
Jagdeep Dhankhar resignation: संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन सियासी तूफान आ चुका है। देर शाम उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक से स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अचानक से आए इस इस्तीफा ने देश की राजनीति को गरमा दिया है। यह इस्तीफा जितना चौंकाने वाला है उतना ही रहस्यमीय भी है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस इस्तीफा की वजह सिर्फ स्वास्थ्य नहीं बल्कि यह पर्दे के पीछे लिखी गई ऐसी स्क्रिप्ट है जिसकी असली कहानी सत्ता के गलियारे में चुपचाप लेकिन तेज गति से लिखी गई है।
माना जा रहा है कि यह कहानी एक जज के करप्शन के खिलाफ कार्रवाई, एक नकदी घोटाले के खिलाफ सख्ती और संविधान की व्याख्या से शुरू होती है लेकिन अंत में सियासत के उन खेलों पर जाकर खत्म होती है जहां चेहरे शांत रहते हैं लेकिन फैसले खतरनाक होते हैं।
जानकारों की मानें तो सब कुछ उस दिन शुरू हुआ जब जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई। यह खबर सुर्खियों में आई और विपक्ष ने राज्यसभा में जज को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। राज्यसभा सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर कार्यवाही के निर्देश दे दिए। यहीं से तूफान उठना शुरू हुआ।
संसदीय राजनीति को करीब से देखने वालों का मानना है कि केंद्र सरकार इस घोटाले पर अपने तरीके से कार्रवाई करना चाहती थी। लेकिन विपक्ष ने पहल करते हुए महाभियोग की कार्रवाई के लिए प्रस्ताव दिया और धनखड़ द्वारा इसे स्वीकार कर लिया गया। यह सरकार को नागवार गुजरा। शायद यही वह प्वाइंट है जो राजनैतिक उठापटक की पटकथा तैयार कर गया। यह इसलिए क्योंकि बात यहां तक पहुंची कि उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा शुरू हो गई। और सबसे अहम यह कि इस बार यह सत्तापक्ष में चर्चा हुई। राजनीति शास्त्र के जानकार बताते हैं कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ चूंकि राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं, इसलिए वह संकेत पहले ही पढ़ लिए और अपना दांव चलने को विवेश हुए। उन्होंने इसके पहले कि उन्हें संस्थागत तौर पर अपमानित किया जाए, खुद ही सम्मानजनक विदाई का रास्ता चुन लिया।
दरअसल, इस्तीफे से कुछ घंटे पहले, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक महत्वपूर्ण मीटिंग बुलाई जिसमें जेपी नड्डा और किरण रिजिजू की गैरमौजूदगी ने उन्हें पशोपेश में डाल दिया। विपक्ष का दावा है कि यह जानबूझकर किया गया था। उसी दिन कुछ घंटों पहले राज्यसभा में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान काफी मायने रखता है जोकि सभापति के अधिकारों का साफ हनन माना जा सकता। जेपी नड्डा ने कहा-सिर्फ वही रिकॉर्ड होगा जो मैं कहूंगा। उपराष्ट्रपति के लिए असहनीय होने के साथ ही संसदीय राजनीति का पराभव काल भी माना जा सकता। हालांकि, नड्डा ने बाद में सफाई दी कि उनकी बात विपक्ष के शोर मचाते सांसदों को लेकर थी लेकिन तब तक माहौल बदल चुका था।
रात 9:25 बजे, उपराष्ट्रपति कार्यालय के आधिकारिक X अकाउंट से इस्तीफे का पत्र जारी हुआ। जगदीप धनखड़ ने लिखा: स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देते हुए और चिकित्सा सलाह के अनुसार, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से संविधान के अनुच्छेद 67(a) के तहत तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।
प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति और सांसदों का उन्होंने भावुक आभार जताया लेकिन यह पत्र जितना विनम्र था, उतना ही संकेतपूर्ण भी।
जगदीप धनखड़ लंबे समय से न्यायपालिका के अतिक्रमण और संसद की संप्रभुता पर खुलकर बोलते आए हैं। ऐसे में न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव को स्वीकार करना संविधान सम्मत था लेकिन राजनीतिक रूप से असहज। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया, या यह एक ऐसा दबाव था जिसे सार्वजनिक रूप से नहीं कहा जा सकता? हालांकि, महज 10 दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि अगर कोई दैवी हस्तक्षेप न हुआ तो मैं अगस्त 2027 तक कार्यकाल पूरा करूंगा। शायद उन्हें अंदाज़ा हो गया था कि 'दैवी हस्तक्षेप' अब संसद के भीतर से ही आ रहा है और इससे पहले कि राजनीतिक लहरें उन्हें बहा लें, उन्होंने नाव से कूदना बेहतर समझा।