केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 6 महीने से आंदोलित किसान 26 मई को काला दिवस मनाएंगे। लेकिन किसानों के एक बड़े संगठन भारतीय किसान संघ ने इसे समर्थन देने से इनकार कर दिया है। संघ ने काले दिवस के जरिये कुछ किसान संगठनों पर आतंक पैदा करने का आरोप लगाया है। बता दें किसानों ने इसी दिन से आंदोलन शुरू किया था। इसी दिन मोदी सरकार को 7 साल पूरे होंगे।
नई दिल्ली. केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को 26 मई को 6 महीने पूरे हो जाएंगे। कुछ किसान संगठनों ने इस दिन को 'काला दिवस' मनाने का ऐलान किया है। इसी दिन मोदी सरकार के भी 7 साल पूरे होंगे। किसानों के एक बड़े संगठन भारतीय किसान संघ ने इसे समर्थन देने से इनकार कर दिया है। संघ ने काले दिवस के जरिये कुछ किसान संगठनों पर आतंक पैदा करने का आरोप लगाया है। इस बीच पंजाब के विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने किसानों के समर्थन में पटियाला और अमृतसर के अपने आवास पर काला झंडा लगाया है।
26 जनवरी जैसा भय पैदा करने की कोशिश
भारतीय किसान संघ ने एक बयान जारी करके कहा कि दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसान नेताओं द्वारा 26 मई को लोकतंत्र का काला दिवस घोषित किया गया है, इसका भारतीय किसान संघ विरोध करता है। इसमें 26 जनवरी जैसा भय और आतंक पैदा करने की योजना दिखाई दे रही है। 26 मई का दिन चुनने के पीछे कारण कुछ भी रहा हो, परंतु देश के किसान इस बात से आक्रोश में है कि किसानों के नाम को बदनाम करने का अधिकार इन स्वयंभू, तथाकथित किसान नेताओं को किसने दिया है। किसान शार्मिंदा हैं कि वह राष्ट्र विरोधी कार्यों, विलासितापूर्ण रहन-सहन, राष्ट्रीय मान बिंदुओं का अपमान, विदेशी फंडिंग, आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन और इतनी बड़ी कोविड त्रासदी के समय भी कोई इतना स्वार्थी कैसे बन सकता है? ऐसी छवि निर्माण करने का पाप इन लोगों ने किया है।
आंदोलन अराजक तत्वों के हाथ
भारतीय किसान संघ ने इस आंदोलन के आरम्भ से कुछ समय बाद ही आशंका प्रकट की थी कि यह किसान का आंदोलन नहीं है, आंदोलन कुछ अराजक तत्वों के हाथों द्वारा संचालित है। अप्रैल-मई माह में ही एक बंगाल के किसान की 24 वर्षीय पुत्री के साथ सामूहिक बलात्कार और अंत में उसकी हत्या की घटना जो दिल्ली बार्डर पर घटी और 10-15 दिन तक पुलिस से छुपाया गया, ताकि सबूत नष्ट किये जा सके। जिसके सबूत नष्ट करने में नेतागण लिप्त पाए गए हैं। यह तो एक घटना है, जो बाहर आ गई वह भी लड़की के पिता द्वारा पुलिस केस दर्ज कराने के कारण न जाने क्या-क्या घटनाएं/कांड यहां घटित हुए हैं। कई लोगों पर अपराधिक प्रकरण भी बने हैं।
ऑक्सीजन टैंकर भी रोके गए
भारतीय किसान संघ ने आरोप लगाया है कि इन आंदोलनकारियों द्वारा बीच-बीच में ऑक्सीजन गैस टैंकर्स को रोकना, एम्बुलेंस में गंभीर रोगियों से बदसलूकी करना, एक-एक सप्ताह तक अलग-अलग झुंड आंदोलन स्थल पर बुलाना, वापस जाना, कोरोना की गाइडलाइन को नहीं मानना, हिसार में कोविड अस्पताल का विरोध करना जैसी अवांछनीय हरकतों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना बीमारी के विस्तार में भी बड़ी भूमिका निभाई है। पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा कोविड ग्रस्तों की सहायता के लिए रक्तदान शिविर का विरोध करके रक्तदान नहीं होने देना, इन सब कृत्यों को शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा तो नहीं कहा जा सकता। आंदोलन स्थल पर सैकड़ों किसानों की मौत भी हो चुकी है।
समर्थन करने वालों किसान संगठनों से सवाल
भारतीय किसान संघ ने कहा कि जिन 12 राजनीतिक दलों ने इस काले दिवस के समर्थन की घोषणा की है, उनको भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे इस आंदोलन में घटित शर्मनाक, राष्ट्रविरोधी एवं अपराधिक घटनाओं का भी समर्थन करते है? देश का आम किसान जानना चाहता है कि लाचार किसानों के नाम को बदनाम करने का ठेका इन लोगों को किसने दे दिया। इसलिए भारतीय किसान संघ आम जनता से निवेदन करना चाहता है कि इन हरकतों में देश के आम किसान को दोषी नहीं ठहराया जाए। देशभर के किसान संगठनों के कार्यकर्ता इस महामारी में अपने-अपने स्थलों पर ग्रामीणों में जन जागरण, भूखे-प्यासे गरीब की दैनिक आवष्यकता पूर्ति, औषधि-उपचार की व्यवस्था में लगा हुआ है।
भारतीय किसान संघ ने केन्द्र सरकार से आह्वान किया है कि हिंसक आंदोलनकारियों के अलावा देशभर में किसानों के मध्य आंदोलनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने वाले अन्य किसान संगठन भी हैं, उनकी केन्द्र द्वारा अनदेखी कब तक की जाएगी, उनको बुलाकर आम किसान की चाहत एवं उससे जुड़ी कठिनाइयों पर बातचीत क्यों नहीं का जाती है।
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