नए रॉकेट के साथ ISRO का लांच फेल, सैटेलाइट का यह हुआ हाल

ISRO ने SSLV के साथ दो पेलोड अंतरिक्ष में भेजा है। इनमें एक अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट ईओएस-02  और दूसरा आजादीसैट है। ईओएस-02 ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपग्रह है। 

Dheerendra Gopal | Published : Aug 7, 2022 10:22 AM IST / Updated: Aug 07 2022, 03:54 PM IST

नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के नए रॉकेट की पहली उड़ान में ऑनबोर्ड दो सैटेलाइट अंतरिक्ष की अस्थिर ऑर्बिट में स्थापित हो गई है। यह दोनों सैटेलाइट अब भविष्य में उपयोगी नहीं रहे। अस्थिर कक्षाओं में स्थापित होने से अंतरिक्ष मिशन के  लांच उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। हालांकि, सैटेलाइट लांच फेल होने के बाद अंतरिक्ष एजेंसी ने साफ किया है कि वह इस फेल्योर की वजहों को आईडेंटीफाई कर चुके हैं। 

क्या किया है स्पेस एजेंसी ने ट्वीट?

अंतरिक्ष एजेंसी (Space Agency) ने ट्वीट किया कि सेंसर की विफलता की पहचान करने और इसे बचाने के लिए की गई कार्रवाई और विफलता की वजहों का पता लगाने के लिए एक एनालिसिस कमेटी (analysis committee) को रिकमेंड किया गया है। ISRO जल्द ही SSLV-D2 के साथ वापस आएगा। स्पेस एजेंसी के अनुसार लांच के लास्ट स्टेज में डेटा लॉस का अपडेट आया।

इससे पहले, पूर्व-इसरो प्रमुख डॉ माधवन नायर (Dr.Madhvan Nair) ने कहा था कि यह एक कम्प्लेक्स मिशन रहा और इसके प्रिलिमिनरी फाइंडिंग्स (preliminary findings) आने चाहिए। हजारों पेज का डेटा उपलब्ध है, कई स्पेशलिस्ट्स इन डेटाज पर रिसर्च कर इस बारे में रिपोर्ट करेंगे। उन्होंने कहा कि लॉन्च के अंतिम चरण में पॉथ में कुछ डेविएशन हुआ। संभव है कि सेपरेशन के दौरान कोई विसंगति हो सकती है।

स्पेस एजेंसी का रॉकेट कम समय में लाने का श्रेय

2009 में इसरो के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए डॉ माधवन नायर ने भी अंतरिक्ष एजेंसी को कम समय में एक रॉकेट के साथ बाहर आने का श्रेय दिया। यह एक छोटा रॉकेट लॉन्चर है जिसकी कल्पना और कार्यान्वयन कम समय में किया गया है। लागत अनुकूलन, वजन अनुकूलन, और इसे वाणिज्यिक बाजार में लाना - इन सभी पहलुओं पर इतने कम समय में विचार किया गया। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। सभी रॉकेटों ने भी वांछित प्रदर्शन किया है।

इसरो ने एसएसएलवी के साथ दो पेलोड अंतरिक्ष में भेजा है। इनमें एक अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट ईओएस-02  और दूसरा आजादीसैट है। ईओएस-02 ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपग्रह है। यह भू-पर्यावरण अध्ययन, वानिकी, जल विज्ञान, कृषि, मिट्टी और तटीय अध्ययन के क्षेत्र में जानकारी देगा। 142 किलोग्राम का यह सैटेलाइट 10 महीने तक काम करेगा। इसमें मिड और लॉन्ग वेवलेंथ  का इंफ्रारेड कैमरा लगा है। दिन हो या रात यह हर वक्त काम करेगा। 

दूसरा पेलोड आजादीसैट है। इसे भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए लॉन्च किया गया है। यह अंतरिक्ष में छह महीने रहेगा। इसे 750 छात्राओं ने बनाया है। यह अंतरिक्ष में तिरंगा फहराएगा। लॉन्चिंग सफल रही, रॉकेट ने दोनों उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में पहुंचा दिया। इस बीच सैटेलाइट से संपर्क टूट गया है। इसरो के वैज्ञानिक सैटेलाइट से संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।

क्यों खास है SSLV?

एसएसएलवी (SSLV) छोटे आकार का रॉकेट है। इसे छोटे आकार के उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए बनाया गया है। अभी तक छोटे उपग्रह को भी अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए बड़े रॉकेट का इस्तेमाल करना पड़ता था। इसके चलते सैटेलाइट लॉन्च करने में देर होती थी और खर्च भी अधिक लगता है। एसएसएलवी की मदद से इसरो अब कम समय और कम लागत में छोटे आकार के उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचा सकेगी। इसकी मदद से सिर्फ 72 घंटे में उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है, जबकी पीएसएलवी जैसे बड़े रॉकेट को लॉन्च के लिए तैयार करने में दो महीने लगते हैं।

SSLV से इसरो मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट (10-500kg वजन तक) को अंतरिक्ष में पहुंचाएगा। SSLV तीन स्टेज वाला रॉकेट है। इसके सभी स्टेज में ठोस इंधन का इस्तेमाल किया गया है। एसएसएलवी का वजन 120 टन है। यह सैटेलाइट को 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा सकता है।

यह भी पढ़ें:

Vice Presidential Election 2022: जगदीप धनखड़ भारत के नए उप राष्ट्रपति निर्वाचित, मार्गरेट अल्वा को महज 182 वोट

Niti Aayog की मीटिंग का KCR ने किया बॉयकाट, राज्यों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया का लगाया आरोप

फिल्म प्रोड्यूसर्स-डिस्ट्रीब्यूटर्स के 40 ठिकानों पर IT रेड, 200 करोड़ से अधिक की बेहिसाब संपत्ति मिली

महंगाई व बेरोजगारी पर कांग्रेस के विरोध पर Amit Shah का बड़ा बयान, बोले-यह प्रदर्शन राम मंदिर के खिलाफ...

Read more Articles on
Share this article
click me!