
India-US Trade War: क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ हमले ने भारत में ‘स्वदेशी क्रांति’ को नई हवा दे दी है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया ‘मन की बात’ संबोधन अब सिर्फ रेडियो मैसेज नहीं, बल्कि भारत में अमेरिकी ब्रांड्स के लिए खतरे की घंटी बन गया है। ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ का मंत्र जनता को आत्मनिर्भर भारत की ओर धकेल रहा है, जबकि पेप्सी, कोका-कोला, मैकडॉनल्ड्स जैसे अमेरिकी दिग्गज कंपनियां भारतीय बाज़ार में बढ़ती असहजता महसूस कर रही हैं। यह सिर्फ आर्थिक जंग नहीं, बल्कि 146 करोड़ भारतीयों की सामूहिक शक्ति का संदेश है, जो अमेरिका तक सुनाई दे रहा है।
6 अगस्त 2025 को ट्रंप के उस फैसले ने हलचल मचा दी जिसमें उन्होंने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ़ लगाकर कुल 50% शुल्क लागू कर दिया। ट्रंप ने रूस से भारत के तेल खरीदने और बेचने पर नाराज़गी जताई और अमेरिका की “कठोर आर्थिक कार्रवाई” की चेतावनी दी। भारत ने इसे “अनुचित और अविवेकपूर्ण” बताते हुए कहा कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा। यह तनाव भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को नए मोड़ पर ले आया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ के 125वें एपिसोड में हर भारतीय से स्वदेशी उत्पाद अपनाने का आह्वान किया। त्योहारों के सीज़न में उन्होंने कहा कि “गर्व से कहो यह स्वदेशी है” मंत्र को अपनाकर आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाना ही सशक्त राष्ट्र का रास्ता है। उनका यह संदेश केवल आर्थिक सुधार नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलन बनता दिख रहा है।
योग गुरु रामदेव और कई राजनीतिक नेताओं ने अमेरिकी ब्रांड्स के बहिष्कार का खुला समर्थन किया। “पेप्सी, कोका-कोला, मैकडॉनल्ड्स पर भारतीय ग्राहकों को एक भी नज़र नहीं डालनी चाहिए,” रामदेव का यह बयान सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है। शिवराज सिंह चौहान और अन्य नेताओं ने इसे राष्ट्रहित का मुद्दा बताया।
आम आदमी पार्टी के सांसद अशोक कुमार मित्तल ने ट्रंप को पत्र लिखकर चेताया कि अगर भारतीय उपभोक्ता अमेरिकी उत्पादों का बहिष्कार करें तो इसका असर अमेरिका पर भारत से कहीं ज्यादा गहरा होगा। भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार अमेरिकी कंपनियों के लिए जीवनरेखा है और इस भावना के उभार से वैश्विक बाज़ार में भूचाल आ सकता है।
मैकडॉनल्ड्स और पेप्सिको इंडिया जैसी कंपनियां अरबों रुपये का राजस्व कमा रही हैं। फिर भी भारत में बढ़ते स्वदेशी मूवमेंट और राजनीतिक समर्थन के चलते अमेरिकी ब्रांड्स के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।