भारत में कोरोना वायरस से निपटने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। अब तक करीब 20 करोड़ वैक्सीन की डोज लग चुकी हैं। हालांकि, इस दौरान कुछ राज्यों ने वैक्सीन की कमी का दावा किया है।
नई दिल्ली. भारत में कोरोना वायरस से निपटने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। अब तक करीब 20 करोड़ वैक्सीन की डोज लग चुकी हैं। हालांकि, इस दौरान कुछ राज्यों ने वैक्सीन की कमी का दावा किया है। कुछ राज्य सरकार वैक्सीन की कमी, विदेशों से वैक्सीन की खरीद ना होने के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। ऐसे में नीति आयोग के सदस्य और नेशनल ग्रुप ऑफ वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के अध्यक्ष डॉ विनोद पाल ने इन मिथ और इनकी सच्चाई का खुलासा किया।
मिथ 1- केंद्र सरकार विदेशों से वैक्सीन की खरीद के लिए जरूरी कदम नहीं उठा रही
सच्चाई- केंद्र सरकार 2020 के मध्य से ही सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं के साथ लगातार संपर्क में है। फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्न के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सरकार ने उन्हें भारत में उनके वैक्सीन की आपूर्ति या निर्माण के लिए सभी सहायता की पेशकश की है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि उनके टीके मुफ्त में उपलब्ध हैं। ऐसे में हमें यह समझने की जरूरत है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन खरीदना 'ऑफ द शेल्फ' आइटम खरीदने के समान नहीं है।
इसके अलावा विदेशी वैक्सीन भी सीमित हैं। इसके अलावा कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं, गेम प्लान और मजबूरियां हैं। जैसे हमारी वैक्सीन निर्माताओं ने भारत को तरजीह दी है, ऐसे ही विदेशी वैक्सीन कंपनियां अपने देश के लिए कर रही हैं। फाइजर ने वैक्सीन उपलब्धता का संकेत दिया, इसके बाद भारत सरकार ने तुरंत वैक्सीन कंपनी ने संपर्क किया और जल्द से जल्द आयात के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। भारत सरकार के प्रयासों के चलते स्पुतनिक वैक्सीन के ट्रायल तेज हुए हैं। रूस ने वैक्सीन की दो खेप भी भेज दी हैं। साथ ही स्पुतनिक का भारत में भी जल्द निर्माण शुरू हो जाएगा। हम सभी अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं से भारत और दुनिया के लिए भारत में आने और वैक्सीन बनाने के लिए अपनी अपील दोहराते हैं।
मिथ- 2 केंद्र ने दुनियाभर में मौजूद वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी
सच्चाई: केंद्र सरकार ने अप्रैल में ही अमेरिका के एफडीए, ईएमए, यूके के एमएचआरए और जापान के पीएमडीए और डब्ल्यूएचओ की इमरजेंसी लिस्ट में मौजूद वैक्सीन के प्रवेश को आसान बना दिया है। अब इन वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी के लिए ट्रायल की जरूरत नहीं है। अन्य देशों में निर्मित वैक्सीनों के लिए ट्रायल की जरूरत को खत्म करने के लिए सरकार ने संशोधन किया है। इसके अलावा भारत के ड्रग कंट्रोलर पर किसी भी देश की वैक्सीन की मंजूरी के लिए आवेदन लंबित नहीं है।
मिथ- 3- केंद्र भारत में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए काम नहीं कर रहा
सच्चाई- केंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से ही कंपनियों को वैक्सीन का उत्पादन करने में सक्षम बनाने के लिए एक अहम भूमिका निभा रही है। अभी भारत में सिर्फ भारत बायोटेक के पास आईपी है। भारत सरकार ने भरोसा दिलाया है कि तीन और कंपनियां कोवैक्सिन का निर्माण शुरू करेंगी। इसके अलावा भारत बायोटेक ने भी अपने 3 नए प्लांट शुरू किए हैं। अब वैक्सीन 1 की जगह 4 प्लांट्स में बन रही है।
भारत बायोटेक का प्रोडक्शन अक्टूबर तक 1 करोड़ डोज प्रति महीने से बढ़ कर 10 करोड़ प्रति महीने हो जाएगा। इशके अलावा तीन अन्य प्लांट्स दिसंबर तक 4 करोड़ डोज बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
