कोझिकोड की आदिवासी कॉलोनी में आते ही आदिकाल का हो जाएगा अहसास: आज भी कुएं से पीते हैं यहां लोग पानी, न बिजली न सड़क, जर्जर घरों में रहने को मजबूर

एशियानेट की टीम कोझिकोड की पुथुप्पडी आदिवासी कॉलोनी का दौरा किया। यहां रहने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बेहद नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

Story of a Kozhikode tribal colony: देश में विकास की रोशनी से अभी भी कई क्षेत्र वंचित है। कोझिकोड के आदिवासी कॉलोनी में रहने वाले परिवार आज की तारीख में भी असुविधाजनक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कुएं न हो तो यहां के परिवारों को पीने का पानी नसीब न हो। स्वच्छता अभियान की यहां धज्जियां उड़ती दिख जाएंगी। यहां रहने वाले परिवारों में से महज दो परिवारों के घर में शौचालय बने हैं। घर बेहद जर्जर है। न सड़क है न ही बिजली व्यवस्था सुचारू है। यहां आने के बाद आदि युग का अहसास हो तो कोई अचरज नहीं।

एशियानेट की टीम कोझिकोड की पुथुप्पडी आदिवासी कॉलोनी का दौरा किया। यहां रहने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बेहद नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। इस आदिवासी बस्ती के दस घरों में केवल दो शौचालय हैं। इस दयनीय स्थिति को झेलने वाले आदिवासी लोगों का दावा है कि पंचायत अधिकारियों में से कोई भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। इस आदिवासी बस्ती के करीब दस परिवार जिन घरों पर निवास करते हैं, उनके गिरने का खतरा मंडरा रहा है।

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कुआं का पानी पीने को मजबूर

आदिवासी कॉलोनी के लोगों को स्वच्छ पानी भी नसीब नहीं है। यहां पीने के पानी के लिए पाइप भी लगे हैं लेकिन पानी नहीं आता। यहां के लोग कुआं का पानी पीने को मजबूर है। सरकार के स्वच्छ पेयजल व्यवस्था जैसी योजनाओं से यहां के लोग महरुम है। केएसईबी ने बिजली सप्लाई बंद कर दी है तो स्थितियां और खराब हो गई हैं। महीनों से बिजली कटी है लेकिन कोई इनके कनेक्शन्स को जोड़वाने की पहल नहीं कर रहा।

न परिवहन, न सड़क, बुनियादी सुविधाओं का भी कोई पुरसाहाल नहीं

आदिवासी कॉलोनी तक पहुंचने के लिए परिवहन का तो अभाव है ही, आपको सड़क नाम की चीज यहां नहीं मिलेगी। बेहद खराब और जर्जर सड़कें आपका कॉलोनी में स्वागत करती हैं। आलम यह है कि यहां कोई बीमार पड़ जाए तो मरीज को कंधे पर या किसी और चीज पर उठाकर अस्पताल ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं। घर बेहद जर्जर है। हल्की सी बारिश में भी एक बूंद पानी बाहर न जाकर अंदर ही आए। कॉलोनी के लोग कहते हैं कि नए घरों के लिए आवेदन किया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। झोपड़ियों में रहने वालों का और बुरा हाल है। गोबर से घरों के फर्श लीपे जाते हैं। दरवाजा के नाम पर पुराने कपड़े लटकते हुए मिल जाएंगे। टीम को लोगों ने आवास योजनओं के तहत सालों पहले किए गए आवेदन के कागजात दिखाएं।

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