भाजपा को उम्मीद थी कि दक्षिण भारत के राज्यों में अधिक सीटें मिलेंगी। केरल में उसे पहली बार एक सीट पर जीत मिली, लेकिन तमिलनाडु में खाता खाली रहा। कर्नाटक में शानदार प्रदर्शन हुआ।
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की कोशिश दक्षिण के राज्यों में अधिक सीटें जीतने पर थी। पार्टी को इसमें कुछ हद तक सफलता मिली। कर्नाटक में भाजपा को 17 और केरल में 1 सीट पर जीत मिली तमिलनाडु में खाता खाली रहा। आइए इन तीन दक्षिणी राज्यों के चुनाव परिणामों की सबसे बड़ी बातों पर नजर डालते हैं।
तमिलनाडु: डीएमके की जीत, भाजपा के अन्नामलाई पीछे
तमिलनाडु में यह साफ था कि भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई का पूरा ध्यान द्रविड़ किले को भेदने पर था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। डीएमके ने 39 में से 22 सीटों को जीत लिया। भाजपा एक भी सीट जीत नहीं पाई। डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 39 में से 39 सीटें जीत ली। यह पिछली बार जीती गई 38 सीटों से एक अधिक है।
वोट शेयर पर नजर डालें तो AIADMK दूसरी सबसे बड़ी पार्टी दिखती है। उसे 20.46% वोट मिले, लेकिन एक भी सीट जीत न सकी। वहीं, भाजपा को 11.24% वोट मिले, लेकिन सीटों का आंकड़ा 0 रहा। 10.67% वोट शेयर वाली कांग्रेस को 9 सीटें मिलीं।
अन्नामलाई ने कोयंबटूर में राज्य में भाजपा के लिए सबसे अधिक वोट हासिल किए, लेकिन डीएमके के गणपति राजकुमार से एक लाख से अधिक वोटों से हार गए। भाजपा कोयंबटूर के अलावा चेन्नई दक्षिण, चेन्नई मध्य और तिरुनेलवेली जैसी प्रमुख सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। वहीं, NDA 12 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहा।
तमिलनाडु में यह नया मामला है। यहां परंपरागत रूप से AIADMK और DMK नंबर एक और दो स्थान पर आते रहे हैं। यह रिजल्ट तमिलनाडु की राजनीति की वास्तविकता को दर्शाता है। किसी सीट पर जीत का मौका अभी भी दो द्रविड़ पार्टियों में से किसी एक के साथ गठबंधन में है। फिलहाल, भाजपा की अपनी द्रविड़ महत्वाकांक्षा अभी भी परवान चढ़ने के लिए संघर्ष कर रही है।
कर्नाटक: भाजपा-जेडीएस की बढ़त, कांग्रेस पिछड़ी
कर्नाटक में भाजपा-जनता दल सेक्युलर गठबंधन ने दिखाया है कि इसमें दम है। कांग्रेस 2019 के मुकाबले आठ सीटें अधिक यानी नौ सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन पिछले साल ही सत्ता में आई इस राज्य में उसका प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा। कांग्रेस ने हैदराबाद कर्नाटक या कल्याण कर्नाटक में पांच सीटें जीतीं। पुराने मैसूर क्षेत्र में उसे सिर्फ दो लोकसभा सीटें मिलीं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश बेंगलुरू ग्रामीण सीट हार गए। जेडीएस ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से दो पर उसे जीत मिली।
कांग्रेस का वोट शेयर 45.43% रहा। यह 2023 के विधानसभा चुनाव में मिले वोट से करीब तीन प्रतिशत अधिक है। विधानसभा चुनाव में उसे 224 में से 135 सीटें मिली थीं। यह 2019 के वोट शेयर से करीब 14 प्रतिशत अधिक था। भाजपा का वोट शेयर 46.06% प्रतिशत रहा। भाजपा-जेडीएस का संयुक्त वोट शेयर 50 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर गया। इससे पता चलता है कि गठबंधन में मजबूती और एकजुटता थी।
केरल: भाजपा को मिली पहली जीत, कांग्रेस की पकड़ मजबूत
सिंगर और एक्टर सुरेश गोपी ने त्रिशूर लोकसभा सीट जीतकर भाजपा को केरल में पहली सफलता दिलाई है। भाजपा के हाई प्रोफाइल राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने शशि थरूर की तिरुवनंतपुरम सीट पर कड़ी टक्कर दी। वह मात्र 16,077 वोटों से हारे। भाजपा का वोट शेयर बढ़कर लगभग 16.68% हो गया।
केरल में भाजपा को ईसाई वोट बैंक का साथ मिला है। वहीं, कांग्रेस में आंतरिक स्थानीय विभाजन से भी भाजपा की मदद हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता के करुणानकरन के बेटे कांग्रेस उम्मीदवार के मुरलीधरन अपने वट्टाकारा निर्वाचन क्षेत्र से त्रिशूर चले गए। उनकी बहन पद्मजा चुनाव से पहले भाजपा में चली गई थीं। यह सब कांग्रेस के खिलाफ काम करता हुआ प्रतीत होता है।
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हालांकि चुनाव परिणाम से दिखता है कि कांग्रेस की पकड़ केरल में मजबूत बनी हुई है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ को 20 में से 18 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को 14 सीटों पर जीत मिली। यहां संसदीय चुनावों में कांग्रेस और विधानसभा चुनावों में वामपंथियों का दबदबा एक दशक से चला आ रहा है।
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