नई दिल्ली। नेटफ्लिक्स की नई सीरीज ‘IC 814: द कंधार हाईजैक’ (Kandahar Hijack) को लेकर देश भर में चर्चा है। यह 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा किए जाने पर आधारित है। पांच आतंकियों ने IC 814 विमान पर कब्जा कर लिया था। सात दिनों तक बंधकों को यातनाएं दी गईं थीं। जानें भारत को हिला देने वाली यह घटना कैसे हुई थी।
24 दिसंबर 1999 को अगवा हुआ था इंडियन एयरलाइंस का विमान
24 दिसंबर 1999 को 5 आतंकवादियों ने काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के लिए उड़ान भरने के लगभग 40 मिनट बाद इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी 814 को अगवा कर लिया था। इस विमान में चालक दल समेत 180 यात्री सवार थे।
विमान कैप्टन देवी शरण उड़ा रहे थे। आतंकियों ने उन्हें विमान को दिल्ली की जगह पाकिस्तान के लाहौर ले जाने के लिए मजबूर किया। पाकिस्तान ने विमान को लाहौर में उतरने देने से इनकार कर दिया। विमान में इंधन कम था। इसके चलते उसे अमृतसर में उतारा गया।
भारतीय अधिकारियों ने विमान को अमृतसर से उड़ान भरने में देर करने की कोशिश की। NSG (National Security Guard) के कमांडो दिल्ली से उड़ान भर रहे थे। आतंकियों को शक हुआ कि इंधन भरने में अधिक समय लग रहा है। उन्होंने धमकी दी कि अगर पायलट ने उड़ान नहीं भरी तो वे बंधकों को मार देंगे। पायलट ने कम इंधन के साथ ही फिर से टेकऑफ कर लिया। विमान के उड़ान भरने के करीब एक घंटा बाद NSG के कमांडो अमृतसर पहुंचे।
अमृतसर से विमान ने लाहौर के लिए उड़ान भरी। पाकिस्तान के अधिकारियों ने शुरू में इसे उतरने से रोकने की कोशिश की। बाद में इसकी अनुमति दे दी। पाकिस्तान ने इस शर्त पर विमान में ईंधन भरने पर सहमति जताई थी कि विमान तुरंत उसके हवाई क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा। इंधन भरने के बाद विमान को दुबई ले जाया गया।
भारत सरकार ने अमेरिका से संपर्क किया, जिसने UAE (United Arab Emirates) पर विमान को दुबई में उतरने की अनुमति देने के लिए दबाव डाला। UAE के अल मिन्हाद एयर बेस पर आतंकियों ने 27 यात्रियों को रिहा कर दिया। इनमें 25 साल के रूपिन कत्याल का शव भी शामिल था। उसे विमान में अपहरणकर्ताओं में से एक जहूर मिस्त्री ने चाकू घोंपकर मार डाला था। आतंकी विमान को दुबई से अफगानिस्तान के कंधार ले गए। उस समय भी अफगानिस्तान में तालिबान का राज था।
भारत सरकार के सामने पैदा हो गई थी कूटनीतिक चुनौती
भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी थी। अगवा हुए विमान के कंधार पहुंचने के बाद भारत सरकार के सामने कूटनीतिक चुनौती थी कि अब उसे उसी तालिबान सरकार से बातचीत करनी थी। पाकिस्तानी आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन के 5 आतंकियों ने बंधकों के बदले 36 आतंकवादियों की रिहाई की मांग की थी। इसके साथ ही 200 मिलियन डॉलर (इस समय करीब 1678 करोड़ रुपए से अधिक) की फिरौती मांगी गई।
भारत 5 आतंकवादियों को रिहा करने के लिए तैयार था। इनमें से कोई भारतीय नागरिक नहीं था। अपहरणकर्ता इसपर नहीं माने। 26 दिसंबर 1999 को पीएम वाजपेयी ने कहा था: "मेरी सरकार ऐसे आतंक के आगे नहीं झुकेगी।"
जैसे-जैसे दिन बीते बंधकों के परिवारों की ओर से सरकार पर दबाव बढ़ता गया। तालिबान ने अपहरणकर्ताओं और भारत सरकार के बीच मध्यस्थता करने पर सहमति जताई। तालिबान ने अपहरणकर्ताओं को फिरौती की मांग छोड़ने और तीन आतंकियों की रिहाई पर सहमत होने के लिए राजी कर लिया। अपहरणकर्ताओं ने अहमद उमर सईद शेख, मौलाना मसूद अजहर और कश्मीरी आतंकवादी मुश्ताक अहमद जरगर की रिहाई की मांग की। अजहर का भाई रऊफ असगर और इब्राहिम अजहर उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने विमान का अपहरण किया था। वाजपेयी सरकार ने तीनों आतंकवादियों को भारतीय जेलों से रिहा करने पर सहमति जताई।
आतंकवादियों का क्या हुआ?
भारत को लगा था कि तालिबान के अधिकारी अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार करेंगे। रिहा किए गए आतंकवादियों को हिरासत में लेंगे, लेकिन तालिबान ने उन्हें पाकिस्तान तक सुरक्षित रास्ता दिया। मसूद अजहर ने पाकिस्तान सरकार की मदद से कुख्यात आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की नींव रखी।
जैश ने भारत पर कई भीषण हमले किए, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए। इनमें 2001 में नृशंस संसद हमला, 2016 में पठानकोट में भारतीय वायु सेना के अड्डे पर हमला और 2019 में पुलवामा हमला शामिल है। रिहा किए गए आतंकवादियों पर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों और 2002 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या का भी आरोप है।
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