सरकारी पैसों से AAP की पब्लिसिटी के हेर-फेर में फंसे केजरीवाल, LG ने दिए 97 करोड़ की रिकवरी के आदेश

 अरविंद केजरीवाल एक नई मुसीबत में घिर गए हैं। दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने राजनीति विज्ञापनों को सरकारी विज्ञापनों के की तरह पब्लिश कराने पर केजरीवाल सरकार से 97 करोड़ रुपए की वसूली के आदेश दिए हैं। LG ने यह राशि 15 दिन के अंदर जमा करने को कहा है।

Amitabh Budholiya | Published : Dec 20, 2022 6:17 AM IST / Updated: Dec 20 2022, 12:13 PM IST

नई दिल्ली. अरविंद केजरीवाल एक नई मुसीबत में घिर गए हैं। दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने राजनीति विज्ञापनों को सरकारी विज्ञापनों के की तरह पब्लिश कराने पर केजरीवाल सरकार से 97 करोड़ रुपए की वसूली के आदेश दिए हैं। LG ने यह राशि 15 दिन के अंदर जमा करने को कहा है। LG का यह आदेश आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015, दिल्ली हाईकोर्ट के 2016 और इसी वर्ष CCRGA द्वारा दिए गए आदेश के पालन में है।


आरोप यह भी है कि केजरीवाल सरकार इस आदेशों को नजरअंदाज कर रही है। एलजी ने चीफ सेक्रेट्री को निर्देशित किया है कि वो सितंबर, 2016 के बाद के सभी विज्ञापनों को कमेटी ऑन कंटेंट रेग्युलेशन इन गर्वनमेंट एडवरटाइजिंग( CCRGA) के पास जांच के लिए भेजें। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि क्या वे विज्ञापन सुप्रीम कोर्ट के जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप हैं या नहीं।  डीआईपी ने निर्धारित किया कि 97,14,69,137 रुपये "गैर-अनुरूप विज्ञापनों-non-conforming advertisements के कारण खर्च या बुक किए गए थे। एक सूत्र ने कहा, "इसमें से, जबकि 42.26 करोड़ रुपये से अधिक की राशि डीआईपी द्वारा पहले ही जारी की जा चुकी है, प्रकाशित विज्ञापनों के लिए 54.87 करोड़ रुपये अभी भी वितरण के लिए लंबित हैं।"

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सूचना और प्रचार निदेशालय(DIRECTORATE OF INFORMATION AND PUBLICITY-DIP) ने 2017 में आप को 42.26 करोड़ रुपये सरकारी खजाने को तुरंत भुगतान करने और 54.87 करोड़ रुपये की बकाया राशि विज्ञापन एजेंसियों या संबंधित प्रकाशनों को 30 दिनों के भीतर सीधे भुगतान करने का निर्देश दिया था। सूत्र ने कहा, "हालांकि, पांच साल और आठ महीने बीत जाने के बाद भी AAP ने डीआईपी के इस आदेश का पालन नहीं किया है।" 


2020 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सरकारी विज्ञापनों में सामग्री के नियमन से संबंधित समिति (CCRGA) ने दिल्ली सरकार के एक विज्ञापन पर दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) सरकार को एक नोटिस भी जारी किया था। यह विज्ञापन 16 जुलाई, 2020 को अखबारों में प्रकाशित हुआ था। समिति ने दिल्ली सरकार के विज्ञापन पर सोशल मीडिया में उठाए गए कुछ बिंदुओं पर स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें मुंबई के समाचार पत्रों में दिल्ली सरकार द्वारा जारी विज्ञापनों के प्रकाशन की आवश्यकता पर सवाल खड़े किए गए थे। साथ ही संकेत किया गया था कि इस विज्ञापन का उद्देश्य सिर्फ राजनीतक संदेश देना है। एक पेज का यह विज्ञापन शिक्षा विभाग एवं सूचना एवं प्रचार निदेशालय, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया था। 

सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2015 के दिशानिर्देशों के अंतर्गत- “सरकारी विज्ञापनों की सामग्री सरकार के संवैधानिक और कानूनी दायित्वों के साथ ही नागरिकों के अधिकारों और पात्रताओं के अनुरूप होनी चाहिए।” इन दिशानिर्देशों को देखते हुए, दिल्ली सरकार को नोटिस मिलने के बाद इस मुद्दे पर समिति के पास अपनी टिप्पणियां जमा करने के लिए 60 दिन का समय दिया गया था, लेकिन दिल्ली सरकार ने उस पर ध्यान नहीं दिया।


पिछछे साल राजधानी दिल्ली (Delhi) में बढ़ते वायु प्रदूषण (Air Pollution) ने केजरीवाल (Kejriwal) सरकार को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कड़े कदम न उठाने पर सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि आप अपने प्रचार स्लोगनों पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की बात सही भी थी। अप्रैल, 2021 में एक आरटीआई के तहत एक जानकारी में सामने आया था कि उस साल (2021) दिल्ली सरकार ने तीन महीने में विज्ञापनों (advertisement) पर 150 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए थे, जबकि 2021-22 में वायु प्रदूषण से निपटने सरकार ने महज 124.8 करोड़ का बजट रखा है। यानी, विज्ञापन पर हर दिन 1.67 करोड़ और वायु प्रदूषण पर सिर्फ 34 लाख रुपए का खर्च। 2020-21 में तो केजरीवाल सरकार ने इससे भी तीन गुना कम 52 करोड़ का ही बजट वायु प्रदूषण से निपटने के लिए रखा था। क्लिक करके पढ़ें डिटेल्स...

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