A year since Galvan कर्नल संतोष बाबू और उनके जवानों ने कई गलवान होने से बचायाः Lt.Gen. विनोद भाटिया

गलवान की स्थितियां, प्रभाव और रणनीति को समझने केलिए एशियानेट ने मिलिट्री आपरेशन्स के डायरेक्टर जनरल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया से बात की है।

Asianet News Hindi | Published : Jun 14, 2021 5:56 PM IST

नई दिल्ली। गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुई झड़प का एक साल हो चुका है। बीते साल 16 जून को कर्नल संतोष बाबू और भारतीय सैनिकों ने चीन को रोकने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। गलवान की स्थितियां, प्रभाव और रणनीति को समझने केलिए एशियानेट ने मिलिट्री आपरेशन्स के डायरेक्टर जनरल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया से बात की है।

गलवान के बाद स्थिति जस की तस

गलवान पर बात करते हुए ले.जनरल विनोद भाटिया ने बताया कि स्थिति जस की तस बनी हुई है। सौभाग्य से गलवान के बाद कोई वृद्धि नहीं हुई है। यह एक बहुत ही सकारात्मक संकेत है। हालांकि, सभी क्षेत्रों में अपेक्षित डिसएंगेजमेंट नहीं हुआ। पैंगोंग त्सो जैसे कई संवेदनशील क्षेत्रों में सेनाएं पीछे हटी। यह अच्छा है कि कोर कमांडरों की बातचीत के बाद ऐसा हुआ। कुछ इलाके मई-जून में पीएलए जितना आगे बढ़ा था वैसी ही स्थिति अभी भी है। इसको लेकर कोर कमांडरों के स्तर की बातचीत चल रही है, राजनयिक स्तर की बातचीत चल रही है, और पिछले साल मास्को में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके रक्षा प्रमुख और दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच राजनीतिक स्तर की बातचीत हुई थी। 
ले.जन. विनोद भाटिया ने कहा कि मई जून में चीन ने जो किया वह सबको चैकाने वाला था क्योंकि उनका प्राथमिक उद्देश्य पूर्वी लद्दाख था। लेकिन हमारी प्रतिक्रिया ने उनको चैका दिया। वह अनुमान नहीं लगा पाए थे। हमारे पास एक रणनीति थी, जिसे मैं नो ब्लिंकिंग, नो ब्रिंकमैनशिप कहता हूं। इसलिए हमने पलक नहीं झपकाई और हम ने कोई शिकन नहीं रखी। शुरुआत में हालात खराब दिख रहे थे लेकिन 30 अगस्त को जब हमने कैलाश रेंज पर कब्जा किया तो इसने उन्हें हमारे इरादे का संकेत दिया कि हमें यहीं रहना है।

गलवान जानबूझकर किया गया घात

ले.जन. विनोद भाटिया ने कहा कि गलवान पीएलए द्वारा जानबूझकर किया गया घात था। वे जानते थे कि कोर कमांडरों की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार पीएलए अपनी मूल स्थिति में वापस आ गया है या नहीं, यह जांचने के लिए भारतीय सैनिक वहां आएंगे और वे हमारे लोगों पर घात लगाने के लिए तैयार थे। 15 जून की शाम को कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में हमारे जवानों पर घात लगाकर हमला किया गया। हालांकि, यह भी सच है कि कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में हमारे जवानों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और बहुत अच्छी तरह से जवाबी कार्रवाई की थी। 

कर्नल संतोष बाबू और जवानों की प्रतिक्रिया से दूसरा गलवान नहीं हुआ

सेंटर फाॅर ज्वाइंट वारफेयर स्टडीज के डायरेक्टर विनोद भाटिया ने कहा कि संतोष बाबू और उनके जवानों की शहादत के बाद कई सवाल पूछे जा रहे हैं कि उन्होंने फायरिंग क्यों नहीं की और उनके पास हथियार क्यों नहीं थे। कारण बहुत स्पष्ट है कि यह एक बहुत ही सीमित स्थान है और जब आप एक दूसरे के संपर्क में होंगे तो आप भी खतरे में होंगे। लेकिन हमें यह समझना होगा कि कर्नल बाबू और उनकी टीम की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी थी। उन्होंने जो किया वह एक सामरिक कार्रवाई थी, लेकिन इसके रणनीतिक निहितार्थ थे। कर्नल संतोष बाबू और उनके जवानों के कारण पीएलए द्वारा होने वाले कई गलवान नहीं हुए। उन्होंने महसूस किया कि गलवान जैसी कार्रवाई उनके पक्ष में काम नहीं करने वाली थी और भारतीय सेना हर तरह से जवाब देने और जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम होगी। कर्नल संतोष बाबू और उनके जवानों ने जो जवाबी कार्रवाई की उसने पीएलए को हिला दिया। जिससे कई और गलवान नाकाम हो गए। वह समझ चुके थे कि अब आगे बढ़ने का मतलब भारतीय सेना के हाथों कार्रवाई झेलना। इसलिए मैं कहता हूं कि कर्नल संतोष बाबू और उनके लोगों की कार्रवाई एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। 16 जून के बाद भी हमने शांति की पहल की। हालांकि, हालात बहुत नाजुक थे लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपेक्षाकृत शांति ही रही है। 

चीन षड़यंत्र को उजागर हो, नहीं चाहेगा

उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा से वार्ता के सभी रास्ते खुले रखे हैं। पीएलए गलवान के पहले सही से आंकलन नहीं कर सका था। वे अभी तक आगे नहीं बढ़े हैं। बातचीत चल रही है। हमें चीनी कामकाज के तरीके को भी समझने की जरूरत है। वह गलत आंकलन से परेशान हैं। वे चेहरा बचाने का प्रयास करना चाहेंगे। आप जानते हैं कि चीनी चेहरा बचाने में विश्वास करते हैं। ‘सुमदो रोंग चू’ का गतिरोध साढ़े छह साल तक चला। हम अभी भी बातचीत कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि चीनियों ने आकर कब्जा कर लिया है और वापस नहीं जाएंगे। हमें उन पर दबाव बनाते रहना होगा। हमें अपने सभी प्रयासों को राजनीतिक स्तर पर, राजनयिक स्तर पर और विशेष रूप से सैन्य स्तर पर तालमेल बिठाना होगा। अगर सेना मजबूत नहीं है तो कूटनीति काम नहीं करती है। कूटनीति तभी काम करती है जब आप जमीन पर मजबूत हों। हमारे पास बहुत ही सशक्त सेना है। हमारे सशस्त्र बलों ने इन ऊंचाईयों पर बहुत अच्छा काम किया है और मुझे लगता है कि चीनियों ने इसे महसूस किया है। चीनी सेना के पास विशेषज्ञता और अनुभव नहीं है। तो वे परिणाम भुगत रहे हैं।
 

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