लोकसभा चुनाव 2024: UP में 62 से गिरकर 33 क्यों रह गई BJP के सीटों की संख्या, जानें तीन बड़ी वजह

2019 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा 2024 में 33 सीटें ही पा सकी। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गहराई से नजर रखने वालों ने भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए तीन वजह की ओर इशारा किया है।

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाले नतीजे उत्तर प्रदेश से आए। 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश से भाजपा को सबसे अधिक उम्मीदें थीं। दावे तो सभी 80 सीटें जीतने के किए जा रहे थे, लेकिन पार्टी को सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

2014 से भाजपा ने यूपी के चुनाव में अपना दबदबा दिखाया था, लेकिन 2024 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस बड़ी ताकत के रूप में सामने आए। 37 सीटें जीतकर सपा यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बनी। यूपी में समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 2019 में 18.11% था। 2024 में यह बढ़कर 33.59% हो गई।

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वहीं, कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली। 2019 के चुनाव में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा 2024 में मात्र 33 सीट जीत सकी। भाजपा के अकेले बहुमत पाने से पिछड़ने के लिए यूपी और महाराष्ट्र में पार्टी के खराब प्रदर्शन बताया जा रहा है।

विपक्ष के संविधान बदलने वाले नैरेटिव का मुकाबला नहीं कर सकी भाजपा

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गहराई से नजर रखने वालों ने भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए तीन वजह की ओर इशारा किया है।

वजह नंबर 1- भाजपा विपक्ष के इस नैरेटिव का मुकाबला नहीं कर सकी कि भाजपा सरकार यदि दोबारा सत्ता में आई तो संविधान बदल देगी। ओबीसी और एससी/एसटी को मिलने वाला आरक्षण खत्म कर देगी। नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक भाजपा के शीर्ष नेताओं ने इसे बेअसर करने के ठोस प्रयास किए, लेकिन यह कहानी जमीन पर घूमती रही।

वजह नंबर 2- पार्टी कार्यकर्ताओं से नकारात्मक प्रतिक्रिया के बावजूद भाजपा अपने सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना का अनुमान नहीं लगा सकी। भाजपा ने शुरू में अपने 30% मौजूदा सांसदों को टिकट न देने का फैसला किया था, लेकिन अंत में केवल 14 सांसदों का टिकट काटा गया। किसानों और समाज के अन्य वर्गों के विरोध ने राज्य के कई इलाकों में पार्टी के खिलाफ गुस्सा बढ़ा दिया था।

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वजह नंबर 3- भाजपा अल्पसंख्यकों की आक्रामकता कम करने में असफल रही। वहीं, अल्पसंख्यक विपक्ष मुख्य रूप से सपा-कांग्रेस गठबंधन के पीछे एकजुट हो गए। भाजपा हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में विफल रही। हिंदू जाति के आधार पर बंट गए। राम मंदिर के उद्घाटन, काशी विश्वनाथ धाम के जीर्णोद्धार और कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले के बाद भी भाजपा को सफलता नहीं मिली।

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