नायडू और पवन की जुगलबंदी में उलझे रेड्डी, प्रदेश में राजनीतिक पुनर्गठन से होंगे बदलाव

आंध्र प्रदेश में टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है।  हाल के चुनावों ने एक गहरे राजनीतिक पुनर्गठन की शुरुआत की है, जिससे राज्य के शासन परिदृश्य को नया आकार मिला है।

नेशनल डेस्क। आंध्र प्रदेश में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ गठबंधन की सरकार बना ली है। इस बार नायडू और पवन के साथ मिलकर एक नए राजनीतिक पुनर्गठन की शुरुआत की  गई है जिससे राज्य में शासन को नया आकार मिला है। टीडीपी के अनुभवी नेता चंद्रबाबू नायडू लगातार अपने दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए हैं। नायडू के विरोधियों के गलत राजनीतिक अनुमान का प्रमाण है कि वह सफल हुए हैं। 

टीडीपी को 164 और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को 11 सीटें
आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू वाली टीडीपी और जगन मोहन रेड्डी वाली वाइएसआर कांग्रेस पार्टी के चुनाव परिणामों को देखने पर नजर आता है कि यह दोनों दलों की ओर से हासिल की गई कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। चंद्र बाबू नायडू को 164 सीटें हासिल हुई हैं चुनाव में जबकि जगन मोहन रेड्डी की वाइएसआर कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 11 सीटों से संतोष करना पड़ा था। ऐसे में दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच वोट शेयर का अंतर सिर्फ 5 प्रतिशत ही था।

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टीडीपी, जनसेना और भाजपा गठबंधन को मिले 58 फीसदी वोट 
आंध्र के चुनाव में टीडीपी और जन सेना के वोट प्रतिशत को देखकर यह समझ आता है कि मजबूत रणनीतिक गठबंधन कितना जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि टीडीपी, जन सेना और भाजपा के गठबंधन ने सामूहिक रूप से लगभग 58 प्रतिशत वोट हासिल किए। यह गठबंधन पार्टियों के साधारण विलय से कहीं अधिक था।

नायडू की गिरफ्तारी के बाद पवन कल्याण ने दी गठबंधन को गति
चुनाव से पहले कौशल विकास घोटाले मामले में चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी उनके और पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुई। कई लोग इस घटना को राजनीति से प्रेरित मानते हैं लेकिन ठीक नौ महीने पहले नायडू की गिरफ्तारी से टीडीपी सक्रिय हुई और जनता के मन में उनके लिए सहानुभूति पैदा हुई। इस सहानुभूति की लहर को जन सेना पार्टी के चहते नेता पवन कल्याण ने नया रंग दिया। इनके समर्थन ने गठबंधन की गति को बढ़ा दिया। इसके बाद नायडू की गिरफ़्तारी का विरोधियों की दांव उल्टा पड़ गया जिससे वाईएसआरसीपी विरोधी भावना मजबूत हुई और नायडू की सत्ता में वापसी का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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