लोकसभा चुनाव: जानें क्यों केरल में हर कोई अल्पसंख्यक वोटों के पीछे, कितनी है मुसलमानों की संख्या

केरल के 20 लोकसभा सीटों में से 13 में अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 35% से अधिक है। यहां राजनीतिक दलों के लिए अल्पसंख्यक वोटों की तलाश सबसे बड़ी चुनौती रही है।

कोच्चि। केरल के 20 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। यहां राजनीतिक दलों के लिए अल्पसंख्यक वोटों की तलाश सबसे बड़ी चुनौती रही है। इस बार तो यह चुनौती और बढ़ गई है। भाजपा एक मजबूत दावेदार बनकर उभरी है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF और CPM के नेतृत्व वाले LDF में पहले से मुस्लिम वोट बैंक के लिए जंग है। दोनों खुद को संघ परिवार के खिलाफ खड़ा बताने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार केरल की आबादी में मुस्लिम और ईसाई समुदायों की हिस्सेदारी 44.9% है। राजनीतिक दलों का कहना है कि यह आंकड़ा 2024 तक बढ़ा होगा।

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केरल की 20 सीटों में से 13 में अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 35% से अधिक

केरल के मालाबार क्षेत्र में आठ लोकसभा सीट हैं। सभी सीटों पर 25% से अधिक मुस्लिम आबादी है। कासरगोड में 30.8%, कन्नूर में करीब 26%, वडकारा में 31.2%, कोझिकोड में 36.7%, वायनाड में 41%, मलप्पुरम में 68%, पोन्नानी में 62.4% और पलक्कड़ में 29.4% मुसलमान हैं। ईसाई समुदाय को ध्यान में रखा जाए तो केरल की 20 सीटों में से 13 में अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 35% से अधिक है। छह सीट ऐसे हैं जहां ईसाई समुदाय की आबादी 20 फीसदी से अधिक है। इडुक्की में 41.8% और पथानामथिट्टा में 39.6% ईसाई हैं।

केरल के अल्पसंख्यक मतदाता LDF और UDF को वोट देते आए हैं। जिसके पक्ष में अल्पसंख्यक मतदाता होते हैं चुनाव के परिणाम भी उसके पक्ष में आते हैं। 2019 के आम चुनाव में UDF ने मुस्लिम और ईसाई वोटों के एकीकरण के कारण 20 में से 19 सीटें जीतीं। राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने से भी UDF को लाभ मिला। उन्हें भविष्य के पीएम के रूप में पेश किया गया था। यूडीएफ को 65% मुस्लिम वोट और 70% ईसाई वोट मिले। वहीं, LDF को क्रमशः 28% मुस्लिम वोट और 24% ईसाई वोट मिले।

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2019 के लोकसभा चुनावों में LDF की हार के बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में स्थिति बदल गई। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 2019 में सीएए विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा था कि केरल में यह लागू नहीं किया जाएगा। विधानसभा ने सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया था। विधानसभा चुनाव में मुसलमानों और ईसाइयों ने LDF के प्रति उत्साह दिखाया। LDF को पहली बार 99 सीटें मिली। वहीं, UDF 41 सीटों पर सिमट गई।

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