लखीमपुर हिंसा मामला : रद्द हो सकती है आशीष मिश्रा की जमानत, जानें- सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई में क्या हुआ

लखीमपुर खीरी (Lakhimpur kheri violence) में किसानों को कार से रौंदने के आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme court)में सुनवाई हुई। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर फरियादियों और आरोपी का पक्ष सुना। इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 

नई दिल्ली। लखीमपुर खीरी हिंसा (Lakhimpur kheri violence) मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में सुनवाई हुई। पीड़ितों ने मंत्री अजय मिश्रा टेनी के आरोपी बेटे आशीष मिश्रा को जमानत देने के हाईकोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।  

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले मामले की लंबी सुनवाई की। पिछले साल 3 अक्टूबर (2021) को, लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में 8 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना उस वक्त हुई जब किसान संगठन लखीमपुर में एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का विरोध कर रहे थे। मिश्रा के साथ यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी थे, जिन्हें किसानों ने काले झंडे दिखाए थे। 

10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष को दी थी जमानत
आरोप है कि केंद्रीय गृह मंत्री के काफिले को काले झंडे दिखाने पर उनके बेटे आशीष मिश्रा ने अपनी एसयूवी किसानों पर चढ़ा दी थी, जिसमें 4 किसानों की मौत हो गई थी। बाद में उपजी हिंसा में 4 और लोगों की मौत हुई। इस मामले की जांच में एसआईटी ने आशीष मिश्रा को आरोपी बनाया। पुलिस ने आशीष के खिलाफ कई सबूत जुटाए, जिनके आधार पर उसे जेल भी भेजा गया, लेकिन 10 फरवरी 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि यह भी हो सकता है कि विरोध कर रहे किसानों को कुचलने वाले वाहन के चालक ने खुद को बचाने के लिए एसयूवी की स्पीड बढ़ा दी हो। 

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पीड़ितों का आरोप- सरकार ने नहीं किया जमानत का विरोध
पीड़ितों ने सरकार पर इस केस में जमानत का विरोध न करने का आरोप लगाया है। इसके अलावा आरोपियों द्वारा चश्मदीदों को भी धमकाने का आरोप है। सोमवार को सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की तरफ से पेश वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि राज्य ने सभी 97 गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराई है। उन्होंने बताया कि यूपी पुलिस ने सभी गवाहों से सुरक्षा के संबंध में बातचीत की और सभी ने किसी तरह का खतरा नहीं होने की बात कही है। 

सीजेआई ने पूछा- जमानत का विरोध या समर्थन कर रहे 
राज्य सरकार ने कहा कि आरोपी के भागने का जोखिम नहीं है। इस पर सीजेआई ने जेठमलानी से कहा कि वह इस पर राज्य का रुख स्पष्ट करें कि वह जमानत याचिका का समर्थन कर रहा है या विरोध कर रहा है। सीजेआई ने कहा कि पिछली बार हमने आपसे पूछा था, आपने कहा था कि आपने जमानत का विरोध किया है। जेठमलानी ने कहा- हां, हमने इसका पुरजोर विरोध किया। इस पर सीजेआई ने पूछा- हम आपको (यूपी राज्य) एसएलपी दाखिल करने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं। लेकिन आपका स्टैंड क्या है? जेठमलानी ने स्वीकार किया कि मामले की जांच कर रही एसआईटी ने राज्य को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए कहा था, लेकिन इससे सरकार प्रभावित नहीं हुई। जेठमलानी ने माना कि यह एक गंभीर अपराध है। एसआईटी ने कहा था कि वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं, लेकिन राज्य सरकार इससे प्रभावित नहीं हुई। 

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पीड़ितों के दावे से सुप्रीम कोर्ट सहमत
पीड़ितों के परिवारों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि हाईकोर्ट ने मिश्रा को जमानत देते हुए प्रासंगिक तथ्यों पर विचार नहीं किया। बेंच ने दवे के इस दावे से सहमति जताई। दवे ने कहा- आरोपी यह अच्छी तरह जानते हुए भी वहां गया, जबकि वहां 10,000 से 15,000 लोग जमा थे। आशीष मिश्रा और उसके दोस्तों ने नारे लगाए और किसानों को मारने के इरादे से कुचल दिया। इससे 4 किसान और एक पत्रकार की मौत हो गई। 

आशीष के वकील बोले- पीड़ितों का दावा सही नहीं 
मिश्रा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि हाईकोर्ट ने गोली लगने के पहलू की जांच की, क्योंकि पहली सूचना रिपोर्ट में कहा गया था कि मौत आग्नेयास्त्रों के कारण हुई थी। उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ितों की ओर से यह दावा करना सही नहीं था कि उनकी सुनवाई नहीं हुई क्योंकि वे हाईकोर्ट के समक्ष जवाबी हलफनामा दाखिल करने में विफल रहे। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।

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