बड़ा हुआ शास्त्रीय भाषाओं का कुनबा: जानिए 5 नई क्लासिकल भाषाओं का इतिहास

अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली क्लासिकल लैंग्वेज माना जाएगा। पुरानी समृद्धि साहित्यिक परंपराओं वाली इन भाषाओं के क्लासिकल लैंग्वेज घोषित किए जाने के बाद इस क्षेत्र में रिसर्च एड सहित इसके संरक्षण का रास्ता आसान हो गया है।

Dheerendra Gopal | Published : Oct 3, 2024 4:32 PM IST / Updated: Oct 03 2024, 10:22 PM IST

Classical Language status: भारत सरकार ने पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे दिया है। अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली क्लासिकल लैंग्वेज माना जाएगा। पुरानी समृद्धि साहित्यिक परंपराओं वाली इन भाषाओं के क्लासिकल लैंग्वेज घोषित किए जाने के बाद इस क्षेत्र में रिसर्च एड सहित इसके संरक्षण का रास्ता आसान हो गया है।

जानिए पांचों भाषाओं के बारे में...

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मराठी: यह भाषा इंडो-आर्यन फैमिली की है। मराठी भाषा की एक हज़ार साल से भी ज़्यादा पुरानी समृद्ध साहित्यिक परंपरा है। इस साहित्य में संत तुकाराम जैसे प्रमुख कवियों और आधुनिक नाटककारों की रचनाएं शामिल हैं। मराठी भाषा, महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पाली: यह भी इंडो-आर्यन परिवार की भाषा है। यह थेरवाद बौद्ध धर्म की धार्मिक भाषा मानी जाती है। इसमें पाली कैनन जैसे प्राचीन ग्रंथ शामिल हैं जो बौद्ध शिक्षाओं की आधार है। प्रारंभिक बौद्ध दर्शन और इतिहास के अध्ययन में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

प्राकृत: यह भी इंडो-आर्यन परिवार की भाषा है। इस भाषा में प्राचीन भारतीय साहित्य में विशेष रूप से जैन ग्रंथों और नाटकों को लिखा गया। इसमें "पंचतंत्र" और "अष्टावक्र गीता" जैसी रचनाएं शामिल हैं।

असमिया: यह भी इंडो-आर्यन परिवार की भाषा है। 13वीं शताब्दी की इस भाषा की एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा रही है। इसमें भूपेन हजारिका और लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ जैसे कवियों की रचनाएं शामिल हैं। यह भाषा, असम की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग, संगीत और कला को प्रभावित करता है।

बंगाली: यह भाषा भी इंडो-आर्यन परिवार से ताल्लुक रखता है। भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक जिसका साहित्यिक इतिहास सदियों पुराना है। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर और कई अन्य साहित्यिक हस्तियों का लिटरेचर इस भाषा में है।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के लाभ

सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: इन भाषाओं के ऐतिहासिक महत्व को मान्यता दी जाती है और बढ़ावा दिया जाता है ताकि इसकी सांस्कृतिक पहचान कायम रहे।

आधिकारिक भाषा का दर्जा: शास्त्रीय भाषाओं को अक्सर अपने-अपने राज्यों में आधिकारिक मान्यता मिलती है जिससे सरकार और शिक्षा में उनका उपयोग आसान हो जाता है।

वित्तीय सहायता: सरकार शास्त्रीय भाषाओं से संबंधित शोध, डॉक्यूमेंटेशन और प्रचार के लिए अनुदान देती है।

शैक्षणिक अवसर: यह एजुकेशनल सिलेबस में भी शामिल किया जाता ताकि छात्र इन भाषाओं को सीख सकें। इससे इन भाषाओं का संरक्षण भी होता है।

शोध प्रोत्साहन: शास्त्रीय भाषाओं में विशेषज्ञता रखने वाले विद्वान अपनी शैक्षणिक गतिविधियों के लिए नेशनल फेलोशिप और स्कालरशिप भी पा सकते हैं।

सांस्कृतिक उत्सव: शास्त्रीय भाषाओं का जश्न मनाने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि युवा पीढ़ी के बीच जागरूकता हो सके।

पर्यटन को बढ़ावा: शास्त्रीय भाषाओं से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं से हेरिटेज टूरिज्म को बढ़ावा मिलता है। इन भाषाओं को बढ़ावा मिलने से इंटरनेशनल लेवल पर सहयोग को भी बढ़ावा मिलता है।

बहुभाषावाद को प्रोत्साहन: शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने से भारत के बहुभाषावाद को बढ़ावा मिलता है।

बौद्धिक लाभ: इन भाषाओं का अध्ययन करने से प्राचीन ग्रंथों और ज्ञान के माध्यम से प्राचीन समाज के समृद्ध अतीत का पता चलता है।

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