इसके अलावा भारत सरकार की मदद से सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड के उत्पाद को हर महीने 6.5 करोड़ से बढ़ाकर 11 करोड़ प्रति महीने करने में जुटा है। इसके अलावा भारत सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि रूसी वैक्सीन को भारत में डॉ रेड्डी लैब की मदद से 6 कंपनियां बनाएंगी। भारत सरकार 2021 के अंत तक 200 करोड़ वैक्सीन की डोज बनाने की दिशा में काम कर रही है। कितने देश इन संसाधनों के साथ इतनी बड़ी क्षमता का सपना भी देख सकते हैं। भारत सरकार और वैक्सीन निर्माताओं के साथ मिलकर एक टीम के तौर पर काम कर रही है।
मिथ - 4 : केंद्र को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करनी चाहिए
सच्चाई - अनिवार्य लाइसेंसिंग एक बहुत ही आकर्षक विकल्प नहीं है। क्यों कि यह अकेला जरूरी कारण नहीं है। इसके अलावा सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की भी जरूरत है। इसमें से जरूरी कुंजी टेक ट्रांसफर है, जिसने R&D किया हो। इसके अलावा हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से भी एक कदम आगे बढ़कर काम कर रहे हैं और कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और 3 अन्य संस्थाओं के बीच डील सुनिश्चित कर रहे हैं। इसी तरह से स्पुतनिक को लेकर भी काम हो रहा है।
यह भी सोचिए कि मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी। लेकिन फिर भी एक भी कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे कम समस्या है। अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित देशों में भी वैक्सीन की डोज की इतनी कमी क्यों होती?
मिथ- 5 राज्यों की जिम्मेदारी से पीछे हटी केंद्र सरकार
सच्चाई- केंद्र सरकार वैक्सीन निर्माताओं को फंडिंग से लेकर भारत में विदेशी वैक्सीन लाने के लिए उत्पादन में तेजी लाने के लिए मंजूरी देने तक सभी कदम उठा रही है। इसके अलावा केंद्र लोगों को मुफ्त टीका लगवाने के लिए राज्यों को वैक्सीन की आपूर्ति कर रही है। इसकी जानकारी राज्यों को है। भारत सरकार ने राज्यों की अपील पर ही उन्हें खुद वैक्सीन खरीदने का प्रयास करने की मंजूरी दी है। देश में वैक्सीन उत्पादन क्षमता और विदेशों से सीधे टीके प्राप्त करने में क्या कठिनाइयां हैं, यह राज्यों को अच्छी तरह से पता है। असल में, भारत सरकार ने जनवरी से अप्रैल तक वैक्सीन कार्यक्रम चलाया और मई की स्थिति की तुलना में यह काफी अच्छे से हुआ। लेकिन जिन राज्यों ने 3 महीने में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को पूरी तरह से कवर नहीं किया, वे वैक्सीन के और अधिक सेंटर चाहते हैं।
मिथ- 6 केंद्र राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा
केंद्र सहमत दिशानिर्देशों के तहत पारदर्शी तरीके से राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन आवंटित कर रहा है। दरअसल, राज्यों को भी वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में पहले से सूचित किया जा रहा है। आने वाले समय में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है और बहुत अधिक आपूर्ति संभव होगी। गैर-भारत सरकार चैनल में राज्यों को 25% खुराक मिल रही है और निजी अस्पतालों को 25% खुराक मिल रही है। इसके बावजूद हमारे कुछ नेता, जिन्हें वैक्सीन की आपूर्ति पर सभी तथ्य पता हैं वे टीवी पर रोजाना आते हैं और लोगों में दहशत पैदा करते हैं, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। यह समय राजनीति करने का नहीं है। हमें इस लड़ाई में सभी को एकजुट होने की जरूरत है।
मिथ 7- बच्चों के टीकाकरण के लिए केंद्र कोई कदम नहीं उठा रहा है
सच्चाई- अभी तक दुनिया का कोई भी देश बच्चों को वैक्सीन नहीं दे रहा है। साथ ही, WHO के पास बच्चों का टीकाकरण करने की कोई सिफारिश नहीं है। यहां बच्चों में टीकों की सुरक्षा के बारे में अध्ययन किए गए हैं, जो उत्साहजनक रहे हैं। भारत में भी जल्द ही बच्चों पर ट्रायल शुरू होने जा रहा है। हालांकि, बच्चों का टीकाकरण व्हाट्सएप ग्रुपों में दहशत के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए और क्योंकि कुछ राजनेता राजनीति करना चाहते हैं। परीक्षणों के आधार पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध होने के बाद हमारे वैज्ञानिकों द्वारा यह निर्णय लिया जाना है।
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