग जैसी घटनाओं का भी अध्ययन करेगा। दरअसल सौर कोरोना का तापमान सूर्य के सतह से भी बहुत अधिक होती है। वैज्ञानिक अभी तक पता नहीं लगा पाए हैं कि ऐसा क्यों होता है। सूर्य पर घटने वाली घटनाओं को समझना महत्वपूर्ण है। इससे पृथ्वी पर उपग्रह संचालन, दूरसंचार और पावर ग्रिड प्रभावित होते हैं।

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आदित्य-एल1 के पास हैं ये सात पेलोड

आदित्य-एल1 विद्युत चुम्बकीय और कण डिटेक्टरों का इस्तेमाल कर सूर्य का अध्ययन करेगा। इसके पास विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC), सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS), प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (PAPA), हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS), सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT), आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स) और ऑनबोर्ड मैग्नेटोमीटर (एमएजी) उपकरण हैं।

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