संसदीय स्थायी कमेटियों की मीटिंग से 'गायब' रहते सांसद जी...लापरवाह सांसदों में सबसे अधिक इस पार्टी के MPs

रिकॉर्ड्स के अनुसार संसद की 13 स्थायी समितियों का पुनर्गठन कर 2022-23 के सत्र में अक्टूबर से नवम्बर के बीच 22 मीटिंग्स हुई। लेकिन इन मीटिंग्स में औसत 16 सांसद ही पहुंचे। जबकि संसद की एक स्थायी समिति में 31 सदस्य होंते हैं। इसमें 21 लोकसभा सांसद होते हैं और 10 राज्यसभा के सदस्य। 

Dheerendra Gopal | / Updated: Nov 14 2022, 06:01 AM IST

Parliamentary Standing Committee: जनता के अरबों रुपयों से टैक्स फ्री सुख-सुविधाओं पर ऐश करने वाले सांसद, जनहित के मुद्दों या बिल-विधेयकों पर विचार-विमर्श करने वाली कमेटियों के प्रति बेहद लापरवाह हैं। मोदी के सांसद हों या विपक्ष के सांसद, सभी स्थायी कमेटियों की मीटिंग में खूब अनुपस्थित रहते हैं। लोकसभा की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों पर अगर गौर करें तो संसद की विभिन्न स्टैंडिंग कमेटीज में आधा से अधिक सांसद गैर मौजूद रहते हैं। 

औसत आधी संख्या ही मीटिंग में रहती है मौजूद

संसद की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार 2022-23 में संसद में पेश किए जाने वाले विधेयकों पर विचार-विमर्श के लिए संसदीय स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया। इन समितियों में विभिन्न दलों के सांसदों को मनोनीत किया जाता है। रिकॉर्ड्स के अनुसार संसद की 13 स्थायी समितियों का पुनर्गठन कर 2022-23 के सत्र में अक्टूबर से नवम्बर के बीच 22 मीटिंग्स हुई। लेकिन इन मीटिंग्स में औसत 16 सांसद ही पहुंचे। जबकि संसद की एक स्थायी समिति में 31 सदस्य होंते हैं। इसमें 21 लोकसभा सांसद होते हैं और 10 राज्यसभा के सदस्य। 

औसत 40 प्रतिशत सदस्य मीटिंग में नहीं आते...

आंकड़ों के अनुसार लोकसभा की एक दर्जन से अधिक स्थायी समितियों में 40 प्रतिशत से अधिक सदस्यों ने मीटिंग में आना ही मुनासिब नहीं समझा। यह स्थायी समितियां कृषि मंत्रालय, खाद्य और उपभोक्ता मामले, विदेश, वाणिज्य, आवास और शहरी मामले, सामाजिक मंत्रालय, न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की हैं। दरअसल, इन समितियों में सबसे अधिक संख्या बीजेपी के सांसदों की है। इसलिए बीजेपी के सांसदों की अनुपस्थिति भी सबसे अधिक है।

किस मीटिंग में कितने मेंबर्स रहे 

10 अक्टूबर को कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की स्थायी समिति की मीटिंग की गई। इस मीटिंग में 31 सदस्यों की तुलना में महज 12 सदस्य ही मौजूद थे। 28 अक्टूबर को वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति में केवल 17 सदस्य शामिल हुए। हालांकि, 4 नवंबर को हुई इसी समिति की मीटिंग में 21 सदस्य शामिल हुए। विदेश मंत्रालय ने भी 19 अक्टूबर और 19 नवम्बर को स्थायी समिति की दो मीटिंग्स की। इसमें भी महज 14 और 15 सदस्य भी आए। खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की स्थायी समिति की मीटिंग 18 अक्टूबर को हुई। इसमें भी आधा से कम 15 सदस्यों की मौजूदगी रही। इसी तरह वाणिज्य मंत्रालय के स्थायी कमेटी की 17 अक्टूबर की मीटिंग में 14 तो 28 अक्टूबर को 15 सदस्य आए। वहीं, 17 अक्टूबर को सामाजिक न्याय और अधिकारिता की स्थायी समिति की मीटिंग में महज 11 सदस्य ही मौजूद रहे। हालांकि, रेल मंत्रालय की स्थायी कमेटी की मीटिंग में 20 अक्टूबर को सबसे अधिक 24 सदस्य मौजूद रहे।

स्थायी कमेटी में नहीं आने वालों में बड़े-बड़े नामों वाले सांसद

संसदीय स्थायी कमेटियों में शामिल नामचीन सांसद मीटिंग्स में अनुपस्थित रहने वालों में शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सांसदों को मीटिंग्स में आने के लिए नसीहत देते हैं लेकिन उनके ही सांसद इस पर अमल नहीं करते। बीजेपी सांसद हेमा मालिनी, मेनका गांधी, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, राजीव प्रताप रूडी, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा, किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी भी स्थायी कमेटी में नहीं आने वालों में शुमार हैं। मीटिंग में नहीं आने वालों में राज्यसभा सदस्य पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पी चिदंबरम, मनीष तिवारी, दीपेंद्र हुड्डा आदि कांग्रेसी शामिल हैं। बालीवुड की पूर्व अभिनेत्री व सपा सांसद जया बच्चन भी गैर मौजूद रहने वालों में हैं। मनोनीत सांसद इलैया राजा, आम आदमी पार्टी के सांसद पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह, संजय सिंह के अलावा अकाली दल के सिमरनजीत सिंह मान, अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल, तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी और कल्याण बनर्जी, निर्दलीय कपिल सिब्बल और नवनीत राणा, राजद की मीसा भारती भी समिति की मीटिंग्स में नहीं आते हैं।

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