जुगाड़ से देसी बम बनाकर जीता गया था कारगिल युद्ध, वायुसेना के इस योद्धा की पूरी कहानी

भारतीय वायु सेना दिवस 8 अक्टूबर को देश भर में मनाया जाता है। भारतीय वायु सेना की वीर गाथा में बहुत से ऐसे योद्धा रहे हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी भी कुर्बान कर दी है। इतना ही नहीं पाकिस्तान के खिलाफ हुए कारगिल युद्ध में अपनी वीरता और कौशल से देश की रक्षा भी की है। भारत के इतिहास में दर्ज कारगिल युद्ध की छीटें हमेशा दुखदायी होती हैं। सैकड़ों जवानों को हमने खो दिया था। लेकिन इस युद्ध में एक वायुसेना अफसर ने अपने दिमागी कौशल और जुगाड़ से पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे।

नई दिल्ली. भारतीय वायु सेना दिवस 8 अक्टूबर को देश भर में मनाया जाता है। भारतीय वायु सेना की वीर गाथा में बहुत से ऐसे योद्धा रहे हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी भी कुर्बान कर दी है। इतना ही नहीं पाकिस्तान के खिलाफ हुए कारगिल युद्ध में अपनी वीरता और कौशल से देश की रक्षा भी की है। भारत के इतिहास में दर्ज कारगिल युद्ध की छीटें हमेशा दुखदायी होती हैं। सैकड़ों जवानों को हमने खो दिया था। लेकिन इस युद्ध में एक वायुसेना अफसर ने अपने दिमागी कौशल और जुगाड़ से पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे।

टाइगर हिल पर लेजर गाइडेड बम दागने वाले पहले वायुसेना अफसर-

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भारत के इतिहास में दर्ज कारगिल युद्ध की छीटें हमेशा दुखदायी होती हैं। सैकड़ों जवानों को हमने खो दिया था। लेकिन इस युद्ध में एक वायुसेना अफसर ने अपने दिमागी कौशल और जुगाड़ से पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। टाइगर हिल पर लेजर गाइडेड बम दागने वाले पहले वायुसेना अफसर हैं। कारगिल युद्ध में अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार भारतीय वायुन सेना के वीर योद्धा हैं। भारतीय वायुसेना दिवस पर हम आपको कारगिल के इस हीरो की कहानी सुनाने जा रहे हैं।

नांबियार से जुड़ी जरूरी जानकारी-  

* भारतीय वायुसेना की पश्चिमी वायु कमान के एयर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ 
* नांबियार राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़कवासला के छात्र
* एयर मार्शल राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व छात्र
*11 जून 1981 में वायु सेना की
फ़्लाइंग ब्रांच में फाइटर पायलट के रूप में कार्यरत
* गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित।
* 42 प्रकार के विमान उड़ाने का अनुभव
* 5100 घंटे विमान उड़ाने का रिकॉर्ड
* मिराज-2000 उड़ाने का रिकॉर्ड

नांबियार बेहतरीन पायलट है और उन्होंने लगभग 42 प्रकार के विमान उड़ाए हैं, जिसमें राफेल भी शामिल है। नांबियार के नाम कई रिकॉर्ड हैं, जिनमें भारतीय वायुसेना में सबसे ज्यादा घंटों तक युद्धक विमान मिराज-2000 उड़ाने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है। नांबियार के नाम 5100 घंटे विमान उड़ाने का अनुभव है जबकि 2300 घंटे ही अपने आप में रिकॉर्ड है उन्होंने रिकॉर्ड न तोड़े हैं बल्कि अपने नए रिकॉर्ड गड़े हैं। नांबियार को कई पदकों से भी सम्मानित किया गया है।  

उन्होंने टाइगर हिल पर लेजर गाइडेड बम से हमला किया था। मिसाइल हमलों से पहले चलने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की फुटेज भी नांबियार के विमान से रिलीज की गई थी। इस हमले के बारे में इतना लिखा-पढ़ा जा चुका है कि इसे फिर से दोहराने की जरूरत नहीं है लेकिन लोग इस स्ट्राइक से जुड़े एक जुगाड़ वाले किस्से के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।

हमला करने को किया था जुगाड़-

नांबियार के जुगाड़ के बारे में एयरफोर्स के इतिहासकार बेंजामिन लैमबैथ ने लिखा है कि, कैसे नांबियार ने जुगाड़ु बम का इस्तेमाल कर दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। कम ही लोग जानते हैं कि पाकिस्तान घुसपैठियों के खिलाफ किए गए 'कारगिल सेफ्ड सागर' अॉपेरेशन को जुगाड़ से अंजाम दिया गया था। भारत एक जुगाड़ु देश है यहां  गांव-गांव गली-गली जुगाड़ मिल जाएंगे। भारतीय रॉकेट बनाने के शुरुआती वक्त में भी जुगाड़ काम आए थे। हालांकि अब यह बातें सिर्फ कहानियां बनकर रह गई हैं। वैज्ञानिक खुद इन किस्सों को सुनाते हैं। कारगिल युद्ध में भले नांबियार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन वह युद्ध में जुगाड़ करने में भी सफल रहे और यह एक अमर किस्सा बनकर रह गया। 

