क्रूर शासक था औरंगजेब उर्फ आलमगीर, मंदिर तुड़वाना-हिंदुओं से नफरत...किया सिर्फ यही काम

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने बीते गुरुवार चादर चढ़ाई। उसके बाद राजनीतिक गलियारों में भूचाल सा आ गया है। नेताओं का कहना है कि जहां ना हिंदू जाते हैं और ना ही मुसलमान, तो वे क्यों गए। ऐसे में जानिए कि औरंगजेब से लोगों को आखिर इतनी नफरत क्यों है। 

 

नई दिल्लीः महाराष्ट्र की सिसायत में एक बार फिर भूचाल सा आ गया है। अब यह भूचाल ओवैसी के कारण आया है। AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवेसी बीते गुरुवार को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित मुगल सम्राट औरंगजेब (Aurangzeb) की कब्र पर चादर और फूल चढ़ाने गए थे। इस पर बीजेपी और कुछ नेता तीखी टिप्पणी करने में लगे हैं। कुछ कह रहे हैं कि जिस जगह ना हिंदू जाते हैं और ना मुसलमान, वहां क्यों गए। मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि लोग औरंगजेब का इतिहास खंगालने लगे। कुछ इतिहासकारों की मानें, तो उसने बेहतर काम किया। कुछ का कहना है कि अपने शासनकाल में वह हिंदू विरोधी रहा। कुछ का मानना है कि औरंगजेब ने कई मंदिर गिरा दिए। कईयों का धर्म परिवर्तन करवा दिया। 

कौन था औरंगजेब और कहा पैदा हुआ था
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को गुजरात के दाहोद में हुआ था। वह शाहजहां और मुमताज महल की छठी संतान और तीसरा बेटा था। उसका पूरा नाम मुहिउद्दीन मोहम्मद है, लेकिन उसे औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था। वह भारत पर राज करनेवाला छठा मुगल शासक था। जिसने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी अधिक समय तक राज किया। वो अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन करनेवाला मुगल शासक था। 

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औरंगजेब ने तुड़वा डाले थे हिंदुओं के मंदिर
मुगलकाल के अंतिम समय में औरंगजेब ने खूब आतंक मचाया था। 31 जुलाई 1658 में औरंगजेब मुगल बादशाह बना। तभी से उसका आतंक शुरू हो गया था। उसने सैंकड़ों मंदिर तुड़वा दिए थे। उसने वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा का केशवराय मंदिर तुड़वाया था। उसने वीर छत्रपति शिवाजी के राज्य को हड़पने का प्रयास किया, वहीं उसने सिख साम्राज्य को ध्वस्त करने का कार्य भी किया। उसने गुजरात और मध्यप्रदेश में भी आतंक मचा रखा था। मुगल सेना से लोहा लेते हुए औरछा की रानी सारंधा ने वीरगति को प्राप्त किया था। 

औरंगजेब ने हिंदूओं पर लगाया था जजिया कर
औरंगजेब के अत्याचारों से उसके इलाके के सारी हिंदू जनता परेशान थी। उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगा दिया था। यह आदेश भी जारी कर दिया था कि सारे ब्राह्मणों का सफाया कर दिया जाए। इस आदेश के बाद इनाम का फरमान भी जारी किया। उसने फरमान जारी किया कि जो जितने ब्राह्मणों को मारकर जितनी जेनऊ लाएगा, उसे उतनी स्वर्ण अशर्फियां दी जाएंगी। इस तरह औरंगजेब से पूरा भारत त्रस्त था। उसी दौर में कश्मीर के पंडितों को खत्म करने का भी फरमान जारी किया था। 1674-75 के बीच कश्मीर के सूबेदार इफ्तार खान को औरंगजेब ने आदेश दिया था कि एक भी कश्मीरी पंडित बचना नहीं चाहिए। 

