
What is impeachment: भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार एक हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग (Impeachment) की औपचारिक प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई। दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के घर से जले हुए ₹500 के नोटों के ढेर मिलने के बाद ये बड़ा कदम उठाया गया है। इस मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों सांसदों ने कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कोरम को पूरा किया।
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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए 145 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला (Om Birla) को ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन पर कांग्रेस, CPI(M), BJP, तेलगू देशम पार्टी (TDP), जेडीयू (JDU), और जेडीएस (JDS) जैसे सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें बीजेपी के पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, और एनसीपी की सुप्रिया सुले जैसे नेता प्रमुख हैं।
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भारतीय संविधान में सीधे 'महाभियोग' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है लेकिन Article 124, Article 217, और Article 218 के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। Judges Inquiry Act, 1968 के तहत संसद में यह प्रक्रिया चलाई जाती है।
लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के समर्थन से प्रस्ताव लाया जा सकता है। फिर स्पीकर या चेयरमैन इसकी वैधता की जांच करते हैं। एक जांच समिति रिपोर्ट देती है और अंत में दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होने पर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
15 मार्च को दिल्ली में जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने की घटना के बाद दमकल विभाग को वहां से जली हुई करेंसी के ढेर मिले। इसने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को लेकर सवाल खड़े कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक इन-हाउस कमेटी गठित की, जिसने 64 पेज की रिपोर्ट में महाभियोग की सिफारिश की और इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया। रिपोर्ट में कहा गया कि जिस आउट हाउस में नोट मिले, वह सीधे तौर पर जज और उनके परिवार के नियंत्रण में था।
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इन-हाउस कमेटी की वैधता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि समिति ने उनकी बात नहीं सुनी है। उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। जस्टिस वर्मा ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट के जजों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार नहीं है।
आज तक स्वतंत्र भारत में किसी जज को महाभियोग के बाद पद से नहीं हटाया गया है। हालांकि, 5 मामलों में इसकी शुरुआत जरूर हुई थी। सबसे चर्चित मामला 2018 में पूर्व CJI दीपक मिश्रा का था, जिन पर केसों के मनमाने आवंटन के आरोप लगे थे, पर वह प्रस्ताव खारिज हो गया।