पूर्व चीफ जस्टिस के बेटे हैं जस्टिस चन्द्रचूड़, समलैंगिकता से राम मंदिर तक इन अहम फैसलों में रहे शामिल

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बने सिर्फ साढ़े तीन साल ही हुए हैं लेकिन इस दौरान वह अयोध्या भूमि विवाद, निजता के अधिकार और समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने जैसे अनेक महत्वपूर्ण मामलों में फैसले सुनाने वाली पीठ का हिस्सा बन चुके हैं।
 

नई दिल्ली. न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बने सिर्फ साढ़े तीन साल ही हुये हैं लेकिन इस दौरान वह अयोध्या भूमि विवाद, निजता के अधिकार और समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने जैसे अनेक महत्वपूर्ण मामलों में फैसले सुनाने वाली पीठ का हिस्सा बन चुके हैं।

इन अहम मुद्दों पर सुनाया फैसला 
देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश वाई वी चन्द्रचूड़ के पुत्र न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ ने शीर्ष अदालत में अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिखे हैं। इनमें व्यभिचार, निजता का अधिकार, आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक यौन संबंधों को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध के दायरे से बाहर करना, सबरीमला मंदिर में एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देना और आधार योजना की वैधता जैसे फैसले शामिल हैं।

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आधार कार्ड के मामले पर लिखा था मुख्य फैसला 
न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ वरिष्ठता के आधार पर 9 नवंबर, 2022 को देश के प्रधान न्यायाधीश बनेंगे और 10 नवंबर, 2024 तक इस पद पर रहेंगे। नागरिक अधिकारों और निजता के प्रबल समर्थक न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अयोध्या प्रकरण पर सुनवाई के दौरान हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के अधिवक्ताओं से पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में मिले अवशेषों के संबंध में अनेक सवाल किए। आधार मामले की सुनवाई के दौरान उठे निजता के अधिकार के सवाल पर सुनवाई करने वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ में न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने मुख्य फैसला लिखा था।

आर्टिकल 377 और 497 को हटाने में रहे शामिल 
इसी तरह, परस्पर सहमति से एकांत में समलैंगिक यौन संबंध बनाने को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध के दायरे से बाहर करने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के भी वह सदस्य थे। संविधान पीठ ने कहा था कि समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने से समता के अधिकार का हनन होता है। इसी तरह, न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ व्यभिचार को अपराध करार देने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने वाली संविधान पीठ के भी सदस्य थे। संविधान पीठ ने इस प्रावधान को मनमाना, पुरातन करार देते हुए कहा था कि यह समता और निजता के अधिकार का हनन करता है।

न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ केरल के सबरीमला मंदिर में एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित करने संबंधी पुरानी परपंरा को लैंगिक भेदभाव वाला करार देने और महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने वाली संविधान पीठ के बहुमत के निर्णय का हिस्सा थे।

आधार कार्ड की संवैधानिकता से सहमत नहीं हैं चन्द्रचूड़
हालांकि, आधार पहचान संख्या की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले प्रकरण में न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने संविधान पीठ के बहुमत के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि इससे मौलिक अधिकारों का हनन होता है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ असाध्य बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के इलाज में लगे कृत्रिम उपकरण हटाकर मृत्यु को अंगीकार करने की इच्छा को मान्यता देने वाली संविधान पीठ के भी सदस्य थे। यही नहीं, केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासन के अधिकार को लेकर चल रही खींचतान के मामले में फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ के भी वह सदस्य थे।

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति से पहले न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ 31 अक्टूबर, 2013 से 13 मई 2016 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। इससे पहले, वह 29 मार्च, 2000 को बंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे।

(यह खबर न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा की है, एशियानेट हिंदी की टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

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