कैदी नंबर 241383 नवजोत सिद्धू की नई पहचान, हाल मुकाम-पटियाला सेंट्रल जेल का बैरक नंबर 7

पूर्व क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू एक सफलतम व्यक्ति रहे हैं। लग्जरी लाइफ जीने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के जीवन को एक घूसे ने कैसे बदल दिया क्या आप जानते हैं। रिटायरमेंट के एज में सिद्धू को न जाने कितनी रातें जेल में कठोर दिनचर्या का पालन कर गुजारना होगा। 

Dheerendra Gopal | Published : May 21, 2022 11:44 AM IST / Updated: May 21 2022, 05:19 PM IST

पटियाला। बुजुर्ग की हत्या के मामले में एक साल की सजा काटने पहुंचे कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का नया पता अब पटियाला सेंट्रल जेल का बैरक नंबर सात है। सांसद, विधायक, क्रिकेटर आदि के रूप में पहचाने जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू की नई पहचान अब कैदी नंबर 241383 है। कांग्रेस नेता सिद्धू ने शुक्रवार को पटियाला की एक अदालत में सरेंडर किया था। इसके बाद उनको जेल भेज दिया गया था।

एक दिन पहले ही कोर्ट ने सुनाई थी सजा

सरेंडर के एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को तीन दशक पुराने रोड रेज केस में एक साल की जेल की सजा सुनाई थी। इस मामले में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। सजा होने के बाद अगले दिन 58 वर्षीय पूर्व क्रिकेटर ने शुक्रवार को शाम 4 बजे के बाद आत्मसमर्पण कर दिया था। सरेंडर की औपचारिकता पूरी होने के बाद नवजोत सिद्धू का मेडिकल कराकर उनको जेल भेज दिया गया था।

क्रिकेटर से राजनेता बने सिद्धू की दिनचर्या अब जेल मैनुअल तय करेगा

दरअसल, नवजोत सिंह सिद्धू को अदालत ने एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनवाई है। अदालत के आदेश के बाद अब सिद्धू को लग्जरी लाइफ की बजाय जेल मैनुअल के अनुसार सजायाफ्ता कैदियों की दिनचर्या का पालन करना होगा। 

सुबह से शाम तक की एक कैदी की दिनचर्या 

सजा काटने के साथ साथ कैदी कमाई भी करते

जेल में कैदियों को अपनी सजा काटने के दौरान काम भी कराया जाता है। इन कैदियों को काम कराने की एवज में दिहाड़ी भी मिलती है। जानकार बताते हैं कि एक कैदी रोजाना 30 रुपये से 90 रुपये तक कमाता है। हालांकि, पहले तीन महीनों के लिए, दोषियों को बिना वेतन के प्रशिक्षित किया जाता है। अकुशल, अर्धकुशल या कुशल कैदी के रूप में वर्गीकृत होने के बाद वे प्रतिदिन ₹ 30-90 कमाते हैं। दोषी अपराधी दिन में आठ घंटे काम कर सकते हैं।

क्यों हुई है सिद्धू को सजा?

27 दिसंबर 1988 को एक पार्किंग को लेकर सिद्धू की पटियाला निवासी गुरनाम सिंह से बहस हो गई थी। सिद्धू और उसके दोस्त रूपिंदर सिंह संधू ने कथित तौर पर गुरनाम सिंह को उनकी कार से खींचकर मारा और उन्हें टक्कर मार दी। बाद में उनकी अस्पताल में मौत हो गई। एक चश्मदीद ने सिद्धू पर गुरनाम सिंह की सिर पर वार करके हत्या करने का आरोप लगाया था।

श्री सिद्धू को 1999 में एक स्थानीय अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था, लेकिन 2006 में उच्च न्यायालय ने उन्हें गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया और तीन साल जेल की सजा सुनाई। सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी, जिसने उनकी सजा को कम कर दिया और पूर्व क्रिकेटर को जुर्माना भरने का आदेश देने के बाद मामले को खारिज कर दिया था। अदालीत यह तब यह कहा था कि घटना 30 साल पुरानी थी और श्री सिद्धू ने हथियार का इस्तेमाल नहीं किया था। लेकिन पीड़िता के परिवार ने 2018 के फैसले की समीक्षा के लिए दायर किया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक साल की सजा सुनिश्चित की है।

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