1959 में 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो को तिब्बत से बचाकर भारत लाने वाले नरेन चंद्र दास का 83 साल की उम्र में निधन हो गया। सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
गुवाहाटी। असम राइफल्स (Assam Rifles) के जवान रहे नरेन चंद्र दास का 83 साल की उम्र में निधन हो गया। बुधवार को सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। वह 1959 में 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो को तिब्बत से बचाकर भारत लाए थे।
वर्ष 1959 में चीन की सेना ने ल्हासा में तिब्बत के लिए जारी संघर्ष को कुचल दिया था। इस बात का खतरा था कि चीनी सैनिक बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) को पकड़ सकते हैं। इससे बचने के लिए दलाई लामा को समय रहते तिब्बत से निकल जाने की जरूरत थी, लेकिन पूरे क्षेत्र में चीनी सैनिकों की भारी मौजूदगी के चलते यह कठिन था।
नरेन चंद्र दास 1959 में अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाके में तैनात थे। उन्हें दलाई लामा को तिब्बत की सीमा से सुरक्षित भारत लाने का आदेश मिला था। दास ने अपने चार साथियों के साथ दलाई लामा और उनके अनुयायियों को तिब्बत से भागने में मदद की और सभी को सुरक्षित तवांग लेकर आ गए थे। दास उस समय 22 साल के थे और दलाई लामा की उम्र 23 साल थी।
दलाई लामा ने किया था सैल्यूट
2017 में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा गुवाहाटी में आयोजित ब्रह्मपुत्र कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस दौरान उनकी मुलाकात नरेन चंद्र दास से हुई थी। नरेन चंद्र को सामने देखते ही दलाई लामा ने उन्हें सैल्यूट किया था। यह देख आसपास मौजूद लोग चौंक गए थे कि जिस धर्मगुरु के सामने लोग सिर झुकाते हैं वह एक वृद्ध व्यक्ति को क्यों सैल्यूट कर रहे हैं। इसके बाद दलाई लामा ने नरेन चंद्र को गले से लगाया था और बरसों पहले की घटना को याद कर उनका शुक्रिया अदा किया था।
बता दें कि तिब्बत पर चीन द्वारा कब्जा करने के बाद धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी थी। दलाई लामा भारत में निर्वासन की जिंदगी बिता रहे हैं। वह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं। धर्मशाला आज तिब्बत की राजनीति का केंद्र बन गया है।
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