औरंगजेब ने कबूल करवाया था इस्लाम
उसी काल में औरंगजेब ने यह फरमान जारी कर दिया था कि सभी हिंदुओं से कह दो कि इस्लाम धर्म कबूल करे या मौत को गले लगा ले। इस फरमान से हिंदू शासकों और जनता में काफी डर बैठ गया था। कईयों ने इस्लाम कबूल कर लिया। लेकिन कश्मीरी पंडितों को यह नागवार गुजरी। तभी इस आतंक का शिकार सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडित हुए थे। एक इतिहासकार लिखते हैं कि औरंगजेब के फरमान के बाद पंडित कृपाराम दत्त के नेतृत्व में कश्मीरी पंडितों का एक दल आनंदपुर में गुरु तेग बहादुर के पास अपनी रक्षा के लिए पहुंचा था। उनके पास रक्षा के लिए सभी पहुंचे थे। पास में ही 9 वर्षीय गुरु गोविंद सिंह भी थे। पंडितों की व्यथा सुनकर पिता से कह बैठे थे कि आप इतने महान हैं, उनकी मदद करें। उनके बोल सभी को भावुक कर गए थे. गुरु गोविंद सिंह ने अपने पिता से कहा था, 'मेरे यतीम होने से अच्छा है कि लाखों बच्चे यतीम होने से बच जाएं.'

गुरु तेग बहादुर ने नहीं किया धर्म परिवर्तन
अपने बेटे की बात सुनकर गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों से कहा कि जाकर कह दो औरंगजेब से कि अगर वह गुरु जी से धर्म परिवर्तन करवा देते है, तो हम लोग भी खुशी-खुशी धर्म परिवर्तन कर लेंगे। गुरुजी की इस बात को सुनकर औरंगजेब आग बबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया। 24 नवंबर 1675 को गुरुजी हंसते-हंसते देश और धर्म के लिए अपना बलिदान दे दिया। इस कारण से पूरे पंजाब (अभी की पाकिस्तान प्रांत भी) और पूरे कश्मीर (पाक अधिकृत कश्मीर भी) में एक विद्रोह शुरू हो गया। जानकारी दें कि गुरुजी की शहादत के जगह पर शीश जंग साहिब गुरुद्वारा बनाया गया है, जो आज भी स्थित है। 

औरंगजेब के शासन काल में विद्रोह
औरंगजेब जब तक शासन में रहा, तबतक जंग, विद्रोह की झरी लगी रही। पश्चिम से सिख दबिश रहे थे और दक्षिण में छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनकी नाक में दम कर रखा था। लेकिन इसके बावजूद औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन वे भाग निकले। लेकिन बाद में 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई. लकिन उनकी मृत्यु के बाद भी मराठे औरंगजेब को युद्ध के लिए ललकारते रहे। औरंगजेब के शासन में मुगल साम्राज्य अपने शिखर पर पहुंचा। लेकिन कईयों के दिल से उतर भी गया। औरंगजेब अपने समय का सबसे धनी और शक्तिशाली व्यक्ति था। 

औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य सिकुड़ने लगा था. लेकिन अपनी मौत से पहले उसने पूरे साम्राज्य में शरियत के मुताबिक फतवा ए आलमगिरी लागू किया। कुछ समय के लिए गैर मुसलमान पर ज्यादा टैक्स लगा दिया गया। इस बात से मुसलमान भी काफी नाराज हुए थे। मुसलमानों पर शरियत लागू करनेवाला वह पहला मुसलमान शासक था। उसने अपने जीवन में भरपूर कोशिश की कि दक्षिणी भारत में मुगल साम्राज्य का विस्तार हो जाए. लेकिन ऐसा हो ना सका। कुछ दूरी तक जाते-जाते उनका मृत्यु काल आ गया। औरंगजेब की मौत अहमदनगर में 3 मार्च सन् 1707 को हो गई. तभी तो अभी यह कहावत है कि औरंगजेब को ना तो हिंदू पसंद करते थे और ना ही मुसलमान। इतिहासकार कहते हैं कि आज जो भी लोग मुगल साम्राज्य से नफरत करते हैं, उसका एक ही कारण है, औरंगजेब..

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