आखिर कैसे घुसा पाकिस्तान- 

रात के अंधेरे में पाकिस्तान ने कारगिल की टाइगर हिल पर चढ़ाई कर दी थी। वहां अपनी नॉर्दन लाइट इंफेंट्री का कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बना लिया। इस कमांड सेंटर के चलते भारतीय फौज की सप्लाई कोर के ट्रक जब भी कारगिल से गुज़रने को होते, पाकिस्तान उनपर लगभग हमला कर देता था।

 

हवाई हमले के लिए एयरफोर्स से मांगी गई मदद- 

टाइगर हिल की उंचाई बहुत थी, तो उस पर नीचे से हमला बेअसर रहने वाला था। तो एयरफोर्स से मदद मांगी गई। एयरफोर्स को कारगिल पर बने बंकर उड़ाने के लिए जो लेज़र गाइडेड बम चाहिए थे वो उनके पास मौजूद थे। लेकिन समस्या यह थी कि ये सभी कुल 60 बम पाकिस्तान में एक खास टार्गेट पर हमले के लिए रखे गए थे। वहां कोई पुल या रेल लाइन नहीं थी तो एयरफोर्स इन्हें कारगिल में नहीं चलाना चाहती थी। आगे लड़ाई बढ़ जाती तो भारत निहत्था हो जाता।

एलओसी क्रॉस न करने के आदेश थे-  

आज तक किसी भी एयरफोर्स को 14 से 18 हजार फीट की ऊंचाई से हमले करने के ऑर्डर नहीं थे। इसके अलावा किसी भी कीमत पर एलओसी को क्रॉस न करने के आदेश थे। ऐसे में बेंजमिन के मुताबिक एयरफोर्स के पायलट ने बर्फ में बमबारी की। दरअसल दुशमनों पर सीधा गोली बारी करने से वह चौंकन्ने और इधर-उधर बिखर सकते थे लेकिन यदि बर्फ में गोली मारते तो बर्फीला तूफान उन्हें ले डूबता।

कारगिल युद्ध तक इजराइल ने नहीं दिए एयरक्राफ्ट-

फिर भारत ने इज़रायल से मदद मांगी। भारत ने इज़रायल से लाइटनिंग इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स खरीदने के लिए 1997 में डील की थी। इन पॉड्स की खासियत ये थी कि इनमें लेज़र डेज़िग्नेटर के अलावा एक कैमरा भी लगा था जो टार्गेट की तस्वीर दिखाता था लेकिन कारगिल युद्ध छिड़ने तक इनकी डिलिवरी नहीं होती। फिर इज़रायल ने अपने इंजीनियर भेजे जिन्होंने इंडियन एयरफोर्स के एयरक्राफ्ट सिस्टम टेस्टिंग इस्टैब्लिशमेंट के साथ मिल कर ये पॉड्स एयरफोर्स के मिराज फाइटर जेट में लगाए।

लेकिन चलाने के लिए बम फिर भी नहीं था

टार्गेटिंग पॉड्स का इंतज़ाम होने के बाद सवाल उठा कि बम कौन सा चलाया जाए? इज़रायल के पॉड्स के साथ Paveway-II LGB बम इस्तेमाल होने थे। इनके आधे स्पेयर पार्ट अमरीका से आने थे, और आधे ब्रिटेन से, लेकिन 1998 में भारत ने न्यूक्लियर बम टेस्ट किए थे और इस वजह से हथियारों के इंपोर्ट पर बैन लगा हुआ था। तो एयरफोर्स ने तय किया कि उनकी जगह देसी बम चलाया जाए। यहां अधिकारी नांबियार ने देसी माने एयरफोर्स का पारंपरिक 1000 पाउंड का बम इस्तेमाल किया। तो एयरफोर्स ने फ्रांस में बने फाइटर जेट पर इज़रायल में बना टार्गेटिंग पॉड लगा कर उसमें एक देसी बम चलाने का प्लान बनाया था।

चलाए गए देसी बम- 

इन फाइटर जेट्स को पहले टेस्ट नहीं किया गया था। 30 हज़ार फीट की उंचाई पर जाकर इज़रायली पॉड का सॉफ्टवेयर बंद पड़ जाता था उसमें कुछ कमियां थीं लेकिन एयरफोर्स ने रिस्क लिया और 24 जून की सुबह दो मिराज-2000 फाइटर जेट टाइगर हिल की ओर बढ़ा दिए। टाइगर हिल से 7 किलोमीटर दूर से पहले जेट ने जुगाड़ वाला बम चला दिया। यह जुगाड़ बिना प्रशिक्षण के इस्तेमाल किया गया था लेकिन बम टाइगर हिल पर बने दुश्मन के बंकर पर लगा जिससे पाक की धज्जियां उड़ गईं। वहां सिर्फ एक पाकिस्तानी फौजी ही ज़िंदा बचा। इस जुगाड़ु देसी बम का निशाना अचूक लगा और कारगिल अॉपेरशन सफल रहा। हमले वाले जेट में तत्कालीन के एयर चीफ मार्शल ए वाय टिपनिस मौजूद थे। इस हमले की फुटेज आज भी यूट्यूब पर मौजूद है।

इस जुगाड़ु हमले का पूरा श्रेय एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार को ही जाता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि नांबियार को वायु सेना के वीरता पदक से सम्मानित किया गया था। कारगिल युद्ध में यह किस्सा अमर हो गया। आज भी विदेशी वैज्ञानिक इस जुगाड़ु हमले पर भारत की वाहवाही करता है। 

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