India@75: केशवानंद भारती की अदालती लड़ाई ने उन्हें बना दिया था 'संविधान का रक्षक', जानें क्या था वो केस

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य एक ऐसा ऐतिहासिक केस हुआ, जिसे लोग अब भी याद करते हैं। संत केशवानंद भारती ही इस केस के याचिकाकर्ता थे। इस फैसले के बाद से उन्हें 'संविधान का रक्षक' कहा जाने लगा। 

एशियानेट न्यूज हिंदीः 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य', यह वो केस था, जिसे आज तक के इतिहास का ऐतिहासिक फैसला कहा जाता है। इस केस ने लोगों को याद दिलाया कि सरकार संविधान से ऊपर नहीं हो सकती है। केशवानंद भारती इस मुकदमे के याचिकाकर्ता थे। इनके आवेदन पर ही सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि संविधान का मूल ढांचा नहीं बदल सकता है। 6 सितंबर 2020 को 79 वर्ष की उम्र में उन्होंने केरल के इडनीर मठ में अंतिम सांस ली। लेकिन उन्होंने देश के सामने एक नजीर पेश कर दिया। बता दिया कि संविधान से बड़ा कुछ नहीं। 

बन गया संविधान का मूल ढांचा
संत केशवानंद भारती को लोग 'संविधान का रक्षक' भी कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने व्‍यवस्‍था दी कि उसे संविधान के किसी भी संशोधन की समीक्षा का अधिकार है। आपने अक्सर अदालतों में संविधान का मूल ढांचा शब्द सुना होगा। यह ज्यादातर फैसले में लिखा होता है। 1973 में संविधान में यह संशोधन हुआ।

Latest Videos

इस सिद्धांत के तहत संसद की असीमित शक्तियों पर लगाम कस दिया गया। यस केस की याचिका केरल के संत केशवानंदा भारती ने ही दाखिल की थी। जानकारी दें कि भारतीय न्‍याय इतिहास में इस फैसले को सबसे अहम करार दिया जाता है। सरकारों के मनमाने रुख के खिलाफ अदालत गए केशवानंद भारती अब इस दुनिया में नहीं है। उन्‍होंने इडनीर मठ में रविवार तड़के देह त्‍याग दिया।

सुप्रीम कोर्ट क्यों गए थे संत केशवानंद भारती
केरल के कासरगोड़ जिले में इडनीर मठ है। केशवानंद इसके उत्तराधिकारी थे। उस दौरान केरल सरकार ने दो भूमि सुधार कानून बनाए। उस कानून के तहत धार्मिक संपत्तियों के मैनेजमेंट पर पूरा नियंत्रण लाने की व्यवस्था की जानी थी। उन दोनों कानूनों को संविधान की नौंवी सूची में रखा गया था। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि न्‍यायपालिका उसकी समीक्षा न कर सके। साल 1970 में केशवानंद ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट पहुंचते ही यह मामला ऐतिहासिक हो गया था।

जजों की बनी थी सबसे बड़ी बेंच
केस इतना ऐतिहासिक हो गया था कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की बेंच बैठी। इस केस की 68 दिन सुनवाई चली। यह भी अपने आप में एक रेकॉर्ड है। जब इसका फैसला आया तो इस फैसले पर सारे जज एकमत नहीं हो पाए थे। 7:6 के तर्ज पर इसका फैसला आया। 31 अक्टूबर 1970 से सुनवाई शुरू हुई और 23 मार्च 1973 तक चली। इसका फैसला 703 पन्‍नों में सुनाया गया था।

यह था ऐतिहासिक फैसला
23 मार्च, 1973 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। संसद के असीमित शक्तियों पर अदालत ने ऐतिहासिक रोक लगाई। ससंद अब संविधान को पूरी तरह से नहीं बदल सकता है। चीफ जस्टिस एसएम सीकरी और जस्टिस एचआर खन्‍ना की अगुआई वाली 13 जजों की बेंच ने 7:6 के अनुपात से यह फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद के पास संविधान के अनुच्‍छेद 368 के तहत संशोधन का अधिकार तो है, लेकिन संविधान की मूल बातों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। संविधान के हर हिस्से में बदलाव किया जा सकता है लेकिन उसकी न्‍यायिक समीक्षा जरूरी है। 

सरकार से भी ऊपर है संविधान
'केशवानंद भारती बनाम केरल' मुकदमे में भारत में ये स्थापित हो गया कि देश में संविधान सबसे ऊपर है। संविधान से ऊपर संसद नहीं हो सकता है। क्योंकि जनता ही प्रतिनिधि को चुनते हैं। माना जाता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट संसद को संविधान में संसोधन का अधिकार दे देती तो देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था चरमरा जाती। 

यह भी पढ़ें- India@75: डॉ. वर्गीज कुरियन की वजह से ही भारत में बही थी दूध की नदियां, जानें उनकी जिंदगी की दिलचस्प बातें

Share this article
click me!

Latest Videos

तो क्या खत्म हुआ एकनाथ शिंदे का युग? फडणवीस सरकार में कैसे घटा पूर्व CM का कद? । Eknath Shinde
ठिकाने आई Bangladesh की अक्ल! यूनुस सरकार ने India के सामने फैलाए हाथ । Narendra Modi
Hanuman Ashtami: कब है हनुमान अष्टमी? 9 छोटे-छोटे मंत्र जो दूर कर देंगे बड़ी परेशानी
अब एयरपोर्ट पर लें सस्ती चाय और कॉफी का मजा, राघव चड्ढा ने संसद में उठाया था मुद्दा
बांग्लादेश ने भारत पर लगाया सबसे गंभीर आरोप, मोहम्मद यूनुस सरकार ने पार की सभी हदें । Bangladesh